राज्यपाल श्री बनवारी लाल पुरोहित का इस्तीफा

पंजाब के राज्यपाल श्री बनवारी लाल पुरोहित के अचानक इस्तीफा देने के कारण अनेक तरह के अनुमान लगाए जा रहे हैं। उन्होंने इस्तीफे का कारण निजी बताया है लेकिन इस बात पर विश्वास किया जाना मुश्किल है। किसी भी राज्य के राज्यपाल संबंधी फैसला करना केन्द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में होता है। हम महसूस करते हैं कि इस इस्तीफे का कारण चाहे कुछ भी रहा हो, लेकिन यदि उनका इस्तीफा मंजूर होता है तो पंजाब को एक बड़ा घाटा ज़रूर पड़ेगा। विगत समय में अकसर यह देखा जाता रहा है कि राज्यपाल राज्य सरकारों की कार्रवाइयों के बारे में बहुत किन्तु-परन्तु नहीं करते, लेकिन प्रदेश की मौजूदा सरकार की कारगुजारी संबंधी श्री पुरोहित की पहुंच नि:संदेह आलोचनात्मक रही है। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कई मुख्यमंत्रियों के साथ काम किया। उन्होंने पंजाब का राज्यपाल नियुक्त होने के बाद पहले मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के साथ काम किया। बाद में कुछ समय के लिए चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे और भगवंत मान को भी मुख्यमंत्री के तौर पर श्री पुरोहित ने ही शपथ दिलाई थी। पहले दो मुख्यमंत्रियों के साथ उनका कोई बहुत विवाद नहीं हुआ था लेकिन मान सरकार के साथ उनका समय बड़ी सीमा तक विवादों में ही घिरा रहा।
श्री पुरोहित एक सुलझे हुए व्यक्ति थे। वह महाराष्ट्र के नागपुर से प्रकाशित प्रसिद्ध अंग्रेजी समाचार पत्र ‘द हितवाद’ के लम्बे समय तक प्रबंधकीय संपादक रहे। इस समाचार पत्र को प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले ने 1911 में शुरू किया था। आज भी श्री पुरोहित इस समाचार पत्र के कर्ता-धर्ता हैं। उनका राजनीतिक जीवन भी सूझ-बूझ पूर्ण और सफलता वाला कहा जा सकता है। वह कई बार लोकसभा के सदस्य भी चुने गये। राजनीतिक जीवन में उनको सम्मान मिलता रहा। पिछले 7 सालों में वह तमिलनाडू, असम और मेघालय में राज्यपाल रहने के बाद 27 अगस्त, 2021 को पंजाब के राज्यपाल बने थे। पहले जहां-जहां भी वह राज्यपाल रहे, वहां के मुख्यमंत्रियों ने उनकी भूमिका की भरपूर प्रशंसा की थी, परन्तु मान सरकार के प्रशासन में उसकी कारगुज़ारी को देखते हुए उन्होंने समय-समय पर इस सरकार के कुछ फैसलों पर किन्तु-परन्तु अवश्य किया था। यह सरकार बिना समुचित योजनाबंदी के काम करती रही है और इसकी कार्यशैली में गम्भीरता की कमी खटकती रही है। इसी कारण ही यह सरकार विवादों में घिरी रही है। इस संदर्भ में ही समय-समय पर श्री पुरोहित सरकार के फैसलों पर टीका-टिप्पणी भी करते रहे हैं। कई बार विधानसभा का सत्र बुलाने को लेकर तथा कई बार विधेयकों को स्वीकृति देने के मुद्दे पर उनके मुख्यमंत्री के साथ तीव्र मतभेद पैदा होते रहे हैं। कई बार उनके तथा मुख्यमंत्री के बीच के विवाद सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचते रहे हैं। इन घटनाक्रमों बारे भिन्न-भिन्न विचार हो सकते हैं, परन्तु इस बात संबंधी कोई दो राय नहीं कि वह पंजाब की समस्याओं के संबंध में बेहद चिन्तित थे। अपने पद पर रहते हुए वह अलग-अलग समस्याओं बारे लगातार चिन्ता भी व्यक्त करते रहे।
यहां बढ़ते नशे तथा अपराधों के प्रति वह अपने विचार व्यक्त करते रहे और समय-समय पर स्वयं भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में जाकर लोगों को भी मिलते रहे। नशों के बेहद बढ़ते प्रचलन को महसूस करते हुए ही उन्होंने कहा था कि प्रदेश के बहुत-से क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार के नशे अब किराने की दुकानों पर भी सरेआम बिकने लगे हैं। सरकार द्वारा सही ढंग न अपना कर की गई अहम नियुक्तियों बारे भी वह सवाल उठाते रहे हैं। अपने अधिकार क्षेत्र में रहते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री को समय-समय पर पत्र भी लिखे, जिनके समय पर जवाब अक्सर नदारद रहे। मुख्यमंत्री द्वारा हैलीकाप्टर के इस्तेमाल संबंधी की गई टिप्पणी के बाद उन्होंने सरकारी हैलीकाप्टर का इस्तेमाल करने से भी इन्कार कर दिया था। विपक्षी दलों ने अक्सर उन पर विश्वास किया। इसीलिए वे समय-समय पर अपनी शिकायतें लेकर उन्हें मिलते रहे। ऐसा समय की सरकार को रास नहीं आता था। चाहे किसी भी राज्यपाल का सरकार के कार्यों में अधिक हस्तक्षेप नहीं होता और न ही होना चाहिए, परन्तु सरकार की कारगुज़ारी के संबंध में जानना राज्यपाल का संवैधानिक फज़र् अवश्य होता है। चाहे राष्ट्रपति द्वारा अभी तक उनका त्याग-पत्र औपचारिक रूप में स्वीकार नहीं किया गया, परन्तु यदि ऐसा होता है तो नि:संदेह पंजाब एक अनुभवी, सूझवान तथा परिपक्व राज्यपाल से वंचित हो जाएगा। 
    —बरजिन्दर सिंह हमदर्द