कनाडा जाने वाले विद्यार्थियों की बढ़ीं मुश्किलें

विगत लम्बे समय से भारत, खास तौर पर पंजाब से, बड़ी संख्या में विद्यार्थी शिक्षा प्राप्त करने और शिक्षा हासिल करने के उपरांत कनाडा, अमरीका, आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और विश्व के कई विकसित देशों में रोज़गार हासिल करके पक्के तौर पर रहने के उद्देश्य से यहां से पलायन करते आ रहे हैं। इस कारण पंजाब में बड़ी संख्या में आइलैट्स सैंटर खुले हुए हैं और बड़ी संख्या में विद्यार्थी इनमें दाखिला ले रहे हैं। इस कारण इमीग्रेशन के लिए काम कर रही ट्रैवल एजेंसियां और एजेंट भी अपना कारोबार चला रहे हैं। इस हिसाब से यह करोड़ों रुपये का कारोबार है। पंजाब से विद्यार्थियों का इस कारण अधिक पलायन हो रहा है, क्योंकि यहां बड़े स्तर पर कृषि आधारित और अन्य उद्योग नहीं लगे और विद्यार्थियों को यहां अपना कोई बेहतर भविष्य नज़र नहीं आता। इसी कारण वे 12वीं करने के बाद विदेशों को रवाना होने की तैयारी करने लग जाते हैं।
लेकिन अब शिक्षा प्राप्त करने और रोज़गार की तलाश में विदेश जाने वाले विद्यार्थियों की मुश्किलें बढ़ती नज़र आ रही हैं। दूसरे कई देशों ने विदेशी विद्यार्थियों के लिए एक तरह से अपने दरवाजे बंद करने शुरू कर दिए हैं। इस संबंधी पहला बड़ा कदम कनाडा ने उठाया है। कनाडा ने स्टडी परमिट आवेदनकर्ताओं के लिए गारंटीड इन्वैस्टमैंट सर्टीफिकेट (जी.आई.सी.) की राशि पहली जनवरी, 2024 से 20635 डॉलर प्रति विद्यार्थी कर दी है जबकि पहले यह राशि 10 हज़ार डॉलर प्रति विद्यार्थी थी। यह राशि कनाडा सरकार द्वारा कनाडा पढ़ने आने वाले विद्यार्थियों को स्टडी परमिट जारी करने से पहले वहां के बैंकों में रखवाई जाती है, जिसमें से विद्यार्थी अपनी ज़रूरत के अनुसार खर्च करते हैं। पहले कनाडा पढ़ने जाने का खर्च प्रति विद्यार्थी 15 से 16 लाख रुपये होता था, जो अब बढ़कर 25 से 26 लाख रुपये हो जाएगा। अब यह भी खबर आ रही है कि कनाडा सरकार पढ़ाई के दौरान काम करने के घंटे भी सीमित करने के बारे में सोच रही है। इस समय कनाडा में पढ़ते विद्यार्थी सप्ताह में 20 घंटे काम कर सकते हैं। कनाडा में विदेशी विद्यार्थियों द्वारा मांग तो यह की जा रही थी, कि सप्ताह में काम करने के लिए घंटे 20 से बढ़ाकर 30 किए जाएं, लेकिन इस संबंधी वहां की सरकार द्वारा संकेत विपरीत मिल रहे हैं। यह भी जानकारी मिल रही है कि कनाडा सरकार ने ग्रैजुएट स्तर की पढ़ाई करने के बाद जो विद्यार्थियों को 18 माह के लिए वर्क परमिट जारी किए जाते हैं, उनको आगे बढ़ाने से भी सरकार हाथ पीछे खींच सकती है। इस संदर्भ में कनाडा के आवास मंत्री मार्क मिल्लर का भी बयान सामने आया है। उन्होंने इस बात की पुष्टि की है कि कनाडा सरकार आने वाले समय में अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों के वीज़ों में कमी करेगी। उनके अनुसार ऐसा कनाडा में शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थियों को पूरी सुविधाएं न मिलने और वहां रहने के दौरान विद्यार्थियों को रोज़गार सहित रहन-सहन की पेश आ रही मुश्किलों को ध्यान में रखकर किया जा रहा है। यह भी संभव है कि कनाडा सरकार अन्य कारणों के अतिरिक्त कुछ विदेशी विद्यार्थियों द्वारा कनाडा आकर कई प्रकार की समाज विरोधी गतिविधियों में शामिल होने, अपराध करने तथा इस कारण बिगड़ रही अमन-कानून की स्थिति के दृष्टिगत भी ऐसे फैसले ले रही हो। आस्ट्रेलिया सरकार द्वारा भी अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों के वीज़ा कम करने संबंधी संकेत दिये जा रहे हैं। इन समाचारों से नि:संदेह भारत तथा विशेषकर पंजाब से कनाडा तथा आस्ट्रेलिया में पढ़ने हेतु जाने वाले विद्यार्थियों में चिन्ता बढ़ेगी और इमीग्रेशन का कार्य कर रही एजेंसियों के कारोबार पर भी व्यापक प्रभाव पड़ेगा। 
इस संबंध में हमारा बड़ा स्पष्ट विचार है कि चाहे मनुष्य हज़ारों वर्षों से रोज़ी-रोटी तथा सुरक्षित जीवन की तलाश में वैध तथा अवैध ढंग से प्रवास करता आ रहा है, और किसी न किसी तरह आगे भी यह सिलसिला जारी रहेगा, परन्तु कोई भी देश दूसरे देश के नागरिकों का तभी स्वागत करेगा यदि उसे उनकी सेवाओं की आवश्यकता होगी, या उनकी आमद से उस देश के विकास को प्रोत्साहन मिलेगा। यदि किसी देश में प्रवासियों की आमद से अमन-कानून के मामले पैदा होंगे, मकानों की कमी पैदा होगी और उसके अपने नागरिकों के लिए रोज़गार के अवसर कम होंगे तो ऐसी स्थिति में वह देश लगातार बाहर से आने वाले प्रवासियों का स्वागत नहीं करेगा। 
इस संबंध में पंजाब के लिए तथा पंजाब की सरकार के लिए ग्रहण करने हेतु सबक यह है कि हमें अपने विद्यार्थियों की शिक्षा तथा रोज़गार के लिए स्वयं बेहतर प्रबंध करने चाहिएं। राज्य में व्यापक स्तर पर शिक्षा उपलब्ध करने के लिए स्तरीय स्कूलों, कालेजों तथा विश्वविद्यालयों का प्रबंध होना चाहिए और इन शिक्षण संस्थानों की फीसें भी विद्यार्थियों की पहुंच में होनी चाहिएं। इसके अतिरिक्त राज्य में व्यापक स्तर पर कृषि आधारित तथा अन्य उद्योग भी लगाए जाने चाहिएं ताकि हमारी नई पीढ़ी को विदेशों में स्तरीय शिक्षा प्राप्त करने तथा रोज़गार हासिल करने के लिए भटकना न पड़े। आने वाली अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियां ऐसे ही संकेत दे रही हैं कि हमें अपने नागरिकों के प्रत्येक पक्ष से भविष्य के लिए स्वयं ही सोचना पड़ेगा, स्वयं ही क्रियाशील होना पड़ेगा। ऐसा दृष्टिकोण तथा ऐसी नीति हमारे देश तथा हमारे प्रांत के लिए भी लाभदायक सिद्ध होगी, क्योंकि मेधावी नौजवानों की हमारे अपने देश को भी बेहद ज़रूरत है।