अंतत: ठप्प हो गया चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का कार्य

अपने महत्वाकांक्षी ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआई) प्रोजेक्ट में चीन ने अरबों डॉलर का निवेश किया है, लेकिन सफेद हाथी बन चुकी इस परियोजना में उसके सामने निरन्तर कठिनाईयां आती जा रही हैं और साथ ही श्रीलंका से लेकर ज़ाम्बिया तक उसके अनेक भागीदार ऋण के बोझ तले पिसते जा रहे हैं। ताज़ा घटनाक्रम में चीन ने ‘लैंड बेल्ट’ में जिन छह गलियारों की कल्पना की थी, उनमें से एक चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) पर काम बंद हो गया है। इस प्रोजेक्ट में बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट को लम्बे समय से नगीने के तौर पर प्रस्तुत किया जा रहा था, लेकिन विरोधाभास देखिये कि उसी की वजह से सीपीईसी पर गतिरोध बना हुआ है। हालांकि पाकिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनव उल हक काकर ने हाल की अपनी पांच दिन की बीजिंग यात्रा के दौरान ग्वादर पोर्ट पर असहमतियों को दूर करने का प्रयास किया ताकि सीपीईसी पर फिर से काम शुरू हो सके, लेकिन गतिरोध जल्द समाप्त होने के आसार नज़र नहीं आ रहे। 
इसके पीछे एक कारण तो यह प्रतीत होता है कि बीजिंग इस्लामाबाद में सेना द्वारा नियुक्त उसकी प्रॉक्सी सरकार से डील नहीं करना चाहता और पाकिस्तान में आम चुनाव जो इस साल नवम्बर तक हो जाने चाहिए थे, उनके बारे में कुछ पता नहीं है कि वह कब होंगे। दूसरा यह कि पाकिस्तान इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश के लिए चीन से 65 बिलियन डॉलर फंड्स की मांग कर रहा है, जोकि वह देना नहीं चाहता या देने की स्थिति में नहीं है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ग्वादर शहर में चीन के विरुद्ध ज़बरदस्त विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं, क्योंकि गलियारा प्रोजेक्ट के कारण ग्वादर शहर पुलिस राज्य बन कर रह गया है, जिसकी वजह से न केवल स्थानीय लोगों की गतिशीलता पर कुप्रभाव पड़ रहा है कि सुरक्षा बल उनके आने-जाने पर रोक लगाते हुए उनसे उनकी गतिविधियों के संदर्भ में अनावश्यक प्रश्न कर रहे हैं। इस कारण उनकी जीविका भी प्रभावित हो रही है।
सीपीईसी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) प्रोजेक्ट का सबसे बड़ा निवेश है, जिसे 2015 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी दो दिन की पाकिस्तान यात्रा के दौरान लांच किया था। लगभग 45 बिलियन डॉलर मूल्य के 50 से अधिक प्रोजेक्ट्स पर हस्ताक्षर करते हुए चीन ने ‘सिल्क रोड फण्ड’ स्थापित किया ताकि 2030 तक प्लान किये गये सीपीईसी प्रोजेक्ट्स में निवेश किया जा सके। मुख्य प्रोजेक्ट गलियारा बनाने का था जो पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ग्वादर पोर्ट को चीन के काशगर से जोड़ता जोकि दक्षिण-पश्चिम शिनजिंग क्षेत्र में है। निवेश का प्रबंधन करने वाले सिल्क रोड फण्ड को चीनी बैंकों का एक संघ फाइनेंस करता है। प्रोजेक्ट्स का ठेका विभिन्न चीनी कम्पनियां पाकिस्तान की कम्पनियों के सहयोग से लेती हैं। सीपीईसी के तहत इस गलियारे के अतिरिक्त अनेक पॉवर प्रोजेक्ट्स व कई स्पेशल इकनोमिक ज़ोन विकसित किये जाने हैं।
सीपीईसी में भयंकर परेशानियां 2016 से ही आरंभ हो गई थीं। अनेक प्रोजेक्ट्स बीच में ही रुक गये थे, क्योंकि फंडिंग को लेकर अस्पष्टता थी, ठेकेदारों के चयन पर भी विवाद था, नीलामी प्रक्रिया में देरी थी, कर छूट पर मतभेद था और नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट्स मिलने में भी दुश्वारियां थीं। मसलन, ग्वादर पोर्ट के समक्ष बहुआयामी मुद्दे आये जोकि वाटर सप्लाई से आरंभ हुए। सवाद व शादीकौर बांधों को जोड़कर 11.2 बिलियन रुपयों का प्रोजेक्ट था पानी सप्लाई, ट्रीट व वितरण के लिए। इस प्रोजेक्ट में देरी हुई क्योंकि अधिकारियों को यह स्पष्ट नहीं था कि इस प्रोजेक्ट की फंडिंग अनुदान से होगी, ब्याज-रहित ऋण से या चीन के कमर्शियल लोन से। फंडिंग पर अनिश्चितता को लेकर अन्य प्रोजेक्ट्स में भी बाधाएं आयीं, जैसे 600 मेगावाट ग्वादर कोयला पॉवर प्लांट और ग्वादर स्मार्ट पोर्ट सिटी मास्टर प्लान।
ये प्रोजेक्ट्स कमर्शियल चीनी ऋण से फाइनेंस किये गये हैं और नॉन-पेमेंट के विरुद्ध पाकिस्तान सरकार की गारंटी पर इनका बीमा चाइना एक्सपोर्ट एंड क्रेडिट इंश्योरेंस कारपोरेशन (सिनोशोर) ने किया है। सिनोशोर 7 प्रतिशत ऋण सर्विसिंग फीस, हर साल बदलता ब्याज और फाइनेंसिंग फीस लेता है, जिससे पूरा प्रोजेक्ट कज़र् में डूबे देश पर विशाल आर्थिक बोझ बन जाता है। अनेक विशेषज्ञों का मानना है कि निर्माण में जो भारी खर्च आयेगा, उससे पॉवर उत्पादन में वृद्धि का लाभ अर्थहीन हो जायेगा। सीपीईसी में सबसे बड़ी अड़चन जन विरोध है। बलूचिस्तान में स्थानीय लोग ग्वादर पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे हैं। उन्हें डर है कि जीविकोपार्जन के स्थानीय ज़रिये जैसे फिशिंग उनके हाथ से निकल जायेंगे। वह इस बात का भी विरोध कर रहे हैं कि निर्माण कार्य में स्थानीय लोगों की जगह अनस्किल्ड चीनी श्रमिकों को रोज़गार दिया जा रहा है। पोर्ट बनाने के लिए बलूच नागरिकों ने अपनी ज़मीनें चीनियों को बेचने से मना कर दिया है। 
इसके अतिरिक्त ग्वादर पोर्ट चाइना ओवरसीज पोर्ट्स होल्डिंग कंपनी को लीज़ पर दे दिया गया है, जिसका अर्थ यह है कि बीजिंग को लाभ का 91 प्रतिशत हिस्सा मिलेगा और शेष 9 प्रतिशत ही इस्लामाबाद के खाते में आयेगा। ज़हिर है इससे बलूच लोगों में चीन विरोधी जज़्बात भड़कने ही थे। दरअसल, स्थिति को अधिक जटिल पाकिस्तान की सरकार ने भी बना दिया है। वह स्थानीय लोगों की भूमि पर जबरन कब्ज़ा कर रही है और उन्हें दूसरी जगह बसने पर मजबूर कर रही है। इससे बलूचिस्तान में हिंसक विरोध बढ़ा है। मिलिटेंट गुटों ने पाकिस्तान के उन सेना अधिकारियों पर अनेक हमले किये हैं जो चीनी श्रमिकों को शरण दिए हुए थे। अक्तूबर 2023 में बीआरआई के दस वर्ष पूरे होने पर चीन ने श्वेत पत्र जारी करते हुए ‘भ्रष्टाचार के लिए शून्य बर्दाश्त’ का वायदा किया था। उसे तीन रोड प्रोजेक्ट्स 81 बिलियन रुपये की 210 किमी डेरा इस्माइल खान-ज़होब रोड, 19.7 बिलियन रुपये की 110 किमी खुजदार-बसीमा रोड और 8.5 बिलियन रूपये का काराकोरम हाईवे, भ्रष्टाचार के शक में बंद करने पड़े।
 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर