आज धनतेरस पर विशेष यमराज की पूजा का पर्व है धनतेरस

धनतेरस का त्योहार दीपावली त्योहार के पहले दिन को दर्शाता है। यह त्योहार लोगों के जीवन में समृद्धि और स्वास्थ्य लाने के लिए माना जाता है और इसलिए इसे बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है। दीपावली का प्रारम्भ धनतेरस से हो जाता है। धनतेरस पूजा को धनत्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। धनतेरस के दिन नई वस्तुएं खरीदना शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। अगर सम्भव हो तो कोई बर्तन ज़रूर खरीदें। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि चांदी चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में सन्तोष रूपी धन का वास होता है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि धनतेरस के दौरान अपने घर में 13 दीये जलाना चाहिए और अच्छे स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। सबसे पहले दक्षिण दिशा में यम देवता के लिए और दूसरा दीपक धन की देवी मां लक्ष्मी के लिए जलाना चाहिए। इसी तरह दो दीये अपने घर के मुख्य द्वार पर, एक दीया तुलसी महारानी के लिए एक दीया घर की छत पर और बाकी दीये घर के अलग-अलग कोनों में रख देने चाहिएं। माना जाता है कि ये 13 दीये नकारात्मक ऊर्जा और बुरी आत्माओं से रक्षा करते हैं।
धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस दिन का विशेष महत्व है। शास्त्रों में कहा गया है कि जिन परिवारों में धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है, वहां अकाल मृत्यु नहीं होती। घरों में दीपावली की सजावट भी इसी दिन से प्रारम्भ होती है। इस दिन घरों को लीप-पोतकर, चैक, रंगोली बना सायंकाल के समय दीपक जलाकर लक्ष्मी जी का आह्वान किया जाता है। इस दिन पुराने बर्तनों को बदलना व नए बर्तन खरीदना शुभ माना गया है। धनतेरस को चांदी के बर्तन खरीदने से तो अत्यधिक पुण्य लाभ होता है। इस दिन कार्तिक स्नान करके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, कुआं, बावली मंदिर आदि स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाना चाहिए।
धनतेरस का दिन धन्वन्तरी त्रयोदशी या धन्वन्तरि जयन्ती भी होती है। धनतेरस को आयुर्वेद के देवता का जन्म दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन गणेश लक्ष्मी घर लाए जाते हैं। इस दिन लक्ष्मी और कुबेर की पूजा के साथ-साथ यमराज की भी पूजा की जाती है। पूरे वर्ष में एक मात्र यही वह दिन है जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है। यह पूजा दिन में नहीं की जाती अपितु रात्रि होते समय यमराज के निमित्त एक दीपक जलाया जाता है। धनतेरस को मृत्यु के देवता यमराज जी की पूजा करने के लिए संध्या के समय एक वेदी (पाट्टा) पर रोली से स्वास्तिक बनाइये। उस स्वास्तिक पर एक दीपक रखकर उसे प्रज्वलित करें और उसमें एक छिद्रयुक्त कौड़ी डाल दें। अब इस दीपक के चारों ओर तीन बार गंगा जल छिड़कें। दीपक को रोली से तिलक लगाकर अक्षत और मिष्ठान्न आदि चढाएं। इसके बाद इसमें कुछ दक्षिणा आदि रख दीजिए जिसे बाद में किसी ब्राह्मण को दे देवें। अब दीपक पर कुछ पुष्पादि अर्पण करें। इसके बाद हाथ जोड़ कर दीपक को प्रणाम करें और परिवार के प्रत्येक सदस्य को तिलक लगाएं। अब इस दीपक को अपने मुख्य द्वार के दाहिनी और रख दीजिए। यम पूजन करने के बाद अन्त में धनवंतरी पूजा करें।
इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है। कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा, उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और उन्होंने राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक-दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे, उस वक्त उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परन्तु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की हे यमराज, क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु के लेख से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने पर यमदेवता बोले, हे दूत, अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है। इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं। कार्तिक कृष्ण पक्ष की रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेंट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।
चूंकि यह समृद्धि का त्योहार है, इसलिए लोग अपने घरों को भी साफ करते हैं, उन्हें नया रंग देते हैं और कई तरह से सजाते हैं। धनतेरस हर किसी को समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य का एहसास कराता है। दीपावाली धन से ज्यादा स्वास्थ्य और पर्यावरण पर आधारित त्योहार है। दीपावली एक ऐसा त्योहार है जिसके अपने पर्यावरणीय निहितार्थ हैं। मौसम में बदलाव और दीपपर्व में घनिष्ठ संबंध है। इसे समझते हुए कृप्या दीपावली पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियां ना करें।