म्यांमार में गृह युद्ध से बिगड़ रही मिज़ोरम की कानून व्यवस्था

म्यांमार के साथ भारत की जो उत्तर-पूर्वी सीमा है, उस पर निरन्तर समस्या बढ़ती ही जा रही है। पिछले एक-दो सप्ताह के दौरान लगभग 7,000 म्यांमार नागरिक, जिनमें सैनिक भी हैं, सीमा पार करके मिज़ोरम के चंफाई ज़िले में शरण ले चुके हैं। म्यांमार में गृह युद्ध चल रहा है। म्यांमार का पश्चिमी चिन प्रांत मिज़ोरम के करीब है, वहां म्यांमार की सेना और लोकतंत्र के समर्थकों के बीच भयंकर गोलीबारी चल रही है। इससे अलग का एक घटनाक्रम यह है कि भारत सरकार ने 13 नवम्बर 2023 को यूएपीए के तहत सात मैतेइ संगठनों, जिनमें उनकी राजनीतिक शाखाएं भी शामिल हैं, पर प्रतिबंध पांच वर्षों के लिए और बढ़ा दिया है। भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में तनाव की स्थिति है, जिसे शांत व स्थिर करने के लिए आवश्यक है कि केंद्र सरकार के आंतरिक सुरक्षा व कूटनीतिक प्रयास राज्य सरकारों की कोशिशों से मेल खाते हुए हों।
भारत और म्यांमार के बीच 1,643 किमी. की भूमि सीमा है। यह खुली सीमा है जो दोनों तरफ 16 किमी. के फ्री मूवमेंट रेजीम (एफ एमआर) से परिभाषित होती है। इसलिए म्यांमार में जब भी नागरिक तनाव बढ़ता है, तो देशज रिश्तेदारी के कारण वह पड़ोस के भारतीय राज्यों को भी प्रभावित करता है। उत्तर-पूर्व के चार राज्यों की सीमाएं म्यांमार की सीमा से लगती हैं। म्यांमार में 2021 के तख्ता-पलट के बाद जो गृह युद्ध शुरू हुआ है, उससे भारत के दो राज्य—मिज़ोरम व मणिपुर बहुत अधिक प्रभावित हुए हैं। गृह युद्ध की तीव्रता का अंदाज़ा इन रिपोर्टों से लगाया जा सकता है कि सैन्य तत्मादाव (जुंटा) एयर फोर्स का अधिक इस्तेमाल करने लगी है यानी वह अपने ही देश में लड़ाकू विमानों से बमबारी कर रही है। जुंटा में चिन नेशनल आर्मी (सीएनए) और चिन डिफेंस फोर्स (सीडीएफ) भी शामिल हैं। विद्रोहियों के ब्रदरहुड अलायंस ने चिन प्रांत में सेना के दो बेस कैम्पों खावमावी व रिहखाव्दर पर कब्ज़ा कर लिया है। इसके बाद सेना ने एयर फोर्स का प्रयोग किया तो म्यांमार नागरिकों का भारत की ओर पलायन बढ़ गया।
खुली सीमा, राज्य संस्थाओं का चरमरा जाना और म्यांमार से शरणार्थियों के आने के कारण ट्रांसनेशनल नारकोटिक्स ट्रेड बढ़ गई है। पिछले साल थिंक टैंक एमपी-आईडीएसए की पालिसी ब्रीफ में कहा गया था कि कुख्यात गोल्डन ट्रायंगल (वह तिरहा जहां म्यांमार, लाओस व थाईलैंड की सीमाएं मिलती हैं) दोनों सिंथेटिक ड्रग निर्माण व उसके बाज़ार के लिए भारत पर निर्भर करता है। संस्थागत संक्षारण और उसके साथ नारकोटिक्स ट्रेड कई तरह से म्यांमार को भारत का सबसे अधिक परेशान करने वाला पड़ोसी बना देता है। यह परेशानी केवल भारत तक सीमित नहीं है बल्कि 2021 के सैन्य तख्ता-पलट के बाद से म्यांमार की अस्थिरता से बांग्लादेश को भी बहुत कुछ बर्दाश्त करना पड़ रहा है। 
म्यांमार की स्थिति से उत्तर-पूर्व में शरणार्थियों व ड्रग्स की समस्या बढ़ती जा रही है, उसके समाधान के लिए केंद्र सरकार को जल्द कदम उठाने चाहिये वर्ना स्थिति हाथ से निकलकर खतरनाक व बेकाबू हो सकती है। उत्तर-पूर्व व म्यांमार के देशज लोगों में आपसी रिश्तेदारियां हैं, इसलिए शरणार्थियों के आने को रोक पाना तो बहुत मुश्किल है, विशेषकर मानवीय कारणों से भी। फिर मिज़ोरम की राज्य सरकार भी चिन शरणार्थियों के प्रति उदार व नर्म रहती है क्योंकि मिज़ो से उनके करीब के संबंध हैं। शरणार्थियों के प्रति भारत का एडहोक दृष्टिकोण है और उन्हें विदेशी कानून के तहत कार्यवाही का भी डर रहता है, इसलिए यह आशंका बढ़ जाती है कि जीविका की तलाश में कहीं वे ड्रग व्यापार की दलदल में न फंस जायें। यह भारत के भीतर परेशानी का संकेत है। नई दिल्ली को चाहिए कि वह म्यांमार की मिलिट्री जुंटा पर दबाव बनाये ताकि वहां के लोग हमारे यहां शरण लेने के लिए मजबूर न हों।
लेकिन यह काम इतना आसान भी नहीं है। वजह जानने के लिए संक्षेप में इसकी पृष्ठभूमि को दोहराना आवश्यक है। फरवरी 2021 में म्यांमार के सशस्त्र बलों ने नई मिलिट्री जुंटा स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन काउंसिल (एसएसी) का गठन करके नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलएफ डी) की चुनी हुई नागरिक सरकार का तख्ता-पलट दिया था और औंग सान सू की सहित उसके नेताओं व सांसदों को गिरफ्तार कर लिया था।
एनएलएफडी के सदस्यों ने नई राजनीतिक संस्था नेशनल पार्लियामेंट का गठन किया, इसमें जब अन्य देशज पार्टियां शामिल हुईं, तो इसे नेशनल यूनिटी कंसल्टेटिव काउंसिल (एनयूसीसी) का नाम दिया गया, जो फेडरल डेमोक्रेटिक चार्टर (एफडीसी) पर सहमत हुई और नये संविधान व म्यांमार को फेडरल डेमोक्रेटिक देश बनाने के लिए राजनीतिक रोड मैप की मांग की गई। एफडीसी का अंतिम रूप मार्च 2022 में प्रकाशित हुआ, जिसमें सभी देशज व अल्पसंख्यकों की मांगों को शामिल करते हुए समता का प्रयास है। एनयूसीसी, जो इस समय जुंटा का विरोध कर रहा है, म्यांमार के इतिहास में सबसे अधिक समावेशी राजनीतिक गठबंधन है। एनयूसीसी का नेतृत्व नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट (एनयूजी) कर रही है। जुंटा की एनयूजी के शांतिपूर्ण आंदोलन पर प्रतिक्रिया हिंसक रही। नतीजतन एनयूजी ने पीपल्स डिफेंस फोर्सेज (पीडीएफ) का गठन किया और अन्य विद्रोहियों के साथ मिलकर जुंटा पर हमले करने का खुला आह्वान किया। फलस्वरूप म्यांमार में गृह युद्ध आरंभ हो गया। अब स्थिति यह है म्यांमार नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस आर्मी (एमएनडीएए), तांग नेशनल लिबरेशन आर्मी (टीएनएलए), अरकान आर्मी (एए) आदि देशज सशस्त्र गुटों ने ब्रदरहुड अलायंस बनाया हुआ है और वह इस साल अक्तूबर से मिलकर जुंटा पर हमले कर रहे हैं। जुंटा भी इन पर हवाई हमले कर रही है। पूरा म्यांमार युद्ध का मैदान बन गया है। 
इस गृह युद्ध से अपनी जान बचा कर शरणार्थी मिज़ोरम व मणिपुर में आ रहे हैं। हालांकि नई दिल्ली ने सख्ती से कहा है कि शरणार्थियों के लिए कैम्प न खोले जाएं और न ही उनकी कोई मदद की जाये, लेकिन मिज़ोरम सरकार ने इस आदेश को मानने से इन्कार कर दिया और शरणार्थियों को अपने यहां शरण लेने दी। मणिपुर में शरणार्थियों के आने से कूकी-ज़ो समुदायों और बहुसंख्यक मैतई के बीच देशज टकराव में वृद्धि हुई है। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर