मोबाइल ने बढ़ाईं रिश्तों में दूरियां

छोटे बच्चे से लेकर बड़ों तक सबके पास मौजूद इस मोबाइल ने दिलों और घरों में दूरियां बढ़ा दी हैं। सभी सदस्य इसी पर व्यस्त रहते हैं, एक ही घर में रहते हुए एक-दूसरे से बात करने का समय उन्हें नहीं मिल पाता। यह चिन्ता का विषय है। लोगों को मोबाइल की इतनी तल लग गई है कि न चाहते हुए भी इसके बिना रह पाना कठिन हो जाता है। वास्तव में मोबाइल ने सबको इस हद तक अपनी गिरफ्त में ले लिया है कि इसके बिना सब सूना लगता है। ऐसा लगता है मानो आदिम युग में आ गए हों। पार्टी में, विवाह में या अन्य किसी समारोह से इकट्ठे होने पर सभी अपने मोबाइल पर ही व्यस्त रहते हैं। शायद उनकी इच्छा ही नहीं होती किसी से मिलने की। इसीलिए शायद एक-दूसरे से न मिल पाने के लिए आज सबके पास समय की कमी का बहाना रहता है। 
आज दूरियां और व्यस्तताएं इतनी बढ़ गई हैं कि मनुष्य को खुद से ही संवाद करने का समय नहीं मिलता। आपस में मिल-बैठकर सुख.दुख बांटने का समय भी किसी के पास नहीं है। बस सन्देश भेज दिया और दायित्व से मुक्त हो गए। मोबाइल ने संवाद और रिश्तों को ऐप्स में समेट दिया है। किसी का हालचाल पूछना, जन्मदिन की शुभकामना देना, पार्टी या शादी में निमन्त्रण देना हो तो वाट्सअप कर दो। देखते-देखते हम में इतने सीमित हो गए हैं कि बाहरी दुनिया से सम्बन्ध-रिश्ते न के बराबर बचे हुए हैं। अब तो समय व्यतीत करने का माध्यम बस मोबाइल रह गया है।
सबकी अपनी-अपनी एक अलग दुनिया है, जिसमें सभी अपने मोबाइल के साथ बस खुश रहते हैं। जब उदास या परेशान होते हैं तब फेसबुक या ट्विटर पर कुछ भी लिखकर पोस्ट कर देते हैं। कुछ ‘लाइक’ और ‘कमेंट’ पाकर खुश या उदास हो जाते हैं। 
मज़े की बात यह है कि अपनों की चिन्ता से अधिक आभासी दुनिया द्वारा चिन्ता किया ज्यादा अच्छा लगता है। बच्चे के पैदा होने की बीमारी की अथवा किसी सम्बन्धी के मरने की खबर रिश्तेदारों से पहले फेसबुक पर डाली जाती है। इस मोबाइल संस्कृति ने सबको आत्म-केन्द्रित कर दिया है। सोते-जागते सदा ही घंटी बजने या मैसेज आने का आभास होता रहता है। मोबाइल की दुनिया बहुत तेज़ी से बदलती जा रही है। मोबाइल के इस आकर्षण बच पाना असम्भव होता जा रहा है।
यह बीमारी बच्चों में भी बढ़ती जा रही है। जब उन्हें फुर्सत मिलती है, तब मोबाइल पर अपना मन बहलाते हैं। आजकल दो-तीन साल के बच्चों की मोबाइल पर तेज़ी से चलती अंगुलियों को देखकर दंग रह जाते हैं। वास्तव में इन बच्चों को मोबाइल की दुनिया में धकेलने में माता-पिता का बहुत योगदान है। फिर वे उनसे परेशान होते हैं कि इसका ध्यान मोबाइल के अलावा कहीं लगता नहीं। मोबाइल का उपयोग उत्पादों और सेवाओं के आदेश देने, प्रतियोगिताओं में भाग लेने, विज्ञापन देने और सेवाएं प्रदान करने के लिए किया जाने लगा है। भुगतान देय तिथियों तथा अन्य सूचनाओं के लिए भी मोबाइल का प्रयोग आज सरलता से किया जा रहा है।
मोबाइल ‘आल इन वन’ हो गया है। इसके आने से हाथ की घड़ी, अलार्म घड़ी, म्यूज़िक सिस्टम, ट्रांजिस्टर, टेप रिकार्डर, कैमरा आदि की आवश्यकता ही नहीं रह गई हैं। यह मोबाइल बुजुर्गों के लिए समय बिताने का एक साधन है। इससे अच्छे या बुरे हर तरह के संस्कार लिए जा सकते हैं। इस नई तकनीक का सदुपयोग अथवा दुरुपयोग करना हमारे अपने हाथ में है। (अदिति)