चिन्ता का विषय है नकली व घटिया दवाइयों का निर्माण 

देश की 54 दवा निर्माता कम्पनियाें के कफ  सिरप के 128 सैंपलों का गुणवत्ता में खरा नहीं उतर पाना वास्तव में चिंता का विषय होने के साथ ही किसी जघन्य अपराध से कम नहीं आंका जाना चाहिए। मामला सीधा स्वास्थ्य से जुड़ा होने के साथ ही देश की अस्मिता को भी प्रभावित करने वाला है। दरअसल भारतीय दवा निर्माता कम्पनियों द्वारा निर्यात किए जाने वाले कफ  सिरप की गुणवत्ता को लेकर गाम्बिया में 70 और उज़्बेकिस्तान के 18 बच्चों की कफ  सिरप के कारण किडनी पर विपरीत प्रभाव पड़ने से मौत होने के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह मुद्दा गंभीरता से उठ गया था। ऐसे हालात में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गंभीर चिंता जताने में कोई देरी नहीं की। लाख सफाई देने के बावजूद इससे न केवल देश की प्रतिष्ठा पर प्रभाव पड़ा है अपितु भारत के दवा उद्योग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदा होना पड़ा है। हालांकि इस घटना के बाद भारत सरकार ने 1 जून, 2023 से ही देश से बाहर निर्यात होने वाले कफ  सिरप की गुणवत्ता व मानकों पर खरा होने का सरकारी प्रयोगशाला से परीक्षण कराकर विश्लेषण प्रमाण-पत्र प्राप्त करना ज़रुरी कर दिया है।
कोरोना का उदाहरण हमारे सामने हैं जब अमरीका द्वारा मलेरिया की दवा प्राप्त करने के लिए भारत पर दबाव बनाया गया, वहीं दुनिया के देशों को सर्वाधिक कोरोना वैक्सीन उपलब्ध कराने में भारत की भूमिका को समूचे विश्व द्वारा सराहा गया। ऐसे में कफ सिरप की गुणवत्ता को लेकर उठाया गया प्रश्न चिन्ह ना केवल चिंता का विषय है अपितु विश्वसनीयता को भी प्रभावित करता है। दवाओं के निर्यात में भारत की भूमिका को इसी से देखा जा सकता है कि भारत द्वारा वित्तीय वर्ष 2022-23 में 17.6 बिलियन डालर के तो केवल कफ  सिरप का निर्यात किया गया। दुनिया के देशों की टीकों की मांग की 50 प्रतिशत पूर्ति भारत द्वारा की जा रही है। अमरीका में जेनेरिक दवाओं की 50 प्रतिशत मांग को हमारे यहां से पूरी की जा रही है। इंग्लैण्ड में दवाओं की मांग की 25 प्रतिशत पूर्ति भारत द्वारा की जा रही है। समूचे विश्व में भारतीय दवाओं की मांग है। इसका एक कारण गुणवता है तो दूसरी और तुलनात्मक रूप से सस्ती होना भी है। ऐसे में कफ  सिरप के कुछ सैंपलों का गुणवत्ता मानकों पर खरा नहीं उतरने की रिपोर्ट पर भारत सरकार गंभीर हो गई, परन्तु सवाल यह उठता है कि ऐसे हालात ही क्यों आएं? आखिर निर्यात करने वाली दवा कम्पनियों का भी कोई दायित्व होता है। जब कोई वस्तु विदेश में निर्यात की जाती है तो गुणवत्ता मानकों पर खरी हो, यह तो सुनिश्चित किया जाना ज़रूरी हो जाता है। वैसे भी दवा जीवन रक्षक होती है। अगर यह जीवन रक्षक दवा ही जीवन लेने का कारण बन जाती है तो यह गम्भीर अपराध हो जाता है। 
इसमें कोई दो राय नहीं कि भारत सरकार गुणवत्ता को लेकर और अधिक गंभीर हो गई है, परन्तु सैंपल जांच के जो परिणाम प्राप्त हुए, वे अपने आप में गंभीर हो जाते हैं। प्राप्त सरकारी आंकड़ों के अनुसार केन्द्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन संस्थान द्वारा विभिन्न कम्पनियों के कफ  सिरप के  सैंपल्स की जांच की गई तो इनमें से 54 कम्पनियों के 128 सैंपल गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरे। अब कहा यह जा रहा है कि केवल 6 प्रतिशत सैंपल्स विफल रहे हैं,  परन्तु सवाल 6 प्रतिशत का नहीं है। यह सफाई भी नहीं दी जा सकती क्योंकि सैंपल तो एक भी विफल होता है तो वह किसी की जान लेने का कारण बन सकता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही गुजरात के 385 सैंपसों में से 20 कम्पनियों के 51 नमूने खरे नहीं उतरे। इसी तरह से मुम्बई के 523 सैंपल में से 10 दवा निर्माता कम्पनियों के 18 सैंपल्स विफल रहे। चंडीगढ़ के 284 सैंपल्स में से 10 कम्पनियों के 23 और गाज़ियाबाद के 502 सैंपल्स में से 9 कम्पनियों के 29 सैंपल गुणवत्ता पर खरे नहीं उतरे। सवाल यह है कि यह तो गुणवत्ता मानकों की जांच से सामने आया है और यह तो तब है जब दवा निर्माता कम्पनियों का अपना परीक्षण का सेटअप होता है। इससे यह भी साफ  होता है कि दवा निर्माता कम्पनियों की प्रयोगशालाएं गुणवत्ता जांच को लेकर उतनी गंभीर नहीं है जितनी गंभीरता होनी चाहिए। इससे भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि देश में नकली दवाओं का व्यापार भी खूब फल फूल रहा है। सवाल यह भी उठता है कि कफ  सिरप की मांग और उपयोग का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि सर्दियों में कफ  सिरप की मांग बहुत अधिक बढ़ जाती है। वहीं कुछ कफ  सिरप का उपयोग तो नशे के रूपम में करने की चर्चा भी आम है। केन्द्र सरकार का कहना है कि सरकार द्वारा 125 से अधिक कम्पनियों का जोखिम आधारित विश्लेषण किया गया जिसमें से 71 कम्पनियों को नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा। 18 कम्पनियों को बंद करने के नोटिस दिए गए हैं। इसे सरकार की सकारात्मक पहल माना जा सकता है, परन्तु जो कुछ किया जा रहा है वह नाकाफी है। सरकार को कड़े कदम उठाने ही होंगे। 

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