सुरंगों के निर्माण से खोखले हो रहे पहाड़

उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सुरंग का एक हिस्सा भूमि में धंस जाने के कारण सुरंग बना रहे 41 मज़दूर फंस गए। उन्हें बचाने के हर संभव प्रयास युद्धस्तर पर किए जा रहे हैं। यह हादसा उत्तरकाशी से 55 कि.मी. दूर बन रही सिलक्यारा-पोलगांव निर्माणाधीन सुरंग के भीतर हुआ। यह हादसा भू-स्खलन के कारण सुरंग का 15 मीटर हिस्सा ज़मीन में धंस जाने के कारण घटित हुआ। सुरंग का निर्माण उत्तरकाशी जिले में धरासू-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर चार धाम यात्रा को हर मौसम में सुगम बनाने की दृष्टि से किया जा रहा है। सुरंग की लंबाई करीब साढ़े चार किलोमीटर है। इसे करीब चार कि.मी. बना लिया गया है। सुरंग के सम्पूर्ण होने के बाद यात्रियों की 26 कि.मी. दूरी कम हो जाएगी। 
समूचे हिमालय क्षेत्र में बीते एक दशक से पर्यटकों के लिए सुविधाएं जुटाने के परिप्रेक्ष्य में जल विद्युत संयंत्र और रेल परियोजनाओं की बाढ़ आई हुई है। इन परियोजनाओं के लिए हिमालय क्षेत्र में रेल गुजारने और कई हिमालयी छोटी नदियों को बड़ी नदियों में डालने के लिए सुरंगें निर्मित की जा रही हैं। बिजली परियोजनाओं के लिए भी जो संयंत्र लग रहे हैं, उनके कारण हिमालय खोखला हो रहा है। इस आधुनिक औद्योगिक और प्रौद्योगिकी विकास का ही परिणाम है कि आज पहाड़ दरकने लगे हैं। 
उत्तराखंड में गंगा और उसकी सहयोगी नदियों पर एक लाख तीस हज़ार करोड़ की जल विद्युत परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं। इन संयंत्रों की स्थापना के लिए लाखों पेड़ों को काटने के बाद पहाड़ों को निर्ममता से छलनी किया जा रहा है और नदियों पर बांध निर्माण के लिए बुनियाद हेतु गहरे गड्ढे खोदकर पिल्लर व दीवारें खड़ी की जा रही हैं। कई जगह सुरंगे बनाकर पानी की धार को संयंत्र के पंखों पर डालने के उपाय किए गए हैं। इन गड्ढों और सुरंगों की खुदाई में ड्रिल मशीनों से जो कम्पन पैदा होती है, वह पहाड़ की परतों की दरारों को खाली कर देती है और पेड़ों की जड़ों से जो पहाड़ गुंथे होते हैं, उनकी पकड़ भी इस कम्पन से ढीली पड़ जाती है। नतीजतन तेज़ बारिश के कारण भूस्खलन और हिमखंडों के टूटने का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं कठोर पत्थरों को तोड़ने के लिए किए जाते भीषण विस्फोटों से भी पहाड़ हिल जाते हैं।  हिमालय में अनेक रेल परियोजनाएं भी निर्माणाधीन हैं। सबसे बड़ी रेल परियोजना से उत्तराखंड के चार जिलों (टेहरी, पौड़ी, रुद्रप्रयाग और चमोली) के तीस से ज्यादा गांवों को भी विकास की कीमत चुकानी पड़ रही है। छह हज़ार परिवार विस्थापन के दायरे में आ गए हैं। रुद्रप्रयाग जिले के मरोड़ा गांव के सभी घर दरक गए हैं। रेल विभाग ने इनके विस्थापन की तैयारी कर ली है। 
दरअसल ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना 125 कि.मी. लम्बी है। इसके लिए सबसे लम्बी सुरांग देवप्रयाग से जनासू तक बनाई जा रही है, जो 14.8 कि.मी. लम्बी है। केवल इसी सुरंग का निर्माण बोरिंग मशीन से किया जा रहा है। शेष जो 15 सुरंगे बन रही हैं, उनमें ड्रिल तकनीक से बारूद लगाकर विस्फोट किए जा रहे हैं। अन्य जिलों के श्रीनगर, मलेथा, गौचर ग्रामों के नीचे से सुरंगें निकाली जा रही हैं। इनमें किए जा रहे धमाकों से घरों में दरारें आ गई हैं। हिमालय की अलकनंदा नदी घाटी ज्यादा संवेदनशील है। रेल परियोजनाएं इसी नदी से सटे पहाड़ों के नीचे और ऊपर निर्माणाधीन हैं। चैबीस हज़ार करोड़ रुपए की ऋषिकेश-कर्णप्रयाग परियोजना ने जहां विकास और बदलाव की ऊंची छलांग लगाई है, वहीं इसने खतरों की नई सुरंगें भी खोल दी हैं। उत्तराखंड के पहाड़ी शहर श्रीनगर के नीचे से भी सुरंग निकली जा रही है। 
 सड़क मार्ग के लिए भी सुरंगें बनाई जा रही हैं, तो कहीं घाटियों के बीच पुल बनाने के लिए मज़बूत आधार स्तंभ बनाए जा रहे हैं। हालांकि ये सड़कें सेना के लिए अत्यंत उपयोगी होंगी, लेकिन पर्यटन को बढ़ावा देने के लिहाज से जो निर्माण किए जा रहे हैं, उन पर पुनर्विवार की जरूरत है।
हिमालय में हाल ही में केन-बेतवा नदी जोड़ो अभियान की तर्ज पर उत्तराखंड में देश की पहली ऐसी परियोजना पर काम शुरू हो गया है, जिसमें हिमनद (ग्लेशियर) की एक धारा को मोड़कर बरसाती नदी में पहुंचाने का प्रयास हो रहा है। यदि यह परियोजना सफल हो जाती है तो पहली बार ऐसा होगा कि किसी बरसाती नदी में सीधे हिमालय का बर्फीला पानी बहेगा। हिमालय की अधिकतम ऊंचाई पर नदी जोड़ने की इस महापरियोजना का सर्वेक्षण शुरू हो गया है। 
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