सीटों के बंटवारे से कुछ राज्यों में कांग्रेस व वाम को लाभ संभव

‘इंडिया’ गठबंधन के घटक दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर बातचीत जोर-शोर से शुरू हो गयी है। कांग्रेस आलाकमान ने अंतत: प्रत्येक राज्य में राजनीतिक स्थिति की बारीकियों को ध्यान में रखते हुए ‘इंडिया’ के साझेदारों के बीच समझौतों को शीघ्र पूरा करने की आवश्यकता को समझा है। यह एक स्वागत योग्य घटनाक्रम है। शुरुआत करने के लिए कांग्रेस और दो वामपंथी दल सीपीआई और सीपीआई (एम) केरल के साथ एक अलग स्तर पर व्यवहार करने पर सहमत हुए हैं, जहां सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाला वाम मोर्चा और कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट लड़ेंगे। 20 लोकसभा सीटों के लिए वहां दोनों आपस में ही चुनाव लड़ेंगे परन्तु जो भी जितनी भी सीटें जीतेगा वह ‘इंडिया’ गठबंधन की ही जीत होगी क्योंकि वहां भाजपा उनके लिए कोई खतरा नहीं है। फिर बात बंगाल की है जहां वाम मोर्चा बेहद कमज़ोर स्थिति में है और उसने राज्य में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस दोनों से लड़ने का फैसला किया है। अगर कांग्रेस तृणमूल के साथ गठबंधन करने का फैसला लेती है तो वामपंथी छोटे सहयोगी इंडियन सैक्युलर फ्रंट (आईएसएफ ) के साथ लोकसभा चुनाव अकेले लड़ेंगे।
इसके अलावा चार राज्य हैं—तमिलनाडु, महाराष्ट्र, बिहार और झारखंड, जहां ‘इंडिया’ गठबंधन एक साथ काम कर रहा है और कांग्रेस प्रमुख राजनीतिक पार्टी नहीं बल्कि साझेदारों में से एक है। इनमें से पहले से ही द्रमुक के नेतृत्व वाले गठबंधन के तहत तमिलनाडु में सीपीआई और सीपीआई (एम) के पास दो-दो सीटें हैं। उम्मीद है कि यह पैटर्न 2024 के चुनावों में भी जारी रहेगा। अन्य तीन राज्यों में बिहार में सीपीआई एक सीट के लिए बातचीत कर रही है जबकि अधिक शक्तिशाली सीपीआई (एमएल) लिबरेशन न्यूनतम दो सीटों के लिए बातचीत कर रही है। जद (यू) और राजद दोनों को अंतत: यह स्वीकार करना पड़ सकता है।
अब ऐसे राज्य हैं जहां कांग्रेस भाजपा या गैर-‘इंडिया’ गठबंधन वाली क्षेत्रीय पार्टी से लड़ने वाली ‘इंडिया’ गठबंधन की मुख्य पार्टी है। साथ ही सीपीआई और सीपीआई (एम) के पास भी अपने छोटे आधार हैं जो ‘इंडिया’ गठबंधन के उम्मीदवारों की जीत में प्रभावी योगदान दे सकते हैं। ये राज्य हैं असम, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान और छत्तीसगढ़।
असम में लोकसभा की 14 सीटें हैं। वर्तमान में नौ भाजपा के पास, तीन कांग्रेस के पास, एक एआईयूडीएफ  के साथ और एक निर्दलीय हैं। ‘इंडिया’ गठबंधन में प्रमुख पार्टी के रूप में कांग्रेस सीपीआई (एम) और सीपीआई को एक-एक सीट देने पर विचार कर सकती है। दोनों पार्टियों का विशिष्ट आधार है और उनके पास पहले भी लोकसभा में सदस्य थे। असम को मुख्यमंत्री डॉ. हिमंत बिस्वा शर्मा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का मुकाबला करने के लिए एक मज़बूत ‘इंडिया’ गठबंधन के संयोजन की आवश्यकता है।
फिर ओडिशा में 21 सीटें हैं जिनमें से 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजू जनता दल (बीजेडी) को 12, भाजपा को 8 और कांग्रेस को एक सीट मिली थी। ‘इंडिया’ गठबंधन को भाजपा और बीजेडी दोनों से लड़ना है। दोनों को प्रभावी ढंग से टक्कर देने के लिए कांग्रेस आसानी से सीपीआई और सीपीआई (एम) को एक-एक सीट दे सकती है। दोनों पार्टियों का जिलों में सीमित आधार है और वामपंथी जन संगठनों के सक्रिय समर्थन से कांग्रेस को अत्यधिक लाभ होगा।
जहां तक आंध्र प्रदेश की बात है तो यह राज्य कभी कम्युनिस्टों का गढ़ थाए, लेकिन अब यहां जगन मोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली वाईएसआरसीपी का दबदबा है। 2019 के चुनाव में राज्य की 25सीटों में से वाईएसआरसीपी को 22 और तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) को दो सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा और कांग्रेस को कोई सीट नहीं मिली। जगन की बहन के कांग्रेस में शामिल होने से प्रदेश कांग्रेस थोड़ी मज़बूत हुई है, परन्तु यह पर्याप्त नहीं है। ऐसे कुछ निर्वाचन क्षेत्र हैं जहां वामपंथियों का समर्थन आधार दस प्रतिशत से अधिक है। टीडीपी भाजपा के साथ जा सकती है, इसलिए कांग्रेस और दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों का सम्पूर्ण गठबंधन अच्छी चुनावी टक्कर दे सकता है। सीपीआई और सीपीआई (एम) दोनों को कांग्रेस एक से दो सीटें दे सकती है।
इसी तरह राजस्थान में चार सीटों पर सीपीआई (एम) का मज़बूत आधार है। हालांकि पार्टी पिछले विधानसभा चुनाव में अपनी सीटें हार गई, लेकिन वह राज्य की एक सीट से चुनाव लड़ने और जीतने की क्षमता रखती है। चुनावी गठबंधन को मज़बूत करने के लिए कांग्रेस को राजस्थान में सीपीआई (एम) को एक सीट देने पर विचार करना अच्छा रहेगा। कांग्रेस को समाजवादी पार्टी से भी बातचीत करनी होगी, क्योंकि पार्टी का राज्य में चार से पांच लोकसभा क्षेत्रों में अच्छा जनाधार है।
संक्षेप में इस चुनावी लड़ाई में ‘इंडिया’ गठबंधन का उद्देश्य घटक राजनीतिक पार्टियों की संगठनात्मक शक्ति का इष्टतम उपयोग करना होना चाहिए। कांग्रेस निश्चित रूप से ‘इंडिया’ गठबंधन की प्रमुख पार्टी है तथा वामपंथियों सहित सभी भाजपा विरोधी ताकतों की एकजुटता से इसकी संभावनाएं और अधिक उज्ज्वल हो गयी हैं। 2024 के लोकसभा चुनावों में साम्प्रदायिकता और अधिनायकवाद की ताकतों के खिलाफ लड़ाई में देश को आगे ले जाने के लिए कांग्रेस और वामपंथियों को एक ठोस कार्यक्रम के साथ गठबंधन का आधार तैयार करना होगा। (संवाद)