कृषि में पानी की खपत कम की जाए

सब्ज़ इंकलाब से पहले 2.27 लाख हैक्टेयर रकबे से चल कर धान की काश्त इस वर्ष 31.93 लाख हैक्टेयर रकबे पर हुई है। चाहे उत्पादन भी रिकार्ड 208 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच गया है, परन्तु धान की पानी की ज़रूरत अधिक होने के कारण प्रत्येक वर्ष भू-जल का स्तर एक मीटर तक नीचे जा रहा है। लगभग सभी ज़िलों में ऐसी ही स्थिति है। बरनाला, मोगा, पटियाला तथा संगरूर ज़िलों के 10 ब्लॉकों में वर्ष 2030 तक पानी का स्तर 50 मीटर की गहराई पर चले जाने की सम्भावना है। राज्य के 57 ब्लॉक ऐसे हैं जहां भू-जल 200 प्रतिशत से भी अधिक निकाला जा रहा है। इनमें से 12 ब्लॉक ऐसे हैं, जहां पानी का निकास 300 प्रतिशत से भी अधिक है। भारत के केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार 78 प्रतिशत पानी कृषि के लिए इस्तेमाल किया जाता है। 
पंजाब केन्द्रीय चावल पूल में आज 21 प्रतिशत तक योगदान डाल रहा है और भारत सभी देशों से बड़ा चावल निर्यातक बन गया है। इसमें पंजाब का उल्लेखनीय योगदान है। भारत को आत्म-निर्भर ही नहीं, अनाज निर्यात करने के योग्य बनाने के लिए पंजाब का पानी इस्तेमाल किया गया, जो आज नीचे जा रहा है और यह समस्या पैदा हो गई है कि भविष्य में क्या होगा? राज्य का 98.9 प्रतिशत रकबा सिंचाई के अधीन है, इसलिए 14.5 लाख से अधिक ट्यूबवैल चलाए जा रहे हैं। धान के लिए पानी उपलब्ध किया जा रहा है और ट्यूबवैलों के लिए बिजली मुफ्त दी जा रही है। ट्यूबवैलों की संख्या और वार्षिक रिचार्ज से अधिक पानी के निकास के कारण पानी के स्तर का नीचे जाना आज एक बड़ी समस्या बन गई है। नहरी पानी तो बहुत कम रकबे को उपलब्ध है। अगेती बिजाई पंजाब प्रीज़र्वेशन आफ सॉयल वाटर एक्ट-2009 के तहत बंद करने के बावजूद तथा 6 लाख हैक्टेयर रकबा बासमती किस्मों की काश्त के अधीन लाने के बाद भी धान की फसल के लिए सभी ट्यूबवैल निरन्तर चल रहे हैं। 
वर्ष 1973 में राज्य के सिर्फ तीन प्रतिशत क्षेत्र में पानी का स्तर तीन फुट से नीचे था, जो अब मध्य पंजाब के कई क्षेत्रों में 100-150 फुट नीचे तक चला गया है। सैंट्रीफ्यूगल पम्प असफल हो गए हैं और अब पूरी सिंचाई सबमर्सिबल पम्प लगा कर की जा रही है। पंजाब के कुछ हिस्से में भू-जल दूषित भी है। 
सबमर्सिबर पम्पों के साथ गहरी सतह से पानी निकाल कर की गई सिंचाई भूमि को पुन: कलराठी बना देगी। इससे भूमि बंजर हो जाने की आशंका है। वैज्ञानिकों द्वारा चेतावनी दी जा रही है कि भविष्य में सिर्फ पानी का ही संकट पैदा होने की सम्भावना नहीं है, अपितु बिजली संकट भी अपने बुरे प्रभावों से हावी हो सकता है। गहरी सतह से पानी निकालने के लिए अधिक विद्युत् शक्ति की ज़रूरत है। इस समय राज्य के कुल बिजली उत्पादन का अधिक हिस्सा ट्यूबवैलों के माध्यम से पानी निकालने पर खर्च हो रहा है। इस ज़रूरत को पूरा करने के लिए औद्योगिक क्षेत्र में बिजली कट लग रहे हैं। यदि स्थिति यही रही तो भविष्य में सामाजिक तथा अन्य क्षेत्रों पर भी इसके विपरीत प्रभाव पड़ने शुरु हो जाएंगे। 
किसानों को भी चाहिए कि वे पानी की बचत करें। जो अनावश्यक ट्यूबवैल चलते रहते हैं, उन्हें ज़रूरत के अनुसार ही चलाया जाए। इस समय पंजाब का धान का प्रति हैक्टेयर उत्पादन तो दूसरे सभी राज्यों से अधिक है, परन्तु इसकी पानी की प्रति हैक्टेयर पर प्रति किलो खपत भी दूसरे राज्यों से अधिक है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय धान तथा गन्ने के अधीन रकबा कम करके दालों, मोटे अनाज तथा तेल बीजों की फसलों के अधीन रकबा बढ़ाने के लिए अनुसंधान करके विधियां किसानों तक लेकर जाए। इस समय बिजली तथा रासायनिक खादों पर जो सब्सिडी दी जा रही है, वह अर्थशास्त्रियों के अनुसार 30,000 रुपये प्रति हैक्टेयर (12 हज़ार प्रति एकड़) तक है। जो किसान धान के स्थान पर अन्य फसलें लगाएं, उन्हें यह सब्सिडी नकद दे दी जाए। ज़ीरो ड्रिल तथा डी.एस.आर. (सीधी बिजाई) विधियां अधिक से अधिक किसानों के माध्यम से लागू करवा कर ज़्यादा से ज़्यादा पानी की बचत की जा सकती है। जब तक पानी की बचत नहीं की जाएगी और इसकी खपत कम नहीं होगी, सुरक्षित दीर्घकालिक कृषि एवं खाद्य सुरक्षा खतरे में है।