मैं महात्मा बुद्ध नहीं 

हमारे घर एक बिल्ली का बच्चा बारिश में भीगता हुआ पहुंच गया। बेटी ने उस ठंड से कांपते बच्चे को देखा और बताया कि इसके पैर में चोट लगी है। खून टपक रहा है। 
मैंने डिटोल की शीशी उठाई और थोड़ी-सी रूई भी ली। मैं घबराता सा उस बिल्ली के बच्चे के पास गया। मुझे लगता रहा था कि यह बच्चा डर कर जैसे-तैसे लंगड़ाता भाग जायेगा। पर हैरानी की बात कि वह भागा नहीं। मैंने रूई से टपक रहे खून को साफ किया और थोड़ी सी डिटोल लगा दी। थोडे दर्द के बाद वह धीरे-धीरे बारिश में भीगता कहीं खो गया।
एक महात्मा बुद्ध थे। जिन्होंने ऐसे ही शिकार से घायल हंस को बचाया था। घावों पर मरहम लगाया था। चचेरे भाई ने महाराज शुद्धोधन को शिकायत की थी। यह शिकार मेरा था। महाराज ने हंस को भरे दरबार में छोड़ दिया। सब जानते हैं कि हंस उडकर महात्मा बुद्ध की गोद में बैठ गया था। पर मैं महात्मा बुद्ध नहीं और न ही इसका इस बात से कोई संबंध है।
पर मजेदार बात यह है कि वह बिल्ली का बच्चा उसके बाद भी आता रहा। मैं उसके घाव पर बेटी की मदद से डिटोल लगाता रहा। वह डिटोल लगवा कर उसी तरह गायब हो जाता। कुछ दिनों में उसका घाव ठीक हो गया। फिर उसकी म्याऊं-म्याऊं भी कहीं खो गई। पर मैं कहता हूं कि मैं महात्मा बुद्ध नहीं। इसलिए वह बिल्ली का बच्चा ठीक स्वस्थ होकर गायब हो गया। 

मो. 9416047075