इस बार सहयोगियों के साथ सीटें साझा करने में कांग्रेस अधिक उदार

बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार द्वारा संयोजक का पद ठुकरा दिये जाने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ का अध्यक्ष बनाये जाने के फैसले से कांग्रेस पार्टी की ज़िम्मेदारियां बढ़ गई हैं।
चुनाव से पहले साझेदारी बनाना अपेक्षाकृत आसान है, लेकिन असली चुनौती सीटों पर सहमति बनाने में है। यह सवाल बना हुआ है कि ‘इंडिया’ ब्लॉक के लिए सीट बंटवारा कितना मुश्किल है और क्या विपक्ष चुनाव से पहले बाधाओं को दूर कर सकता है? कांग्रेस पार्टी गठबंधन के सभी घटक दलों को संतुष्ट करने वाला समाधान खोजने के लिए प्रयासरत है जो 28 दलों के गठबंधन का नेतृत्व कर रही है। गठबंधन ने भाजपा विरोधी विपक्षी वोटों को विभाजित होने से रोकने के लिए भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ  चुनाव लड़ने के लिए एक ही उम्मीदवार को नामांकित करने का फैसला किया है।
हालांकि, कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन खुद को एक मुश्किल स्थिति में पाता है क्योंकि अधिकांश क्षेत्रीय दल अधिक सीटों के लिए कड़ी सौदेबाजी कर रहे हैं, जो केवल कांग्रेस पार्टी के हितों की कीमत पर ही हो सकता है। मल्लिकार्जुन खड़गे ने पार्टी को इस दुविधा को दूर करने के लिए अन्य सहयोगियों के साथ बातचीत शुरू करने का निर्देश दिया है। यह इंगित करता है कि कांग्रेस इस बार सहयोगियों को समायोजित करने के लिए कम सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार है।
कांग्रेस पार्टी ने चुनाव से पहले कई राज्यों में अन्य राजनीतिक दलों के साथ गठबंधन किया था। यह तमिलनाडु में डीएमके के साथ जुड़ गया जबकि बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल (यू) और झारखंड में झामुमो के साथ। हालांकि यह गठबंधन पहले से ही जारी हैं, कांग्रेस जानती है कि कुछ राज्यों, विशेषकर दिल्ली, पंजाब, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में सीटों का बंटवारा चुनौतीपूर्ण होगा।
कांग्रेस पार्टी फिलहाल अपनी पार्टी और सहयोगियों की ज़रूरतों को पूरा करने के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रही है। उसके सामने अपने क्षेत्रीय साझेदारों के साथ सकारात्मक रिश्ते बनाये रखने की चुनौती है। पार्टी इस बात को लेकर सतर्क है कि बातचीत से साझेदारों के बीच कोई मनमुटाव न हो।
कांग्रेस की स्थानीय इकाइयों में साझेदारों को सीटें देने को लेकर शीर्ष नेतृत्व के बीच मतभेद हैं। वास्तविकता को देखते हुए खड़गे ने पार्टी की गठबंधन समिति को सहयोगियों को समायोजित करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने का निर्देश दिया है। उन्होंने ‘इंडिया’ गुट के साथ समन्वय के लिए विपक्षी नेताओं से भी सम्पर्क किया है।
कांग्रेस लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ  लड़ेगी। तेरह राज्यों में भाजपा के साथ वह सीधे लड़ेगी जबकि उसका मुकाबला आंध्र प्रदेश, केरल, ओडिशा और तेलंगाना में गैर-भाजपा दलों से है। कांग्रेस को यह तय करना है कि वह बंगाल और त्रिपुरा में सीपीआई (एम) के साथ गठबंधन करेगी या नहीं।
अतीत में कांग्रेस का दिल्ली और पंजाब में महत्वपूर्ण राजनीतिक दबदबा था। हालांकि आम आदमी पार्टी (आप) कांग्रेस के प्रभुत्व के खिलाफ  एक मजबूत दावेदार के रूप में उभरी है क्योंकि अब वह दोनों राज्यों में सत्ता पर काबिज़ है। जहां कांग्रेस का लक्ष्य दिल्ली में चार और पंजाब में सात सीटें हैं, वहीं सत्तारूढ़ ‘आप’ सीटों में बड़ी हिस्सेदारी चाहती है। इसके अतिरिक्त ‘आप’ की गोवा, हरियाणा और गुजरात जैसे अन्य राज्यों में भी चुनाव लड़ने की योजना है।
इसी तरह उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, बिहार में राजद और जद (यू) ए जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रैंस और पीडीपी और तमिलनाडु में डीएमके का पलड़ा भारी रहने की उम्मीद है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने राज्य की कमान संभालेंगी।
2019 के चुनावों में कांग्रेस 421 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन केवल 52 पर जीत हासिल कर सकी। उसने कुछ राज्यों में गठबंधन बनाया और कम सीटों पर चुनाव लड़ा—जैसे बिहार में 9, झारखंड में 7, कर्नाटक में 21, महाराष्ट्र में 25 और तमिलनाडु में 9। हालांकि उसने उत्तर प्रदेश की 80 में से 70 सीटों पर चुनाव लड़ा।
कांग्रेस के अपने दम पर भाजपा को हराने की संभावना कम है। वह सरकार बनाने के लिए आवश्यक 272 सीटों पर स्वतंत्र रूप से चुनाव नहीं लड़ेगी, बल्कि 255 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है जो अब तक की सबसे कम संख्या है। इसकी सबसे अच्छी स्थिति 125 सीटें जीतना है। एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में कांग्रेस को भाजपा को सीधे चुनौती देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। 190 से अधिक सीटों पर मज़बूत नेताओं को निर्वाचन क्षेत्रों से मैदान में उतारा जाना है। पार्टी को ज़मीनी स्तर पर बूथ कमेटियों को मज़बूत करने की भी ज़रूरत है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की अगुवाई में निकली ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ पर भी विवाद खड़ा हो गया है। जद (यू) के नेता के सी. त्यागी ने सवाल किया कि कांग्रेस ने विपक्षी गुट के सहयोगियों के साथ इसे संयुक्त यात्रा क्यों नहीं बनाया। हालांकि कांग्रेस ने अपने सहयोगियों को आमंत्रित किया, लेकिन वे कैसे प्रतिक्रिया देंगे, यह अभी भी अनिश्चित है। सफल यात्रा का श्रेय राहुल गांधी को जायेगा।
राम मंदिर के उद्घाटन को लेकर विपक्ष मुश्किल में है। विपक्षी गठबंधन ने इस कार्यक्रम का बहिष्कार करने का फैसला किया है। इसमें भाग लेना केवल उनके कथन का समर्थन करेगा क्योंकि यह भाजपा के लिए एक राजनीतिक तमाशा है जबकि कांग्रेस इस मुद्दे पर आंतरिक रूप से विभाजित थी, उसने निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया। सीपीआई (एम) और सीपीआई नेताओं ने विनम्रतापूर्वक निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया है। हालांकि चुनावी सर्वेक्षणों में भविष्यवाणी की गई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी चुनाव जीतेंगे, लेकिन अगर विपक्ष एकजुट रहता है तो उनके जीतने की अभी भी कम संभावना है। यदि विपक्षी दल अधिकतम संभव सीट बंटवारे के समझौते के आधार पर लड़ते हैं तो वे 2004 के लोकसभा परिणाम दोहरा सकते हैं। (संवाद)