तेलंगाना में बीआरएस व कांग्रेस के बीच होगा मुख्य मुकाबला !   

महाराष्ट्र में ज़िला चंद्रपुर के जीवती तालुका और तेलंगाना में ज़िला कोमाराम भीम आसिफाबाद के केरामेरी मंडल के बीच में सुनसान पहाड़ी क्षेत्र है, जिसकी परंदोली व अंथापुर ग्राम पंचायतों में 14 गांव हैं। इन गांवों की लगभग 5,000 की आबादी में 3,023 मतदाता हैं, जिनके पास दोनों महाराष्ट्र व तेलंगाना में मत प्रयोग का अधिकार है। दोनों ग्राम पंचायतें महाराष्ट्र व तेलंगाना सरकारों पर निर्भर हैं और इनके नागरिक सभी चुनावों में दोनों तरफ हिस्सा लेते हैं। तेलंगाना विधानसभा की 119 सीटों के लिए 30 नवम्बर, 2023 को मतदान होगा, उसमें भी ये लोग हिस्सा लेंगे। यहां के अधिकांश मतदाता मराठी भाषी अनुसूचित जातियों से संबंधित हैं और शेष लैंबडा आदिवासी व मुस्लिम हैं, जो जीविका की तलाश में 1970-71 में मराठवाडा के सूखाग्रस्त ज़िलों नांदेड़, परभणी, लातूर व जालना से आकर यहां बस गये थे। अनसुलझे सीमा विवाद के कारण इन लोगों को दोनों राज्यों में मतदान करने का अधिकार है। इनके पास दो वोटर कार्ड्स, दो आधार व दो मनरेगा कार्ड्स हैं और इन्हें दोनों राज्यों से राशन व पेंशन मिलती हैं। दोनों राज्यों की कल्याण योजनाओं का लाभ भी मिलता है, लेकिन कोई भी राज्य इन्हें उस भूमि का पट्टा नहीं देता जिस पर ये दशकों से खेती कर रहे हैं। 
तेलंगाना में वोटर्स को यह शिकायत बिना किसी अपवाद के सभी राजनीतिक दलों से है, विशेषकर सत्तारूढ़ बीआरएस व मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव से है कि अपने लगभग एक दशक के शासन में उन्होंने अपने वायदे पूरे नहीं किये हैं, चाहे दलितों को तीन एकड़ भूमि देने की बात हो या दलित मुख्यमंत्री बनाने की। इन शिकायतों के बावजूद दिलचस्प यह है कि सभी सियासी दल केवल तेलंगाना में ही चुनाव प्रचार नहीं कर रहे हैं बल्कि राज्य के बाहर प्रवासियों को रिझाने पटाने के लिए ‘आत्मीय सम्मेलनों’ का आयोजन कर रहे हैं, जोकि महाराष्ट्र के मुम्बई, पुणे, सोलापुर व भिवंडी, गुजरात के सूरत और कर्नाटक के रायचूर व बंग्लुरू में आयोजित किये जा चुके हैं। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि तेलंगाना में उच्च दावं वाला चुनाव हो रहा है। जीत किसकी होगी, यह तो फिलहाल कहना कठिन है, लेकिन इतना तय है कि इस बार बीआरएस व कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला हो सकता है, जिसमें भाजपा व ओवैसी की पार्टी किंग मेकर के रूप में उभर सकती हैं। 
दरअसल, कर्नाटक विधानसभा के चुनाव परिणाम का सबसे अधिक असर तेलंगाना पर पड़ा है। कर्नाटक में जीत से पहले कांग्रेस तेलंगाना में भी हाशिये पर बिखरी पड़ी थी यानी वह मुकाबले में थी ही नहीं। इसलिए चन्द्रशेखर राव भाजपा को ही अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मान रहे थे, इसलिए वह राज्य में प्रधानमंत्री के कार्यक्रमों में भी शामिल नहीं हो रहे थे और देश में जगह-जगह घूमकर विपक्षी एकता के लिए प्रयास कर रहे थे। भाजपा को भी लग रहा था कि वह तेलंगाना में अपने पैर पसार सकती है, इसलिए वह केसीआर को परिवारवाद व भ्रष्टाचार के आरोपों से अपना निशाना बना रही थी और साथ ही उसने टी. राजा जैसे अपने नेताओं के ज़रिये सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के प्रयास आरंभ कर दिए थे। लेकिन कर्नाटक चुनाव ने तेलंगाना में चुनावी गणित को ही बदल दिया। अचानक कांग्रेस बीआरएस के लिए मुख्य प्रतिद्वंद्वी हो गई। 
तेलंगाना के पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मात्र 7 सीटें मिली थीं। उसके कार्यकर्ता मायूस और नेता आपस में लड़ रहे थे। जनता को लगा कि कांग्रेस बीआरएस का मुकाबला करने के लिए गम्भीर नहीं है, लेकिन कर्नाटक में जीत मिलते ही तेलंगाना में कांग्रेस नेताओं को लगा कि अपने राज्य में भी वह सफल हो सकते हैं। वह सब एकजुट होकर काम करने लगे, पार्टी के भीतर विरोध के स्वर उठने बंद हो गये और नेताओं ने एक दूसरे के विरुद्ध प्रेस कांफ्रैंस करनी बंद कर दीं। लोगों का कांग्रेस में विश्वास लौटने लगा, विशेषकर युवाओं का। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रेवंथ रेड्डी अब अन्य नेताओं (भट्टी विक्रमारका, दामोदर राजा नरसिम्हा, उत्तम रेड्डी, कोमतिरेड्डी वेंकट रेड्डी आदि) के साथ पार्टी को आगे ले जा रहे हैं। टीजेएस व वामपंथी भी कांग्रेस के साथ हैं। 
राज्य में कांग्रेस की बढ़ती ताकत का एहसास केसीआर को तो इस साल के शुरू में ही हो गया था। इसलिए उन्होंने खुद को विपक्ष के ‘इंडिया’ गठबंधन से दूर रखा। पिछले चार महीने से उन्होंने तेलंगाना के बाहर कदम नहीं रखा है, जबकि इससे पहले वह अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं के चलते महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश व मध्य प्रदेश के लगातार दौरे कर रहे थे और विपक्षी नेताओं से भी बातचीत कर रहे थे। 
तेलंगाना के कांग्रेस इंचार्ज माणिकराव ठाकरे का कहना है, ‘बीआरएस व भाजपा का 2024 चुनावों के लिए समझौता हो गया है। केसीआर दावा करते हैं कि वह भाजपा से लड़ रहे हैं, लेकिन संसद में उनकी पार्टी मोदी सरकार का समर्थन करती है। शराब घोटाले में आरोपी ‘आप’ के मनीष सिसोदिया जेल में हैं, लेकिन घंटों की पूछताछ के बावजूद केंद्र ने केसीआर की बेटी के कविता को गिरफ्तार नहीं किया। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर