अब बारी राजस्थान की
केन्द्रीय चुनाव आयोग द्वारा पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए घोषित तिथियों के अनुसार चार राज्यों में मतदान हो चुका है, जबकि शेष एक राज्य तेलंगाना में 30 नवम्बर को मतदान होगा। इन पांच राज्यों के चुनाव परिणाम 3 दिसम्बर को घोषित होंगे। सबसे पहले मिज़ोरम की 40 विधानसभा सीटों के लिए 7 नवम्बर को 77.39 प्रतिशत मतदान हुआ। इसके बाद नक्सल-प्रभावित राज्य छत्तीसगढ़ में दो चरणों में वोटिंग हुई, जिसमें 7 नवम्बर को इस की 20 सीटों पर लगभग 71.48 प्रतिशत तथा दूसरे चरण के तहत 17 नवम्बर को इसकी शेष 70 सीटों पर 70.60 प्रतिशत मतदान हुआ। 17 नवम्बर को ही मध्य प्रदेश की 230 सीटों पर 74.31 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया है। आज 25 नवम्बर शनिवार को राजस्थान की 200 विधानसभा सीटों के 199 क्षेत्रों में 68.41 प्रतिशत मतदान हुआ बताया जा रहा है। यह चुनाव इसलिए भी महत्त्वपूर्ण कहा जा सकता है क्योंकि यहां कांग्रेस तथा भाजपा का प्रत्यक्ष मुकाबला है। इनके अलावा कुछ अन्य छोटी पार्टियां भी चुनाव मैदान में उतरी हुई हैं, जिनमें राष्ट्रीय लोक-तांत्रिक पार्टी, आज़ाद समाज पार्टी (कांशी राम), बहुजन समाज पार्टी, भारतीय ट्राइबल पार्टी, जन-नायक जनता पार्टी, लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास पासवान), समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी तथा वामपंथी पार्टी आदि शामिल हैं परन्तु इनका राज्य के मतदाताओं पर अधिक प्रभाव दिखाई नहीं देता। वर्ष 2018 के चुनावों में छोटी पार्टियों ने अच्छा प्रदर्शन ज़रूर दिखाया था। इन्हें कुल 22 प्रतिशत वोट मिले थे तथा ये 27 सीटें प्राप्त करने में सफल हो गई थीं। राजस्थान चुनाव इतिहास का एक अन्य अहम पहलू यह भी रहा है कि विगत लम्बी अवधि से मतदाता हर बार दूसरी पार्टी का चुनाव करने को अधिमान देते रहे हैं तथा यह सिलिसला कांग्रेस तथा भाजपा के मध्य ही बना रहा।
विगत 5 वर्ष से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी का सरकार रही है। इस समय में चाहे गहलोत को पार्टी के भीतर ही कांग्रेस के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सचिन पायलट द्वारा चुनौती मिलती रही है तथा गहलोत सरकार पर ़खतरा भी मंडराता रहा है परन्तु उन्होंने अपनी मज़बूत पकड़ से अपनी पारी पूरी कर ली। यदि राज्य के चुनाव इतिहास पर दृष्टिपात करें तो इस बार भारतीय जनता पार्टी के जीतने की उम्मीद की जा सकती है परन्तु कांग्रेस इस बार भी बेहद मज़बूत हो कर यह चुनाव लड़ रही है। चाहे जाति आधार के दृष्टिगत सचिन पायलट के गुज्जर बिरादरी के साथ सम्बद्ध होने कारण इस बिरादरी के कांग्रेस से नाराज़ होने की सम्भावना है। राज्य में इस समय गुज्जर वोट लगभग 10 प्रतिशत हैं, जिनका 27 सीटों पर प्रभाव माना जाता है। दूसरी तरफ राजस्थान में भाजपा नेता वसुंधरा राजे का प्रभाव माना जाता है। वसुंधरा राजे इस बार भी भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में दावा कर रही थीं परन्तु भाजपा द्वारा जहां उन्हें इस बार पीछे रखा गया है, वहीं कांग्रेस में भी सचिन पायलट पीछे खड़े दिखाई देते हैं। राज्य के इन चुनावों में अशोक गहलोत की बड़ी चर्चा है तथा यह चुनाव कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा कुछ पीछे रह कर गहलोत के नाम पर ही लड़ा जा रहा है। भाजपा द्वारा इन चुनावों में स्थानीय नेतृत्व की बजाय चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम पर लड़े जा रहे हैं।
जहां कांग्रेस ने इस वर्ष हुये कर्नाटक विधानसभा चुनावों की भांति यहां भी बहुत-सी मुफ्त सुविधाएं देने, जैसे कि महिलाओं को 10 हज़ार रुपये मासिक, गैस सिलेण्डर 500 रुपये में तथा प्राकृतिक आपदा के लिए 15 लाख रुपये का बीमा तथा चिरंजीवी स्वास्थ्य सुरक्षा योजना आदि को चुनाव प्रचार का मुद्दा बनाया है, वहीं दूसरी तरफ भाजपा ने जन-कल्याण की योजनाओं की घोषणा करते हुये पांच वर्षों में अढ़ाई लाख सरकारी नौकरियां देने तथा किसानों की आय दोगुनी करने के वायदे किये हैं। इसके साथ ही उसने हिन्दुत्व की भावना पर भी अधिक ज़ोर दिया है परन्तु इसके मुकाबले के लिए कांग्रेस जाति जनगणना को तरजीह (अधिमान) दे रही है। चाहे किये जा रहे इन वायदों तथा दावों का बाद में कुछ भी परिणाम निकले परन्तु एक बार तो ये पार्टियां ऐसा कुछ करके सत्ता की कुर्सी तक पहुंचने के लिए पूरा ज़ोर लगा रही हैं।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द