अपना घर

आज भोलू बहुत खुश था। शाम को ऑफिस से आने बाद उसके पापा उसे शहर में बना नया पार्क जो दिखाने ले जाने वाले थे। स्कूल से आते ही भोलू ने मम्मी से पैसे लिये और खूब सारी टॉफी, चॉकलेट और चिप्स के पैकेट खरीद लाया ताकि वहां पार्क में घूम-घूम कर खा सके।
शाम को भोलू जब पापा के साथ पार्क गया तो वहां वास्तव में ही सब कुछ बहुत ही मनोहारी था। हरे भरे पौधे, बड़े घनी शाखाओं वाले वृक्ष पार्क के चाराें तरफ लगे हुए थे। पूरे पार्क में नरम मुलायम घास बिछी हुयी थी जिसे बड़ा सुन्दर आकार दिया हुआ था। छोटे-बड़े सभी तरह के झूले लगे हुए थे। पूरे पार्क में रंग बिरंगी रोशनी वाले बल्ब लगे हुए थे। वहीं कृत्रिम झील भी बनी हुई थी जिसमें सभी वोटिंग कर रहे थे। भोलू यह सब देख ऐसा लग रहा था मानो सभी उसका स्वागत कर रहे हैं। उसके मन को बड़ा अच्छा लग रहा था। पापा के साथ पूरा पार्क घूमने के बाद भोलू ने अब चॉकलेट निकाली और उसे खाकर उसका खाली रैपर वहीं पौधों के नीचे डाल दिया। यह देख भोलू के पापा ने उससे कहा ‘नहीं भोलू बेटा, ऐसे कचरा नहीं फैलाते,तुम इस खाली रैपर को अपनी जेब में रख लो और बाद में अपने घर जाकर कचरेदान में डाल देना।’
अरे पापा यह कोई अपना घर है क्या, कहकर भोलू लापरवाह हो गया। अब नहर के पास पहुँचा,वहीं किनारे बैठकर उसने कुरकुरे का पैकेट निकाला और खाकर वहीं नहर के पास डाल दिया। पापा ने फिर खाली रैपर जेब में करने को कहा तो उसमें वही दोहरा दिया-‘क्या पापा कोई अपना घर है क्या।’
भोलू पूरे पार्क में जीभर घूमा और पूरे पार्क में उसने जी भर ही कचरा फैलाया।
अब थककर ज्यों ही नरम घास पर बैठा, त्यों ही उसे कुछ चुभता सा महसूस हुआ। उसने देखा घास नुकीली हो उसे चुभ रही थी और अपने ऊपर बैठने से रोक रही थी। दर्द के कारण वह तुरन्त ही खड़ा हो गया, उसने देखा कि घास गुर्रा रही थी और उससे बोली-‘तुम्हारा घर है क्या, जो यहाँ बैठना चाहते हो।’
भोलू घबराया सा नहर की तरफ भागा। बैठने के लिए तो नहर का पानी क्रोधित-सा उसकी ओर बढ़ा और बोला-‘खबरदार जो यहां बैठे, तुम्हारा घर है क्या।’
अब अत्यंत भयभीत भोलू ने जब एक पेड़ के नीचे खड़ा होना चाहा तो पेड़ ने भी गुस्से में अपनी लम्बी शाखाओं से उसे दूर झटक दिया और कहा ‘यहाँ क्यों खड़े हो, यह तुम्हारा घर है क्या।’
अब तो भोलू को जो पार्क पहले मनभावन लग रहा था वही पार्क अब उसे डरावना और बदसूरत सा प्रतीत हो रहा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे पूरा पार्क नहर पेड़-पौधे, घास सभी उससे चिल्ला कर कह रहे हैं कि यह तुम्हारा घर है क्या, यह पार्क तुम्हारा घर है क्या।
भोलू नींद में भी बड़बड़ा रहा था ‘यह तुम्हारा घर है क्या, यह तुम्हारा घर है क्या।’
मम्मी ने झिंझोड़ कर उसे जगाया और पूछा-‘क्या हुआ भोलू बेटा, कोई सपना देखा है क्या?’ 
घबराये भोलू ने आंखे मलते हुए पूरा सपना मम्मी को सुना दिया और बोला-‘मम्मी पार्क में सभी पेड़-पौधे बार-बार क्यों कह रहे थे कि यह पार्क तुम्हारा घर है क्या।’
मम्मी ने भोलू को सहलाया और बोली-‘बेटा जब तुमने चॉकलेट और दूसरे खाली रैपर वहीं पार्क में फेंक दिये और कहा कि यह कौनसा मेरा घर है बस वही तो पलट कर उन्हाेंने तुमसे कहा कि यह तुम्हारा घर है क्या’
पर मम्मी उन्होंने ऐसे क्यों कहा भोलू बोला।
‘अच्छा पहले एक बात बताओ मम्मी बोली। तुम पार्क क्यों गये थे?’ 
भोलू बोला-‘वहां अच्छा लगता है मम्मी।
मम्मी ने फिर पूछा-‘और घर क्यों अच्छा लगता है।’
भोलू झट से बोला-‘अरे मम्मी घर तो अपना होता है अच्छा क्यों नहीं लगेगा।’ 
‘बस यही तो बात है क्यों भोलू बेटा क्या पेड़-पौधे घास हरियाली ये अपने नहीं है।’ भोलू जैसे असमंजस में था मम्मी उसे और अच्छी तरह से समझाती हुई बोली-‘देखो भोलू जैसे अपने घर में हमको आराम मिलता है, सुकून मिलता है तो हम इसकी सफाई करते हैं, चीजों को यथास्थान रखते हैं, कोई गन्दगी नहीं फैलाते क्योंकि हमें अपने घर के प्रति अपनत्व का भाव है ठीक उसी तरह जब पार्क और पार्क में लगे पेड़-पौधे वहाँ की हरियाली तुम्हें अच्छी लगती है तो पार्क भी हमारा घर हुआ न, हमें उसके प्रति भी तो अपनत्व का भाव रखना चाहिए न। तुम क्या कर रहे थे पार्क में, तुम वहां गंदगी फैला रहे थे उसे सार्वजनिक मान कर पराया मान कर,इसलिये ही तो वहाँ पेड़-पौधों झील-घास सबको तुम्हारे ऊपर गुस्सा आया कि जब यह पार्क तुम्हारा घर है ही नहीं तो तुम यहाँ आराम कैसे कर सकते हो।’
‘ओह, मम्मी आप सही कह रही हैं,मैं कितना गलत था अब शाम को पापा के साथ जब पार्क जाऊंगा तो कचरेके लिये एक थैली भी साथ ले जाऊंगा। सारा कचरा उस थैली में भर लाऊंगा पर वहाँ बिल्कुल भी गंदगी नहीं फैलाऊंगा वह भी तो मेरा ही घर है न।’ भोलू माँ से लिपटकर बोला। (सुमन सागर)