कनाडा के बंद हो रहे दरवाज़े

दुनिया भर में सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश बनने जा रहा भारत अनेकानेक समस्याओं के साथ जूझ रहा है। चाहे केन्द्र सरकार यह दावा कर रही है कि पिछले एक दशक में उसने 25 करोड़ के लगभग लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाया है। यदि इन आंकड़ों को ठीक भी मान लिया जाए, तो भी समूचे देश में स्थान-स्थान पर ़गरीबी के प्रसार को देखते हुए यह लगता है कि दीवार के साथ धकेले गए देशवासियों को दोबारा सीधे खड़े होने के लिए अभी भी लम्बा समय लग सकता है। उस समय तक देश की जनसंख्या और कितनी बढ़ गई होगी और बेहद ज़रूरतमंदों की ऐसी कतार कितनी लम्बी हो गई होगी, यह अनुमान लगाया जाना मुश्किल है।
पंजाब की ऐसी त्रासदी वाली वार्ता हम रोज़ सुनते हैं। देश भर में इससे भी अधिक बेचारगी वाले हालात विद्यमान हैं। इसलिए जिस किसी का भी दांव लगता है, वह यहां से निकलने को प्राथमिकता देता है। यूरोप में भी अनेक कारणों के दृष्टिगत आर्थिक मंदी के हालात बने हुए हैं। अमरीका और कनाडा जैसे देश के माथे पर भी पसीना नज़र आने लगा है। बात पंजाब की करें तो इस प्रांत के नौजवान अन्यों से ज्यादा प्रवास करने में सबसे आगे दिखाई देते हैं। पिछले दशक में कनाडा उनके लिए ठोस आसरा बना रहा है। पिछले सालों में तो जैसे यहां नौजवानों के पलायन की बाढ़ ही आ गई हो। प्रदेश भर में स्थान-स्थान पर खुले कोचिंग सैंटर इसका स्पष्ट प्रमाण हैं। इस समय में अरबों रुपये लाखों ही विद्यार्थियों ने कनाडा जाने के लिए खर्च किए हैं। परिवारों ने चाहे कज़र् लिया हो, चाहे ज़मीनें बेची हों, चाहे कोई और ढंग प्रयुक्त किया हो, नौजवान कनाडा की ओर प्रस्थान करते रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय विद्यार्थियों के बड़ी संख्या में पढ़ने के लिए निरन्तर कनाडा जाने के कारण वहां बड़ी समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं। वहां निजी कालेजों में विद्यार्थियों के दाखिले संबंधी अनेक कमियां भी सामने आई हैं। यह भी कि अधिकतर विद्यार्थी बन कर गये युवक वहां पढ़ाई की ओर अधिक ध्यान देने के स्थान पर नौकरियों की तलाश अधिक करते फिरते रहे हैं। अब वहां रहने के लिए मकानों, स्वास्थ्य सेवाओं तथा अन्य आवश्यक सुविधाओं की कमी महसूस होने लगी है। वहां कुछ ऐसे तत्वों की काफी संख्या हो गई है, जो भारत को कई तरह की धमकियां भी देते रहते हैं। एक खालिस्तान समर्थक नेता की वहां हत्या के बाद दोनों देशों के संबंध भी बिगड़े हैं। इस कारण भी दोनों देशों ने एक-दूसरे से हाथ खींचना शुरू कर दिया है। यदि भारत ने कैनेडियन काऊंस्लेटों वापस भेजा है, तो कनाडा ने भी भारतीय विद्याथिर्थयों के लिए अपने दरवाज़े बंद करने शुरू कर दिये हैं। 
कनाडा सरकार द्वारा की जा रही नई घोषणाओं के अनुसार विदेशी विद्यार्थियों के आने पर अनेक प्रकार की पाबंदियां लगाई जा रही हैं। उनकी संख्या में 35 प्रतिशत तक कमी की जा रही है। बैंकों में विद्यार्थियों की ओर से गुज़ारे के लिए आरक्षित रखी जाने वाली राशि को भी और बढ़ाने की घोषणा कर दी गई है। वहां रहने के इच्छुक कई श्रेणियों के विद्यार्थियों को वर्क-परमिट देने पर भी पाबंदियां लगाई जा रही हैं। वहां निजी कालेजों की सीटें भी सीमित की जा रही हैं। वहां पहुंचे विद्यार्थी अनेकानेक कठिनाइयों में से गुज़र रहे हैं। ऐसी पाबंदियों से उनका न चाहते हुए भी कनाडा से मोह भंग होना शुरू हो गया है। इसका प्रदेश के युवकों तथा विद्यार्थियों पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ने की संभावना बन गई है, जिससे युवकों में और भी निराशा फैल जयेगी। यहां के सांस घुटने वाले माहौल में से निकलने के लिए उनका एक बड़ा दरवाज़ा बंद होता जा रहा है, जिससे आने वाला समय हमारी सरकार के लिए भी, और हमारे समाज के लिए भी बेहद संकटमयी सिद्ध हो सकता है जो पहले ही समक्ष खड़ी समस्याओं को और भी बढ़ाने में सहायक होगा। इस स्थिति में से निकलने के लिए प्रत्येक पक्ष से गम्भीर योजनाबंदी करने की आवश्यकता होगी। 

            
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द