भारतीय छात्रों के लिए मुश्किल हुआ अब कनाडा में पढ़ना

मौजूदा परिस्थितियों में देश के हज़ारों भारतीय छात्रों का विदेशी विश्वविद्यालयों में, विशेषकर अंग्रेज़ी बोलने वाले देशों में, उच्च शिक्षा प्राप्त करने का सपना टूटने जा रहा है; क्योंकि कनाडा व इंग्लैंड जैसे देशों ने अपने विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्रों के प्रवेश नियमों को सख्त व महंगा कर दिया है। मसलन, कनाडा को ही लें, जहां ‘अंतर्राष्ट्रीय छात्रों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करने’ का दावा करते हुए कनाडा की सरकार ने अपने विश्वविद्यालयों में विदेशी छात्रों के प्रवेश नियमों में संशोधन किया है, लेकिन इसका असल कारण यह प्रतीत होता है कि पिछले साल दिसम्बर में खालिस्तानी समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या की साजिश को लेकर ओटावा व नई दिल्ली के बीच जो राजनीतिक रस्साकशी हुई थी, यह उसी का ही परिणाम है।
संशोधित नियमों में सबसे प्रमुख है गारंटीड इन्वेस्टमेंट सर्टिफिकेट (जीआईसी) का दाम 10,000 कैनेडियन डॉलर्स से बढ़ाकर दोगुने से भी अधिक यानी 20,635 कैनेडियन डॉलर्स कर दिया गया है। इतना कुछ हो जाने के बावजूद इसकी भी कोई गारंटी नहीं है कि जीआईसी में फिर वृद्धि नहीं होगी। तब तक तो मौजूदा पीढ़ी की पढ़ने की उम्र ही निकल जायेगी।’ जर्मनी व ऑस्ट्रेलिया ने भी आहिस्ता आहिस्ता अपने अपने जीआईसी में इज़ाफा किया है। वे हर साल जीआईसी में लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि करते रहे हैं। मई 2023 में जर्मनी का वीज़ा अप्लाई करने के लिए 11,208 यूरो (लगभग 10 लाख रूपये) देने पड़ते थे, जबकि इससे पहले यह कैप 10,000 यूरो पर थी। एक अन्य घटनाक्रम में इंग्लैंड ने घोषणा की है कि 2024 से अंतर्राष्ट्रीय छात्र अपनी शिक्षा पूर्ण करने के दौरान अपने आश्रित परिवार को नहीं ला सकेंगे। उच्च शिक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि 6.15 लाख रुपया इतना कम है कि कनाडा जैसे महंगे देश में एक छात्र के रहने के लिए यह पर्याप्त नहीं है। कनाडा ने पहले जीआईसी छात्रों को आकर्षित करने के लिए कम रखी थी, लेकिन अब उसकी सरकार को एहसास हुआ है कि यह बढ़ते हाउसिंग खर्च व महंगाई को देखते हुए पर्याप्त नहीं है। जर्मनी व ऑस्ट्रेलिया जैसे देश हर साल जीआईसी में 10 प्रतिशत की वृद्धि करते हैं, जिससे अधिक प्रभाव नहीं पड़ता, लेकिन कनाडा द्वारा एक ही झटके में 100 प्रतिशत की वृद्धि करने से छात्रों को शॉक लगा है।
बहरहाल, इस परिवर्तन से सबसे अधिक कौन से छात्र प्रभावित होंगे? नये संशोधित नियमों के तहत कनाडा ने शिक्षा परमिट या छात्र वीज़ा की संख्या 4 लाख से घटाकर 3.6 लाख कर दी है। अकेले भारत से ही 1.4 लाख छात्र कनाडा जाया करते थे, जिनमें से लगभग 80 प्रतिशत वहां डिप्लोमा स्तर के पाठ्यक्रम करने के लिए जाते थे। अब से पहले, कनाडा माइग्रेट होने का इच्छुक छात्र ‘स्टडी अब्रॉड’ विकल्प के रूप में किसी भी डिप्लोमा में प्रवेश ले लेता था, जो वास्तव में कमज़ोर शैक्षिक संस्था वाले देशों के छात्रों के लिए माइग्रेट करने का पासपोर्ट होता था, जिससे यह सुविधा होती थी कि छात्र अपनी शिक्षा पूरी करता रहता था और उसका जीवनसाथी वीज़ा वर्क परमिट लेकर काम करता रहता था। अब नये नियमों के तहत कनाडा ने कहा है कि वह जीवनसाथी वीज़ा तो जारी करेगा, लेकिन जीवन साथी को वर्क परमिट नहीं दिया जायेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि कनाडा की ‘डिप्लोमा कम्पनी’ समस्या को हल करने के संदर्भ में यह अच्छा कदम है। ‘डिप्लोमा कम्पनी’ का अर्थ है कि कनाडा की किसी भी सस्ती व बेकार शिक्षा संस्था में प्रवेश ले लो ताकि वहां माइग्रेट करने का अवसर मिल जाये। अगर ‘डिप्लोमा कम्पनी’ समस्या का समाधान हो जाता है तो दो फायदे संभव हैं— एक, कनाडा की बेकार की शिक्षा संस्थाओं पर ताले पड़ जायेंगे और दूसरा यह कि माइग्रेट कराने के लिए एजेंट्स जो संदिग्ध तरीके अपनाते थे, उन पर काफी हद तक नियंत्रण लग सकेगा।
हालांकि कनाडा ने नये नियमों के ज़रिये अपनी ‘डिप्लोमा कम्पनी’ समस्या के समाधान का प्रयास किया है, लेकिन साथ ही उसने उन छात्रों के लिए नियम आसान किये हैं, जो मास्टर्स प्रोग्राम के लिए उसके यहां आना चाहते हैं। मास्टर्स करने वाले छात्र अपना पाठ्यक्रम पूर्ण करने के बाद तीन वर्ष के वर्क परमिट के लिए अप्लाई कर सकते हैं। लेकिन सख्त नियमों के कारण वे छात्र अधर में लटक गये हैं, जो कनाडा में स्नातक की डिग्री हासिल करना चाहते हैं। मसलन, 2022-2023 में यॉर्कविले विश्वविद्यालय में पंजीकृत होकर बीबीए के पहले दो वर्ष भारत में ही रहते हुए वहां से पूर्ण करने और तीसरे वर्ष में ऑन-कैंपस स्टडीज के लिए मई 2024 में प्रवेश मिलने पर तीसरे वर्ष की फीस 15,000 डॉलर जमा कराने के साथ ही, छात्रों ने 20,900 डॉलर की जीआईसी भी सबमिट कर दी थी। अब विश्वविद्यालय ने उनसे अपनी वीज़ा अज़र्ी होल्ड पर रखने के लिए कहा गया है। शिक्षा के लिए कनाडा जाने वाले सभी छात्रों की वीज़ा अर्जियां इस साल मार्च तक होल्ड पर हैं ताकि विश्वविद्यालय यह तय कर सकें कि छात्रों तक अनुप्रमाणन पत्र कैसे पहुंचाये जायें, जोकि कनाडा की सरकार से हासिल करने होते हैं।
सवाल यह भी है कि कनाडा से अलग अन्य देशों का क्या हाल है? अपग्रैड अब्रॉड ने 25,000 छात्रों के डाटा की समीक्षा की, जिन्होंने विदेश में शिक्षा ग्रहण करने में दिलचस्पी दिखायी। यह डाटा पिछले साल जनवरी से जुलाई के बीच में एकत्र किया गया था। तब इनमें से 18 प्रतिशत ने कनाडा में शिक्षा प्राप्त करने में दिलचस्पी दिखायी थी, लेकिन जब इस डाटा की पिछले साल जुलाई से दिसम्बर के बीच में पुन: समीक्षा की गई तो यह दिलचस्पी घटकर लगभग आधी यानी 9.3 प्रतिशत रह गई। इसके विपरीत जर्मनी जैसा डेस्टिनेशन जहां प्रारम्भिक दिलचस्पी 17 प्रतिशत थी, वह अब बढ़कर 32 प्रतिशत हो गई है। ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, नीदरलैंड व फिनलैंड के अतिरिक्त अब भारतीय छात्रों की दिलचस्पी ताइवान व इज़राइल जैसे स्टडी डेस्टिनेशन्स में भी बढ़ती जा रही है; क्योंकि ये देश भी भारतीय प्रतिभा को अपनी ओर आकर्षित करना चाहते हैं। इसका अर्थ यह है कि कनाडा के नये संशोधित नियमों व जीआईसी में दोगुनी वृद्धि के अलावा भारत व कनाडा के बीच जो राजनीतिक खींचतान चल रही है, उससे भी छात्रों के सपनों पर अनिश्चितता के काले गहरे बादल छाये हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर