आदित्य एल-1 खोलेगा पूरी दुनिया के लिए सौर रहस्य

इसरो का आदित्य-एल 1 स्पेसक्राफ्ट 126 दिनों की यात्रा के बाद आखिरकार 15 लाख किमी की दूरी तय करके इसरो द्वारा अपने पूर्व नियत ठिकाने पर पहुंच गया। इस अत्यंत जटिल अंतरिक्षीय अभियान को इसरो ने पूराकर इतिहास रचा, तो अब चुनौती अगले ऑर्बिटल पीरियड यानी 178 दिन तक इस लैंग्रेज प्वाइंट पर इसे बनाये रखना है। इतालवी-फ्रेंच गणितज्ञ जोसेफी-लुई लैग्रेंज के नाम पर बना लैग्रेंज प्वाइंट-1 पूर्णतया स्थायित्व वाला नहीं है, इसलिए स्पेसक्राफ्ट को वहां बनाए रखने और किसी दूसरे स्पेसक्राफ्ट्स से टकराव की आशंका से बचाने के लिए आदित्य एल-1 की गति पर न सिर्फ लगातार सजग नज़र रखनी होगी बल्कि स्टार, सन, जैसे विभिन्न सेंसर, मैग्नोमीटर, जाइरोस्कोप, कंट्रोल इलेक्ट्रॉनिक्स और एक्चुएटर जैसे रिएक्शन व्हील्स, मैग्नेटिक टॉर्क और रिएक्शन कंट्रोल थ्रस्टर्स या नोदकों की मदद उसकी कक्षा में बनाए रखना होगा। काम कठिन है पर इसरो की कार्यकुशलता का जो कीर्तिमान अभी तक रहा है, उससे इसमें संदेह की गुंजाइश नहीं कि वह न सिर्फ इसमें सफलता पाएगा बल्कि इसमें यह भी सुनिश्चित लगता है कि आदित्य एल-1 सन अर्थ लेग्रेंज प्वाइंट-1 पर अपने सातों पेलोड की सहायता से और उनके साथ चक्कर लगाता हुआ अपने जीवन के पांच साल पूरे करेगा। 
अगले पांच सालों तक ग्राउंड स्टेशन पर प्रतिदिन 1,440 तस्वीरें भेजने के साथ निर्धारित अध्ययनों के लक्ष्य भी पूरे करेगा। 2 सितम्बर 2023 को सुबह 11 बजकर 50 मिनट पर जब आदित्य एल-1 को पीएसएलवी सी 57 के एक्सएल संस्करण वाले रॉकेट के जरिए श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से प्रक्षेपित किया गया और इसरो ने इसे 63 मिनट 19 सेकेंड बाद पृथ्वी की 235 किलोमीटर गुणे 19,500 किलोमीटर की कक्षा में स्थापित कर दिया तभी सभी को यकीन हो चला था कि यह अभियान अवश्य सफल होगा। हालांकि इसके बाद तमाम कक्षाओं में भ्रमण करते, चक्कर काटते हुये इसे अपने नियत स्थान पर पहुंचाने के लिये इसरो के वैज्ञानिकों ने जो कौशल दिखाया, वह अद्भुत है। सितंबर में चार बार और अक्तूबर में एक बार इसकी कक्षाओं में बदलाव करके इसे सही रास्ते पर लाया गया, वह कतई आसान नहीं बल्कि बेहद जटिल कार्य था। इसे इसरो के वैज्ञानिकों ने सफलतापूर्वक पूरा किया। इस सफलता के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह बयान सर्वदा उपयुक्त है कि सबसे जटिल और पेचीदा अंतरिक्ष अभियानों को साकार करने में हमारे वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम का यह प्रमाण है।
बेशक देश के लिये इसरो ने बड़ा काम कर दिखाया है और उसे गर्व का अवसर दिया है पर वस्तुत: यह सफलता वैश्विक महत्व और उपादेयता की है। आदित्य एल-1 सूर्य का अध्ययन करेगा, सूर्य समूचे संसार के लिये है। सूर्य की वजह से ही पृथ्वी पर जीवन है। सूर्य का अध्ययन करके ये समझा जा सकता है कि सूर्य में होने वाले बदलाव अंतरिक्ष और पृथ्वी पर जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं और भविष्य में कैसे कर सकते हैं? इसलिए यह अध्ययन पूरी मानवता के लाभ का हेतु बनेगा मात्र भारत के लिये नहीं। इसरो चीफ एस. सोमनाथ ने कहा भी कि आदित्य एल-1 मिशन पूरी दुनिया के लिए है, अकेले भारत के लिए नहीं। सूर्य से चुंबकीय कणों का विस्फोट होता है, इससे जो सोलर फ्लेयर या लपटें निकलती हैं, उससे पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र हमें बचा तो लेता है पर यदि ये धरती तक पहुंच जाएं तो तबाही आ जाए। पृथ्वी की तरह अंतरिक्ष में सौर भूकम्प होते हैं जिन्हें सौर कम्पन कहते हैं, ये पृथ्वी के भू-चुंबकीय क्षेत्रों को बदल सकते हैं। इस बदलाव से सोलर फ्लेयर या सौर तूफान हमारे लिये घातक सिद्ध हो सकते हैं। अगर ये लपटें अंतरिक्ष में मौजूद उपग्रहों से टकरा जाएं तो उपग्रह काम करना बंद कर देंगे और पृथ्वी पर संचार तंत्र ही नहीं इससे जुड़ी तमाम चीजें एकबारगी ठप हो जाएंगी। ऐसी विषम स्थिति की कल्पना भी भयावह है। 
सूर्य पर होने वाले विस्फोटों की निगरानी से वैज्ञानिकों के पास सोलर फ्लेयर की गतिविधियों, सूर्य की विस्फोट प्रक्रियाओं के बारे में ज्यादा समझ होगी जो संभावित सौर विस्फोटों के लिए प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली बनाने के काम आ सकती है। सौर विस्फोटों की पूर्व चेतावनी देने में मदद मिलेगी जिससे उनके चलते हो सकने वाले आघात को कम करने के लिए उचित कदम उठाए जा सकेंगे। फिर भले इससे रोका न जा सके पर इससे निपटने के लिए कदम उठाए जा सकेंगे। आदित्य एल-1 इसके मिजाज का अध्ययन करेगा, जिसके निष्कर्ष वैश्विक लाभ के होंगे। कोरोनल मास इजेक्शन इसकी वजह बनती है जिसका अध्ययन करने के लिए सूर्य की सतत निगरानी ज़रूरी है और यह आदित्य एल-1 करेगा। पता लग सकेगा कि कोरोनल मास इजेक्शन कहां से बनते, कैसे विकसित होकर सौर मंडल में फैलते हैं। सूर्य की सबसे बाहरी परत कोरोना का तापमान कई लाख डिग्री सेल्सियस है। जबकि सूर्य के आंतरिक परत प्रकाशमंडल का तापमान बस 6,000 डिग्री सेल्सियस। सूर्य की यह परत प्रकाश उत्सर्जित करती है, जो जीवन के लिए महत्वपूर्ण है। यह रहस्य है कि कोरोना सूर्य की आंतरिक परतों की तुलना में बहुत अधिक गर्म कैसे है? कोरोना के गर्म होने के पीछे भौतिक विज्ञान कैसे काम करता है? 
इसरो ने जिस सटीकता के साथ आदित्य एल-1 को उसके मुकाम हेलो ऑर्बिट तक पहुंचाया है ताकि आदित्य को लगातार घूमती पृथ्वी व सूर्य के बीच काम करने के लिए कम से कम ईंधन खर्च हो, उसकी यह महारत और अभ्यास आने वाले वर्षों में दूसरे जटिल और बड़े अंतरिक्ष मिशन को सफल बनाने में बहुत काम आने वाला है। आगामी वर्षों में इसरो शुक्र और मंगल ग्रह के लिए मिशन भेजने की तैयारी कर रहा है। दूसरे ग्रहों के लिए भेजे जाने वाले मिशन में उसको इस अनुभव का लाभ मिलेगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर