मोदी के कार्यक्रम ने रेडियो को दिया नवजीवन

विश्व रेडियो दिवस पर विशेष

विश्व रेडियो दिवस प्रतिवर्ष 13 फरवरी को मनाया जाता है। वर्ष 2024 की थीम ‘रेडियो : ए सेंचुरी इनफॉर्मिंग, एंटरटेनिंग एंड एजुकेटिंग’ रखी गई है। यह थीम रेडियो के गौरवशाली अतीत, प्रासंगिक वर्तमान और गतिशील भविष्य के वादे पर व्यापक प्रकाश डालती है। इस दिन को मनाये जाने की शुरुआत वर्ष 2012 में की गयी थी। यह हर कोई जानता है कि रेडियो जनसंचार का एक सशक्त माध्यम है, जिसके जरिए गांव गुवाड़ के लाखों करोड़ों लोगों तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। भारत में अपनी पहचान खोते जा रहे रेडियो को अपने नवाचार कार्यक्रम के माध्यम से नयी पहचान और जीवनदान देने का श्रेय निश्चित रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया जाता है। 8वें दशक तक या यूँ कहे दूरदर्शन के आगमन तक रेडियो ही शिक्षा, संचार और मनोरंजन के क्षेत्र की सिरमौर था। उस दौरान घर-घर में ही नहीं अपितु हर हाथ में रेडियो था और लोग इससे चिपके रहते थे। हर प्रकार की सूचना का संवाहक था रेडियो। 1980 के बाद संचार के आधुनिक साधनों के प्रादुर्भाव के साथ रेडियो का प्रभाव घटता गया। लोगों ने रेडियो के स्थान पर टीवी को अपनाना शुरू कर दिया। इसी बीच 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ‘मन की बात’ नामक एक क्रांतिकारी कार्यक्रम शुरू हुआ। इसी नवाचार के साथ रेडियो का एक तरह से पुनर्जन्म हुआ। 
कोई माने या न माने मगर यह बिल्कुल सच है कि अपनी पहचान खोते जा रहे रेडियो को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कार्यक्रम ने पुनर्जीवित कर नया जीवनदान दिया है। मोदी के लोकप्रिय शो ‘मन की बात’ ने रेडियो की लोकप्रियता बढ़ा दी है। एक वक्त था जब रेडियो पर ‘यह आकाशवाणी है’, के शब्द सुनते ही बच्चे से बुजुर्ग तक रेडियो को घेर कर खड़े हो जाते थे। दूरदर्शन के प्रादुर्भाव से पूर्व यानि अस्सी के दशक तक रेडियो पर सुनाई देने वाली यह आवाज संचार के आधुनिक साधनों के बीच गायब सी हो गई थी। पहले भारतीय प्रसारण सेवा फिर आल इंडिया रेडियो और इसके बाद आकाशवाणी के रूप में रेडियो अस्तित्व में रहा। दूरदर्शन के बढ़ते प्रभाव ने इसकी उपयोगिता पर बड़ा संकट खड़ा कर दिया। रही सही कसर निजी चैनलों और मोबाइल ने पूरी कर दी, मगर हाल के वर्षों में जहां लोगों में रेडियो की चाह बढ़ी है, वहीं इसकी बिक्री भी तेज़ हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस कार्यक्रम ने रेडियो की लोकप्रियता बढ़ा दी है। यह सच है कि रेडियो की साख कमजोर हुई है मगर आज भी यह देश में सबसे ज्यादा एरिया 92.6 प्रतिशत भू-भाग को कवर करता है। ऑल इंडिया रेडियो की पहुंच देश की 99.20 प्रतिशत जनसंख्या तक है।
ऑल इंडिया रेडियो भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन संचालित सार्वजनिक क्षेत्र की रेडियो प्रसारण सेवा है। देश में रेडियो प्रसारण की शुरुआत मुंबई और कोलकाता में सन् 1927 में दो निजी ट्रांस्मीटरों से की गई थी। 1930 में इसका राष्ट्रीयकरण हुआ। 1957 में इसका नाम बदल कर आकाशवाणी रखा गया। सरकारी प्रसारण संस्थाओं को स्वायत्तता देने के इरादे से 23 नवम्बर, 1997 को प्रसार भारती का गठन किया गया, जो देश की एक सार्वजनिक प्रसारण संस्था है और इसमें मुख्य रूप से दूरदर्शन और आकाशवाणी को शामिल किया गया है।
आकाशवाणी या रेडियो को हिंदी भाषा को जन जन तक पहुंचाने का श्रेय दिया जा सकता है। आजादी से पूर्व आकाशवाणी अनेकता में एकता का सशक्त माध्यम थी। एक-दूसरे के पास इसी माध्यम से सारी जानकारी पहुंचती थी। आजादी के बाद प्रगति और विकास का एकमात्र सजीव माध्यम बना आकाशवाणी। बड़े-बड़े नेता और महत्वपूर्ण व्यक्ति अपनी बात आकाशवाणी के माध्यम से देशवासियों के समक्ष रखते थे। प्रसारण का एकमात्र साधन होने से देश में इसकी महत्ता और स्वीकार्यता थी मगर धीरे-धीरे निजी क्षेत्र में प्रसारण माध्यम शुरू हुए। निजी चैनलों से चौबीसों घंटे समाचार और मनोरंजन की सामग्री प्रसारित होने लगी। फलस्वरूप लोगों ने आकाशवाणी से मुंह मोड़ लिया। इससे आकाशवाणी बहुत कम क्षेत्रों में सिमट कर रह गयी मगर जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने और उन्होंने इसकी सुध बुध ली, तबसे इसका महत्व एक बार फिर बढ़ा है। विशेष रूप से जबसे प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ कार्यक्रम का प्रसारित होना शुरू हुआ, तब से एक बार फिर आकाशवाणी लोगों के सिर चढ़ गयी। रेडियो अब फिर से आम जन व आम घरों तक पहुंचने लगा है।