राजस्थान चुनाव हार चुकी कांग्रेस में अब ‘रगड़ाई’ के मायने

पिछले चार सालों से राजस्थान की राजनीति, खासकर कांग्रेस में ‘रगड़ाई’ शब्द खूब चर्चा में रहा है। मुख्यमंत्री रहते हुए अशोक गहलोत अक्सर ‘रगड़ाई’ का जिक्र करते थे। जब वह ऐसा कहते तो उनके निशाने पर सचिन पायलट हुआ करते थे और उनका आशय पायलट के ‘कम अनुभव और उन्हें बहुत जल्दी बहुत कुछ मिल जाने’ से हुआ करता था। अब प्रदेश में चुनाव हो चुके हैं, कांग्रेस सत्ता गंवा चुकी है और भाजपा की सरकार है। सबकुछ बदल गया है लेकिन कांग्रेस में ‘रगड़ाई’ की गूंज अभी भी बरकरार है। एक फर्क आया है, पहले गहलोत ‘रगड़ाई’ का राग अलापते थे और अब यह जिम्मा पायलट ने संभाल लिया है। यानी अब पायलट के निशाने पर गहलोत आ गए हैं। जयपुर में युवक कांग्रेस की बैठक में पायलट ने अपने भाषण में ‘रगड़ाई’ का जिक्र करके जाहिर कर दिया है कि राज्य के कांग्रेस नेताओं में खटास अभी भी बरकरार है। पायलट ने संगरिया के विधायक और युवक कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अभिमन्यु पूनिया को टिकट मिलने के संदर्भ में अपनी बात कही। पायलट बोले कि चुनावों में टिकट वितरण के समय बहुत कबड्डी चली। यह प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा भी जानते हैं और युवक कांग्रेस अध्यक्ष अभिमन्यु पूनिया भी। हमारी बड़ी पार्टी है, सभी की राय होती है। फिर तय किया गया कि किसी युवा को टिकट दिया जाए और रगड़ाई किए हुए को टिकट मिले। तब कहीं जाकर अभिमन्यु को संगरिया से टिकट मिला।
विधायक अभिमन्यु पूनिया सचिन पायलट के खास लोगों में गिने जाते हैं। पायलट शुरू से ही चाहते थे कि पूनिया को संगरिया से टिकट मिले लेकिन गहलोत और प्रदेशाध्यक्ष डोटासरा की पसंद शबनम गोदारा थीं। संगरिया के टिकट के लिए लंबी मशक्कत चली और आखिरकार पायलट  अपने नज़दीकी अभिमन्यु को टिकट दिलवाने मे कामयाब रहे। पूनिया के प्रचार में पायलट ने संगरिया का दौरा भी किया। पूनिया पचास हजार वोटों से जीते। युवक कांग्रेस की बैठक में पायलट ने इस बात का जिक्र यूं ही नहीं किया बल्कि उन्होंने जानबूझ कर गहलोत पर तंज कसा है। या यूं कहें कि अभिमन्यु के बहाने उन्होंने गहलोत पर निशाना साधा है। 
हालिया विधानसभा चुनाव के दौरान गहलोत और पायलट के बीच ‘सब कुछ ठीक होने’ की बातें प्रचारित की गईं लेकिन राजस्थान की राजनीति की समझ रखने वाले लोगों को कभी इस पर यकीन नहीं हुआ।   गहलोत और पायलट के बीच जिस तरह का घटनाक्रम चार साल तक चला है, उससे दोनों नेताओं में बात ‘मतभेद’ से बढ़कर ‘मनभेद’ तक जा चुकी है। दोनों में दूरियां वर्ष 2018 से ही बढना शुरू हो गई थीं। तब राज्य में कांग्रेस के बहुमत में आने पर सचिन को उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री उन्हें ही बनाया जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पायलट ने 2020 में साथी विधायकों के साथ गहलोत के  खिलाफ  बगावत की अगुवाई की। इसका खामियाजा उन्हें उप-मुख्यमंत्री तथा कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी खोकर भुगतना पड़ा। पिछले साल गहलोत को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर राज्य में सत्ता परिवर्तन का प्रयास सफल हो जाता तो भी पायलट मुख्यमंत्री बन सकते थे लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
 इस दौरान गहलोत बार-बार ‘रगड़ाई’ का जिक्र कर पायलट पर निशाना साधते रहे। गहलोत कहते रहे कि बिना रगड़ाई के युवाओं को सबकुछ मिल गया है, युवा जितनी जल्दबाजी करेंगे, उतनी ठोकर खाते रहेंगे। जब-जब गहलोत अपने बयानों में रगड़ाई का जिक्र करते तो उनका आशय  मेहनत करके अनुभव हासिल करने से होता और साथ में यह इशारा भी कि पायलट को सब कुछ बिना मेहतन मिलता रहा है। गहलोत यह कहते रहे कि पार्टी में जो जितनी मेहनत करता है, उसके हिसाब से उसको जिम्मेदारी मिलनी चाहिए।  गहलोत के बयानों के जवाब में पायलट को कहना पड़ा था कि मेरी रगड़ाई हुई या नहीं, इसका जवाब जनता देगी।
बयानों के तीर चलते रहे और दोनों नेताओं के बीच तल्खी बढ़ती गई। स्थिति संभालने के लिए समय-समय पर राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे ने पायलट और गहलोत को दिल्ली बुलाकर उनसे बात की। बैठकों के बाद कांग्रेस आलाकमान ने दोनों नेताओं में सुलह का ऐलान किया लेकिन धरातल पर कुछ नहीं बदला। जब तक कांग्रेस सरकार रही, पायलट ने मुख्यमंत्री गहलोत और उनकी सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ा। पिछले साल दौसा में पिता की पुण्यतिथि पर सचिन पूर्ववर्ती वसुंधरा सरकार के खिलाफ  भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच में निष्क्रियता के लिए गहलोत सरकार पर निशाना साधने से बाज नहीं आए। सचिन ने तब राजस्थान लोक सेवा आयोग को भंग करके इसका पुनर्गठन करने, सरकारी नौकरियों के पेपर लीक होने से प्रभावित बेरोज़गारों को मुआवजा देने और वसुंधरा सरकार के भ्रष्टाचार की उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग उठाई लेकिन इस पर कोई कदम उठाने के बजाय तत्कालीन मुख्यमंत्री गहलोत ने दिमागी दिवालियेपन की बात कह डाली।  
मुख्यमंत्री गहलोत की हार्दिक इच्छा पायलट को पार्टी से बाहर देखने की रही लेकिन पायलट ने पार्टी छोड़कर जाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसमें कोई दोराय नहीं कि पायलट बड़े नेता और जाना-माना चेहरा हैं लेकिन गहलोत ने उनकी महत्वाकांक्षाओं को कुचलने में कोई कसर नहीं छोड़ी। विधानसभा चुनावों के दौरान पायलट खामोश बैठे रहे लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। कांग्रेस सत्ता से बाहर हो चुकी है। पार्टी में गहलोत का जादू अब कितना चलेगा या नहीं चलेगा, कोई कुछ नहीं कह सकता। नेता प्रतिपक्ष का चयन भी होना है, ऐसे में पायलट ने ‘रगड़ाई’ राग अलाप कर माहौल को गर्म करना शुरू कर दिया है। उन्होंने इसके लिए मौका भी युवक कांग्रेस की बैठक को चुनाए जिसके प्रदेशाध्यक्ष उनके खास अभिमन्यु  पूनिया हैं।