कौमों को निकम्मा बना देती है मुफ़्तखोरी

कौमों को निकम्मा बना देती है मुफ़्तखोरी
मान लो कि मुफ़्त में कुछ भी नहीं मिलता,
भ़ीख की कीमत सदा सम्मान से तोली गई।
(लाल फिरोज़पुरी)
मुफ़्त लेकर खाने वाली कौमें हों, व्यक्ति हों, यहां तक कि चाहे जानवर भी हों, उनका सम्मान मालिक या मुफ़्त में देने वालों का गुलाम हो जाता है। उन्हें देने वाला यदि रात को दिन कहे तो लेने वाले को दिन ही दिखाई देता है तथा यदि दिन को रात कहे तो रात ही दिखाई देती है। पंजाब स्वाभिमान से भरपूर लोगों की धरती है, परन्तु विगत कुछ दशकों से पंजाब के लोगों को, वैसे तो देश भर के लोगों को भी मुफ़्त की वस्तुओं, लालच, वादों तथा गारंटियों ने चुनावों में सिवाय इसके कि इस पार्टी की सरकार से पहले मुफ़्त मिल रहा है, वह कहीं बंद न हो जाये या नई बनने वाली सरकार से और क्या मुफ़्त मिल सकता है, के अतिरिक्त  और कुछ सोचने के लायक ही नहीं छोड़ा। अभी भी केन्द्र सरकार ने पुन: पांच वर्षों के लिए 81.35 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज वितरण करने की घोषणा कर दी है। ठीक है, यदि देश का एक व्यक्ति भी भूखा सोता है तो यह शर्मनाक बात है परन्तु ज़रूरत तो हर हाथ को काम करने की है। मुफ़्त में वस्तुएं देकर निकम्मे तथा आलसी बनाने की नहीं। हमारे समक्ष है कि अमरीका-कनाडा जैसे देशों पर कब्ज़ा करने वाले यूरोपियन देशों ने वहां के वास्तविक मालिकों, जिन्हें वे नेटिव अमरीकन या रैड इंडियन कहते हैं, मुफ़्तखोरी पर लगा कर किस तरह का बना दिया है कि वे सदियां व्यतीत हो जाने पर भी बेहद पिछड़े हुये हैं तथा वहां मालिक बने यूरोपियन तथा अन्य लोग प्रत्येक क्षेत्र में आगे हैं। हम भी पंजाब में पंजाबियों को मुफ़्त की वस्तुओं का आदी बना कर उनके स्वाभिमान और पांवों पर खड़े होने की उनकी सामर्थ्य ही खत्म नहीं कर रहे हैं, अपितु गुरु नानक की पंजाब को जागरूक करने के लिए दी हिदायत ‘घालि खाई किछु हथहु देई।। नानक राहु पछाणहि सेई।।’ तथा ‘किरत करो, नाम जपो, वंड छको’ से स्थायी तौर पर दूर करते जा रहे हैं। परिणाम, लोग निकम्मे हो रहे हैं तथा पंजाब के सिर पर ऋण बढ़ता जा रहा है।
पंजाब के सिर बढ़ रहा है बेहिसाब ऋण
मिट्टी की मुहब्बत में हम आशुफता सरों ने,
वो कज़र् उतारे हैं कि वाजिब भी नहीं थे।
(इ़िफ्तखार आऱिफ)
पंजाब पर ऋण 1984 के काले दौर के दौरान शुरू हुआ। 1984 से 1994 तक केन्द्र ने पंजाब पर सुरक्षा बलों का खर्चा 5800 करोड़ रुपये ऋण के रूप में खड़ा कर दिया था। वर्ष 2000 तक पंजाब पर ऋण सिर्फ 8500 करोड़ रुपये था। इस दौरान 1997-98 में एक पंजाबी प्रधानमंत्री श्री इन्द्र कुमार गुजराल ने यह ऋण माफ करने का वायदा किया था। कुछ किश्तें माफ भी हुईं परन्तु प्रकाश सिंह बादल के दौर में सबसिडियों का दौर शुरू हो गया। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह भी उसी नीति पर चले तथा मौजूदा भगवंत मान की सरकार उससे भी अधिक तेज़ी से ऋण उठा कर मुफ़्त की सुविधाएं देने के मार्ग पर चल रही है। 2006-07 में पंजाब पर ऋण 40 हज़ार करोड़ रुपये हो गया था। 2009-10 में यह ऋण 53,282 करोड़ रुपये तथा वर्ष 2014-15 में 88,818 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। 2019-20 में तो यह ऋण दोगुणा से भी अधिक एक लाख, 93 हज़ार करोड़ रुपये था। उस समय कहा गया कि 31 मार्च, 2020 तक पंजाब के सिर पर 2.48 लाख करोड़ का ऋण होगा। विगत वित्तीय वर्ष के दौरान यह ऋण 3 लाख, 12 हज़ार करोड़ रुपये था। यदि ऋण लेने की यही गति जारी रही तो दो वर्षों में पंजाब के सिर पर ऋण 4 लाख करोड़ से भी अधिक हो जायेगा। प्राप्त जानकारी के अनुसार पंजाब का वर्ष 1997-98 में बिजली सबसिडी का बिल 604.57 करोड़ रुपये वार्षिक था जो अब 20,000 करोड़ रुपये के नज़दीक हो जायेगा। महिलाओं के लिए मुफ़्त ट्रांस्पोर्ट की सबसिडी का बिल ही 547 करोड़ बताया जा रहा है। हमें चिन्ता है कि जिस गति से पंजाब के सिर पर ऋण बढ़ रहा है, उसकी अदायगी कैसे होगी। फरियाद आज़र के लफ़्ज़ों में कहीं हमारी हालत यह न हो जाये :
अदा हुआ न कज़र् और वजूद ़खत्म हो गया।
मैं ज़िन्दगी का देते देते सूद ़खत्म हो गया।।
लोकसभा चुनाव जीतने के लिए और ऋण?
एक जानकारी के अनुसार पंजाब सरकार ने विगत डेढ़ वर्ष में ही 70 हज़ार करोड़ रुपये का नया ऋण लिया है। नि:संदेह उसका दावा है कि इसमें से काफी पैसा पहले लिए ऋण के ब्याज तथा मूल का कुछ हिस्सा लौटाने पर खर्च हुआ है, परन्तु यदि पहले ऋण का ब्याज लौटाने के लिए ही और ऋण लेना पड़ता है तो पंजाब का ऋण के इस मकड़जाल से निकलना असम्भव जैसा ही प्रतीत होता है। उधर चर्चा है कि पंजाब की ‘आप’ सरकार 2024 के लोकसभा चुनाव जीतने के लिए अपनी एक गारंटी कि महिलाओं को प्रत्येक मास एक हज़ार रुपये मुफ्त दिये जाएंगे, भी पूरी करने की तैयारी में है। चर्चा तो यह भी है कि यह एक-एक हज़ार रुपये चुनावों से तीन महीने पहले से शुरू किये जाएंगे जिसका सीधा व स्पष्ट अर्थ है कि पंजाब के सिर पर ऋण और बढ़ेगा। काम करने वाले हाथ और कम होंगे। नि:संदेह पंजाब के किसी संस्थान में जाकर देख लें, प्रत्येक स्थान पर पंजाबी कर्मचारी बहुत कम ही दिखाई देंगे। प्रत्येक स्थान पर प्रवासियों की बहुतायत है। शायद यह मुफ्त की वस्तुओं का ही प्रभाव है। चाहे इसमें कुछ प्रभाव विदेशों में जा रहे पंजाबी युवाओं का भी है।   
अमरीका व कनाडा के आरोप तथा भारत
सबसे पहले यह स्पष्ट करना ज़रूरी है, मेरे सहित पंजाबियों तथा सिखों की बहुसंख्या खालिस्तान या गुरपतवंत सिंह पन्नू की ‘सिख्स फार जस्टिस’ से सहमत नहीं है। पंजाब के सिखों ने पन्नू के रैफरेंडम को भी कोई समर्थन नहीं दिया। सिखों को इस देश में बार-बार बेगानेपन का एहसास करवाये जाने के बावजूद सिख सामूहिक तौर पर देश-भक्त हैं, परन्तु जिस प्रकार अमरीका में गुरपतवंत सिंह पन्नू की भाड़े के हत्यारे लेकर हत्या करवाने की साज़िश सामने आई है, और जिस प्रकार भारत कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के आरोपों की भांति इन आरोपों को एकाएक नकार देने की बजाय इनकी जांच के लिए तैयार हुआ है, उससे भारत की छवि को ठेस पहुंची है। अतीत में एक भारतीय समाचार-पत्र में एक रिपोर्ट पढ़ने को मिली थी कि पाकिस्तान में खालिस्तानियों को दूर करना क्या कठिन है। वहां के गैंगस्टरों को कुछ पैसे दें, आपका काम हो जाएगा। 
यह रिपोर्ट भारत के सुरक्षा से जुड़े एक बहुत बड़े व्यक्ति की ओर संकेत करती थी। वैसे यह नहीं कि अकेले भारत पर ही दूसरे देशों में अपने विरोधियों का सफाया करने के आरोप लगे हैं। इससे पहले  इज़रायल, रूस, अमरीका, उत्तर कोरिया, चीन तथा कई अन्य देशों पर भी ऐसे आरोप लगते रहे हैं, परन्तु हैरानी की बात है कि भारत का नम्बर एक दुश्मन दाऊद इब्राहिम कभी ऐसे निशाने पर नहीं आया। ़खैर, हम खालिस्तानियों या गुरपतवंत सिंह पन्नू के हिंसात्मक तरीकों से सहमत नहीं, परन्तु जिस प्रकार का प्रभाव बन रहा है कि भारत भी इज़रायल की भांति विरोधियों से कानूनी तरीकों से नहीं अपितु स्वयं ही वकील, स्वयं ही जज और स्वयं ही जल्लाद वाली रणनीति अपना रहा है, भारत के सबसे बड़े लोकतंत्र वाली छवि को नुकसान अवश्य पहुंचाएगा।
भारतीय राजदूत से दुर्व्यवहार 
अमरीका के एक गुरुद्वारा साहिब में भारतीय राजदूत तरणजीत सिंह संधू के साथ धक्का-मुक्की किसी भी तरह उचित नहीं ठहराई जा सकती। विचारों में असमानता एक अलग बात है, परन्तु गुरुद्वारा साहिब में भिन्नता होने आए व्यक्ति से चाहे वह सिख हो या गैर-सिख, ऐसा व्यवहार अच्छी बात नहीं। यह सिखी तथा गुरुओं के सिद्धांतों के भी खिलाफ है। फिर तरणजीत सिंह संधू तो सिख कौम के नायक रहे जत्थेदार तेजा सिंह समुंद्री के पोते तथा गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के पहले उपकुलपित बिशन सिंह समुंद्री के बेटे हैं। याद रखें, विदेशों में कत्ल-ओ-गारत या जासूसी कार्रवाइयां चलाने में कोई भी देश अपने राजदूत को शामिल नहीं करता। ऐसी कार्रवाइयां तो दूतावास में भेजे अंडर कवर एजेंट जो अधिकारी बना कर भेजे जाते हैं, की देख-रेख में होती हैं। ज़्यादातर कार्रवाइयां प्रत्येक देश की एजेंसी उसी देश के असामाजिक तत्वों को पैसे से खरीद कर करवाती है। इन कार्रवाइयों में मुख्य भूमिका मौसाद, के.जे.बी., सी.आई.ए., आई.एस.आई., रॉ तथा अन्य देशों की एजेंसियों की ही होती है। अच्छी बात है कि गुरुद्वारा प्रबंधकों ने भारतीय राजदूत के साथ घटित हुई घटना की निंदा की है। 
नई शिक्षा नीति का विरोध
केन्द्र सरकार की नई शिक्षा नीति भारत के संघीय ढांचे के खात्मे की ओर एक बड़ा कदम है। आश्चर्यजनक बात है कि पंजाब सरकार इस नीति का विरोध अभी खुल कर नहीं कर रही जबकि दक्षिण भारत के कई राज्य इसका डट कर विरोध कर रहे हैं। याद रखें, चाहे केन्द्र ने विद्यार्थियों को 22 भाषाओं में से किसी का भी चनय करने की छूट दी है, परन्तु यह गुड़ में लिपटा एक ‘ज़हर’ है, क्योंकि जिसने भी केन्द्र में कोई नौकरी लेनी है, उसे हिन्दी तथा अंग्रेज़ी को ही प्राथमिकता देनी पड़ेगी। यह उसकी मजबूरी बन जाएगी, क्योंकि ये दो भाषाएं ही समूचे भारत में रोज़गार के लिए ज़रूरी बन गई  हैं। वास्तव में यह ‘एक देश, एक भाषा’ की ओर एक मज़बूत कदम है। पंजाबियों और विशेषकर पंजाब सरकार को इसके पंजाबी पर पड़ने वाले प्रभावों से सचेत होना चाहिए। 
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