साइबर अपराधियों के सामने सिस्टम फेल

भारत ने हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण डिजिटल परिवर्तन का अनुभव किया है, जिसमें व्यक्तियों और व्यवसायों की बढ़ती संख्या इंटरनेट और डिजिटल प्रौद्योगिकियों पर निर्भर है। बढ़ती कनेक्टिविटी और प्रौद्योगिकी पर निर्भरता साइबर अपराधियों के लिए कमजोरियों का फायदा उठाने के अधिक अवसर पैदा करती है। भारत के पास विश्व स्तर पर सबसे बड़े इंटरनेट उपयोगकर्ता आधारों में से एक है। इंटरनेट का उपयोग करने वाली एक बड़ी आबादी के साथ, साइबर अपराधियों के लिए अधिक संभावित लक्ष्य हैं, जिससे यह साइबर हमलों के लिए एक आकर्षक बाज़ार बन गया है। साइबर क्राइम की घटनाएं दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही हैं। पिछले एक महीने में भारत में वर्क फ्रॉम होम, ई-चालान, लॉटरी के नाम पर ठगी के 2500 से ज्यादा मामले दर्ज किए जा चुके हैं। सिर्फ दिल्ली में इस साल 25000 से अधिक मामले दर्ज हो चुके हैं। 
वहीं 200 करोड़ की ठगी की जा चुकी है। सरकार द्वारा लगातार आनलाइन भुगतान पर जोर देने तथा आम आदमी को आनलाइन भुगतान के लिए फोनपे, जीपे, पीटीएम यूपीआई आदि की सुविधाएं मिलने से जहां एक तरफ उन्हें राहत तो मिली है, वहीं दूसरी तरफ वित्तीय साइबर की बढ़ती घटनाओं को रोकने में सरकार का सिस्टम असहज दिखता है। स्थिति इतनी खराब है कि पीड़ित व्यक्ति साइबर थानों में वित्तीय नुकसान पहुंचाने वाला का मोबाईल नम्बर से लेकर जिस खाते में पैसा ट्रासफर हुआ उसका नाम, वित्तीय हानि पहुंचाने वाले का मोबाईल चालू होने के बाद भी उसका पता न लगा पाना इस बात का प्रमाण है कि साइबर अपराधियों के सामने सिस्टम लगभग फेल सा साबित हो रहा है। वैसे भी देश में जिस तरह से डिजिटल प्रौद्योगिकी का तूफानी परिवर्तन हुआ है उतनी तेज़ी से सरकारी तंत्रों को नहीं बदला गया। आज भी पुलिस की भर्ती में स्पेशल कैटगिरी यानि साइबर सेल के लिए बीसीए, एमसीए आदि तकनीकि योग्यता के आधार पर कोई भर्ती नहीं निकाली गई। इस दिशा में जनपद स्तर पर कोई प्रशिक्षण की चर्चा नहीं देखी गई। परिणामत: आम पुलिस थानों से कुछ अनुभवी पुलिस कार्मिकों और अफसरों को शामिल कर साइबर सेल की स्थापना कर दी गई है। परिणाम स्वरूप साइक्रम क्राईम तेज़ी से आम आदमी को हानि पहुंचा रहा है। 
तकनीकी के इस दौर में चोरी करने के तरीके भी हाईटेक हो गए हैं। अक्सर हर हिन्दुस्तानी के दिमाग में यही होता है कि उसका पैसा घर से ज्यादा बैंक में सुरक्षित है। लेकिन बैंक के सिस्टम में भी सेंध लगाकर पैसों को चोरी किया जा रहा है। आम आदमी थोड़े पैसे के लालच या नासमझी में अपनी गोपनीयता भंग कर रहे हैं और इन्हीं का फायदा साइबर चोर उठा रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक से मिले आंकड़ों से यह बात पुख्ता हो रही है कि देश की अर्थव्यवस्था को साइबर चोर बड़ी चोट पहुंचा रहे हैं। हालांकि साइबर चोरी को रोकने के लिए अभी तक कोई ठोस कदम भी नहीं उठाए गए। हालात यह हो गए हैं कि दिनोंदिन ऑनलाइन धोखाधड़ी के मामलों में बढ़ोत्तरी हो रही है। आरटीआइ के जरिए एक एक्टिविस्ट ने सवाल पूछा था कि जिसमें देशभर में ऑनलाइन धोखाधड़ी के मामले कितने हुए और सरकार ने क्या कार्रवाई की, इसका जवाब मांगा था। मंत्रालय ने इस आरटीआइ को भारतीय रिजर्व बैंक के केंद्रीय जनसूचना अधिकार प्रकोष्ठ भेज दिया था। रिजर्व बैंक ने कुछ सवालों का जवाब तो गोल-मोल दिया।  इस  रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि पिछले तीन साल के दौरान करीब 39 प्रतिशत भारतीय परिवार ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी का शिकार बने हैं। इनमें से सिर्फ 24 प्रतिशत को ही उनका पैसा वापस मिल पाया है। लोकलसर्किल्स के सर्वे में 23 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे क्रेडिट या डेबिट कार्ड धोखाधड़ी का शिकार बने। वहीं 13 प्रतिशत का कहना था कि उन्हें ऑनलाइन खरीद-बिक्री साइट उपयोगकर्ताओं द्वारा धोखा दिया गया। सर्वे के अनुसार, 13 प्रतिशत लोगों का कहना था कि वेबसाइट द्वारा उनसे पैसा ले लिया गया, लेकिन प्रोडक्ट नहीं भेजा गया। जबकि 10 प्रतिशत ने कहा कि वे एटीएम कार्ड धोखाधड़ी का शिकार बने। 10 प्रतिशत ने कहा कि उनके साथ बैंक खाता धोखाधड़ी की गई।  इसके अलावा 16 प्रतिशत ने बताया कि उन्हें कुछ अन्य तरीके से चूना लगाया गया।  
हालांकि देश में ऑनलाइन धोखाधड़ी के मामलों को भारतीय रिजर्व बैंक ने दो हिस्सों में बांटकर आंकड़े दिए हैं। इसमें पहले वह आंकड़े हैं, जिनमें धोखाधड़ी के शिकार लोग केवल बैंक को सूचना देने का काम करते हैं। ऐसे मामलों को भी दो कैटेगरी में बांटा गया है। एक श्रेणी में उन मामलों को दर्ज किया जाता है, जिसमें एक लाख से ज्यादा रुपये की धोखाधड़ी की गई हो, वहीं दूसरी श्रेणी में एक लाख से कम की धोखाधड़ी के मामलों की सूचना दर्ज होती है। जबकि ऑनलाइन धोखाधड़ी की दूसरी प्रमुख श्रेणी में उन घटनाओं का रखा गया है, जिसमें धोखाधड़ी का शिकार लोगों ने बैंक को सूचना देने के साथ ही थाने में जाकर केस दर्ज कराया हो। यहां पर भी केस दर्ज कराने वाले ग्राहकों को दो श्रेणी में रखा गया है। पहली में एक लाख रुपये से ज्यादा की धोखाधड़ी के मामलों की सूचना दर्ज की जाती है। दूसरी श्रेणी में एक लाख से कम धोखाधड़ी के शिकार लोगों की सूचना दर्ज होती है। 
साइबर अपराधी सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर और नेटवर्क सिस्टम में कमजोरियों का फायदा उठाने के लिए लगातार नए तरीके ढूंढते रहते हैं। डिजिटल भुगतान और ऑनलाइन लेनदेन के बढ़ने के साथ, फिशिंग, क्रेडिट कार्ड धोखाधड़ी और ऑनलाइन घोटाले जैसे वित्तीय अपराधों का खतरा बढ़ गया है। कुल मिलाकर यह कहना गलत नहीं होगा की सरकार को आम आदमी की सुरक्षा के लिए सिस्टम को सुधारना होगा।