भाजपा के लिए अपरिहार्य बने रहेंगे शिवराज सिंह चौहान

कमोबेश पिछले एक साल से मध्य प्रदेश के राजनीतिक बीहड़ में एक जुमला पूरे कर्कश स्वर में गूंजता रहा कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले हटा दिया जायेगा यानि चुनाव नये चेहरे के साथ लड़ा जायेगा। संयोग देखिये कि चुनाव सम्पन्न भी हो गये और वैसा कुछ नहीं हुआ। क्यों? क्योंकि मध्य प्रदेश के मानस पटल पर कम-अस-कम भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को उनके जैसा या उनसे बेहतर कोई चेहरा नहीं मिला। यह भी संभावना हो सकती है कि ऐसा भाजपा के स्तर पर सोचा ही नहीं गया हो, लेकिन प्रयासपूर्वक प्रचारित किया जाता रहा कि उनकी बिदाई की जा रही है। इस भूलभुलैय्या में विपक्ष, समाचार माध्यम, कथित बुद्धिजीवी वर्ग विचरण करता रहा, किंतु निकास द्वार कहीं था ही नहीं, जो नज़र आता। उधर, भाजपा नेतृत्व चुनाव की रणनीति बनाता रहा।
भाजपा के बारे में यह बात तो सर्वविदित है कि वह संगठन आधारित राजनीतिक दल है और प्रत्येक गतिविधि पूरी योजना बनाकर संचालित करता है। उसका सांगठनिक ढांचा विश्व राजनीति में बेजोड़ है। जो दल बूथ स्तर की संरचना पर सबसे ज्यादा ज़ोर देता हो, उसकी संगठन क्षमता और समझ का लोहा माना जा सकता है। वह दुनिया का एकमात्र राजनीतिक दल है, जिसके पास दल के लिये कार्य करने वाले पूर्णकालिक, जीवनदायी, समर्पित, निष्ठावान व्यक्तियों की वृहद फौज है। वे ऐसे लोग हैं, जो गहरी सामाजिक समझ रखते हैं, लेकिन चंद अपवादों को छोड़कर उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं होती। भाजपा नेतृत्व चाहे तो उनकी राजनीतिक ज़िम्मेदारी निर्धारित कर देता है। 
बहरहाल यहां यह जान लेते हैं कि शिवराज सिंह चौहान तमाम अफवाहों, संभावनाओं को नकार कर बरकरार क्यों रहे? आगे बढ़ने से पहले इस संभावना को स्पष्ट कर लेना चाहिए कि मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने पर आगामी लोकसभा चुनाव तक भी उनके मुख्यमंत्री बने रहने के भरपूर अवसर हैं। दरअसल, मध्य प्रदेश में सतत 20 वर्ष तक मुख्यमंत्री बने रहने से यह माना जाने लगा कि जनता व कार्यकर्ता उनसे ऊब गये हैं। यह भी कि प्रदेश का संचालन कैबिनेट नहीं बल्कि चंद अधिकारी कर रहे हैं। शिवराज खुद भी अनेक वरिष्ठ नेताओं, कार्यकर्ताओं की उपेक्षा करने लगे हैं। यह भी कि भाजपाइयों के ही काम उनकी सरकार में नहीं हो रहे। सबसे बड़ी दलील कि प्रदेश में सरकार विरोधी लहर है। दरअसल, यह एक ऐसा जुमला है जो राजनीतिक गलियारों में मीडिया और बुद्धिजीवी तबके द्वारा बहुतायत से प्रचारित-प्रसारित किया जाता है। यह ऐसा कयास है, जो कभी सही हो सकता है तो कभी गलत निकलता है। इसका ऐसा कोई पैमाना नहीं है कि कोई सरकार या मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री, सांसद, विधायक कितने समय तक रहेगा तो उसके विरोध में लहर चलने लगेगी। देश में अनेक ऐसे विधायक, सांसद हैं, जो 8-10 चुनावों से कायम हैं। कुछ ने दल-बदल भी किया या कुछ एक ही दल से बरकरार हैं।
कुल मिलाकर यह मसला अटकलबाजी से अधिक कुछ नहीं। इस पर मोहर तब लगेगी, जब मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार कायम रहेगी। यदि सरकार नहीं रहती है, तो इस शब्द को हवा देने वाले आंधी बना देंगे। रही बात शिवराज की तो वह भले ही वह प्रदेश के सर्वमान्य भाजपा नेता न हों, अपितु सबसे अधिक लोकप्रिय व चर्चित तो हैं। वह अपने दल में एकमात्र ऐसे नेता हैं, जो करीब 45 लाख लाडलियों के मामा हैं, करीब एक करोड़ तीस लाख बहनों के भाई हैं और यह तथ्य निर्विवाद है। यह रिश्ता क्या कहलाता है और क्या गुल खिलायेगा, यह भी इस बार के परिणामों से तय हो जायेगा। शिवराज सिंह चौहान भाजपा के अकेले ऐसे नेता हैं, जो चुनाव से पहले भी पूरा प्रदेश नाप चुके थे और चुनाव में सर्वाधिक 165 सभाएं लेकर उन्होंने यह साबित भी किया कि वह जनता के बीच सर्वमान्य भी हैं। शिवराज ने कहा कि नेतृत्व मुझे जो भी ज़िम्मेदारी देगा, मैं निभाऊंगा वगैरह-वगैरह। चुनाव प्रचार के बीच भी एक समय ऐसा आया, जब लगा कि शिवराज धीमे हो गये हैं, लेकिन थोड़े से विराम के बाद उन्होंने फिर से ताकत झोंक दी। एक बात और कि जिन अधिकारियों के रवैये से दल के मंत्रियों-नेताओं की नाराज़गी रही, उन्होंने शिवराज की मंशा के अनुरूप अपनी जवाबदेही को निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वे उन घोषणाओं के अमल पर इतने तत्पर रहे कि शिवराज दूरदराज के दौरों से प्रवास कर भोपाल लौटते तो वहां की गई घोषणाओं की नोट शीट उनकी टेबल पर तैयार रहती।
एक और बात है कि मध्य प्रदेश में चुनाव के परिणाम चाहे जो आयें, शिवराज का प्रभाव कम नहीं होने वाला। अगले वर्ष लोकसभा चुनाव हैं और प्रदेश का दौरा करने में शिवराज का कोई सानी नहीं। अनेक बार खुद की छवि भाजपा से ऊपर होने का संदेश देने वाली भाषा के बावजूद उन्हें दरकिनार करने का फिलहाल तो भाजपा नहीं सोच सकती, ऐसा लगता है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर