मिड-डे-मील योजना प्रश्न-चिन्हों के घेरे में

पंजाब के ज़िला संगरूर के एक गांव में स्थित एक मैरीटोरियस स्कूल में सरकारी योजना के तहत मध्याह्न भोजन यानि मिड-डे-मील योजना का खाना खाने से एक साथ 75 विद्यार्थियों के बीमार पड़ जाने की घटना ने पूरे प्रदेश में इस योजना को एक बार फिर प्रश्न-चिन्हों के घेरे में ला खड़ा किया है। यह घटना इसलिए भी अधिक अहम हो जाती है, कि संकट-ग्रस्त हुआ स्कूल पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के अपने गृह-गांव से लगभग तीन किलोमीटर के अन्तर पर स्थित है, और कि इस स्कूल को प्रदेश के शिक्षा ढांचे के तहत विशेष होने का दर्जा हासिल है। इस स्कूल में मध्याह्न भोजन खाने के तत्काल बाद बच्चों में उल्टी-दस्त की शिकायत हो जाने पर सिविल अस्पताल में दाखिल कराया गया जहां कई बच्चों की स्थिति चिन्ताजनक हुई भी बताई गई। कुछ बच्चों को उल्टी के साथ खून आने पर उनके अभिभावकों ने निजी अस्पतालों की ओर भी हाथ पांव मारने की कोशिश की। पीड़ित छात्र-छात्राओं ने बताया कि स्कूल में दिये जाने वाले मध्याह्न खाने में से पहले भी मरे हुए कीड़े निकलते रहे हैं, और दूध में से अक्सर दुर्गन्ध आने की शिकायतें भी की जाती रही हैं। डाक्टरों के दल ने इसे विषाक्त भोजन अर्थात फूड-प्वाज़निंग होने का संकेत दिया। सुखद संयोग यह रहा कि इतनी गम्भीर घटना के बावजूद कोई बड़ी त्रासदी घटित नहीं हुई अन्यथा इस घटना ने एक ओर जहां चिन्ता और तनाव की स्थिति को घनीभूत किया, वहीं प्रदेश में मिड-डे-मील योजना पर संकट के बादल भी ला दिये। अब एस.डी.एम. की जांच रिपोर्ट में इस त्रासदी हेतु प्रिंसिपल, वार्डन और ठेकेदार की ओर संकेत किया गया है। जांच में यह भी कहा गया है कि विद्यार्थियों की शिकायतों की ओर कभी किसी समुचित अधिकारी ने ध्यान नहीं दिया।
पंजाब में केन्द्र सरकार की यह योजना अक्सर क्रियान्वयन के पक्ष से प्रश्न-चिन्हों के घेरे में रही है। ऐसी घटनाएं पंजाब के धरातल पर पहले भी कई बार होती रही हैं। इसी वर्ष जुलाई मास में मोहाली के एक स्पोर्ट्स इंस्टीच्यूट में दिये गये भोजन में मृत छिपकली निकलने की घटना के बारे जान कर ही कई खिलाड़ियों की स्वास्थ्य स्थिति नासाज़ हो गई थी। एक वर्ष पूर्व नवम्बर मास में बटाला के एक स्कूल में सरकारी गोदामों से भेजे गये अनाज में कीड़े और सुरसुरी चलते हुए मिली थी। यहां एक दुखद पक्ष यह भी रहा कि घुन-लगे गेहूं की पिसाई से पूर्व शिक्षकों द्वारा बच्चों को गेहूं में से कीड़े बीनने का निर्देश भी दिया गया। इस स्कूल की प्रिंसिपल ने यह माना था कि ड्रम में पड़ा गेहूं खाने योग्य नहीं रहा है। ज़िला जालन्धर के एक तहसील क्षेत्र में एक निजी स्कूल में दूषित एवं विषाक्त पानी पीने से एक दर्जन से अधिक विद्यार्थियों के अस्वस्थ होने का मामला भी प्रबन्धन वर्ग की लापरवाही को ही दर्शाता है। नि:संदेह ये घटनाएं  मिड-डे-मील योजना के प्रति प्रदेश सरकार की उदासीनता को ही दर्शाती हैं। वैसे भी केन्द्र सरकार कई बार प्रदेश की भगवंत मान सरकार को कह चुकी है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब और मध्यम वर्ग के बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए, अधिकाधिक विद्यार्थियों को इस योजना के तहत लाया जाए, और कि बच्चों को यथा-शक्ति कैलोरी-युक्त स्वच्छ भोजन उपलब्ध कराया जाए। तथापि, स्थिति यह है कि कई अन्य राज्यों की तुलना में पंजाब के सरकारी स्कूलों के कुल 18 लाख बच्चों में से लगभग तीन लाख को यह पोषण-युक्त मध्याह्न भोजन नहीं मिल रहा। ये आंकड़े इसलिए किसी पुष्टि के मोहताज नहीं, क्योंकि इन्हें स्वयं प्रधानमंत्री पोषण योजना कार्यालय की ओर से जारी किया गया है। इस योजना के अन्तर्गत पटियाला, बठिंडा, जालन्धर और लुधियाना ज़िला निकृष्तम पायदान पर आते हैं। यहां तक पता चला है कि इन ज़िलों में परोसा जाने वाला भोजन जहां दूषित और खाने-योग्य न रहे अनाज से बनता है, अपितु भोजन में से वांछित पोषण-तत्व भी कम पाये गये हैं। यह स्थिति केन्द्र की इस योजना के प्रति प्रदेश सरकार की संवेदन-हीनता को ही दर्शाती है। यहां तक कि कई स्कूलों में ताज़ा और गर्म भोजन उपलब्ध कराये जाने की अपेक्षा बासी और अध-पका भोजन प्रदान किये जाने की शिकायतें भी कई बार मिली हैं।
हम समझते हैं कि नि:संदेह सरकारी प्रशासन के उच्च स्तर की ओर से इस प्रकार की अति महत्त्वपूर्ण योजना की ओर समुचित ध्यान दिये जाने की बड़ी आवश्यकता है। पंजाब में इस भोजन को तैयार करने वाले रसोइयों के प्रशिक्षित न होने और इस हेतु प्रयुक्त होने वाले अनाज के परीक्षण हेतु समुचित मान्यता-प्राप्त प्रयोगशालाएं भी न होने की शिकायत भी अक्सर की जाती रही है। प्राय: सरकारी स्कूलों/संस्थानों में स्वच्छ पेयजल, स्वस्थ मिड-डे-मील और साफ-सफाई की दुरावस्था के नमूने सामने आते रहते हैं। सम्भवत: इसी कारण केन्द्र सरकार ने पंजाब को इस योजना से सम्बद्ध शिक्षण स्टाफ को प्रशिक्षित करने और मध्याह्न भोजन कतारों में शुमार बच्चों के स्वास्थ्य कार्ड बनाये जाने का भी परामर्श दिया है। हम समझते हैं कि नि:संदेह प्रदेश की भगवंत मान सरकार को इस योजना को अपना ही नीतिगत हिस्सा मान कर इस ओर समुचित ध्यान देना चाहिए। स्कूलों में पढ़ने वाले आज के बच्चे कल के पंजाब और इससे भी आगे देश का भविष्य हैं। इनकी शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति हम जितना अधिक ध्यान देंगे, उतना ही ये बच्चे देश के कल की तस्वीर को बनाने हेतु सक्षम हो सकेंगे। मौजूदा मैरीटोरियस स्कूल की घटना से सबक ग्रहण करके प्रदेश सरकार को जहां सभी विद्यार्थियों को इस योजना के तहत लाये जाने हेतु यत्न करने होंगे, वहीं इस भोजन की पौष्टिकता एवं पोषणता का पालन करना भी लाज़िम बनाना होगा। इस हेतु समुचित प्रशिक्षित स्टाफ और प्रयोगशालाओं की भी व्यवस्था भी की जानी चाहिए।