रोडवेज़ संबंधी नीतियों का सत्य क्या है?

पंजाब की मौजूदा भगवंत मान सरकार की ओर से रोडवेज़ कर्मियों के आन्दोलन के समक्ष घुटने टेकने के बाद बेशक सामयिक रूप से कर्मचारियों ने 13 फरवरी से पूर्व-घोषित अपनी तीन दिवसीय हड़ताल वापिस ले ली थी, किन्तु सरकार द्वारा मांगें मान लिये जाने के अपने फैसले को क्रियात्मक रूप देना अभी भी शेष है, और कि ऐसा करना उसके लिए इतना आसान भी नहीं है। इस हड़ताल की घोषणा पंजाब रोडवेज़, पैप्सू रोडवेज़ और पनबस ठेका कर्मियों की यूनियनों के नेताओं की ओर से विगत 8 फरवरी को मुख्यमंत्री के साथ उनकी प्रस्तावित बैठक न हो पाने पर रोष-स्वरूप की गई थी, किन्तु सरकार द्वारा एक रणनीतिक और सुनियोजित तरीके से बुलाई गई बैठक में कर्मचारियों की सभी मांगें मान लेने की घोषणा के बाद कर्मचारियों ने भी अपनी हड़ताल के फैसले को वापिस ले लिया ।
 फिलहाल सरकार ने अस्थायी कर्मचारियों को पक्का करने, ठेका-प्रणाली को खत्म करने और किलोमीटर योजना को बंद करने की कर्मचारी-मांगें स्वीकार करने की घोषणा की है क्योंकि ऐसा करना उसकी विवशता भी बन गई थी। कर्मचारियों ने ‘आप’ की खन्ना रैली हेतु बसें न ले जाने की घोषणा कर रखी थी, और अगले दो मास में लोकसभा चुनाव होने की घोषणा संबंधी तलवार भी सरकार की गर्दन पर लटकी हुई है। सरकार के लिए ऐसे नाज़ुक समय में रोडवेज़ कर्मियों को संघर्ष के पथ पर जाने देना कदापि राजनीतिक हित में नहीं होता। लिहाज़ा उसने फिलहाल उनकी मांगों को स्वीकार कर लेना ही ठीक समझा किन्तु ये तीनों फैसले ऐसे नहीं हैं कि जिन्हें आसानी से लागू किया जा सके। कर्मचारियों को पक्का करने और ठेका-प्रथा को खत्म करना चिरकाल पुरानी मांगें हैं। इनको स्वीकार किये जाने से राजस्व-कोष पर भारी-भरकम बोझ पड़ने की आशंका है। इस हेतु कई चरणों पर वित्तीय फैसले भी करने होंगे।
पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी की चुनाव-पूर्व की घोषणाओं में भी ये वायदे शुमार रहे हैं, किन्तु मौजूदा भगवंत मान सरकार की  परिवहन संबंधी निकृष्ट एवं राजनीति से प्रेरित नीतियों ने पंजाब रोडवेज़ और पैप्सू रोडवेज़ का वित्तीय धरातल पर जैसे भट्ठा बिठा कर रख दिया है। वित्तीय लाभ-हानि पर विचार किये बिना और राजनीतिक हित-साधन हेतु किये गये फैसलों के कारण ही एक ओर जहां पंजाब रोडवेज़ के कर्मचारियों को आन्दोलन के पथ पर अग्रसर होना पड़ा, वहीं प्रतिदिन के हिसाब से करोड़ों रुपये की आर्थिक क्षति को भी सहन करना पड़ रहा था। दोनों परिवहन की लगभग चार सौ से अधिक बसें सरकार की अवहेलना का शिकार होकर कंडम होकर डिपुओं में कबाड़ का रूप धारण कर चुकी हैं।  रोडवेज़ के कर्मी विगत लम्बी अवधि से सरकार की इन नीतियों के विरुद्ध आन्दोलन एवं संघर्ष के पथ पर चले हुए थे। रोडवेज़ कर्मचारियों की कई यूनियनों द्वारा एक साथ सरकार को 13 तारीख तक का अल्टीमेटम देते हुए, 14 फरवरी से 16 फरवरी तक प्रदेश भर में बसों का पहिया जाम करने की चेतावनी इसी संघर्ष की एक कड़ी थी। यूनियन नेताओं ने भगवंत मान की सरकार पर अपनी पूर्ववर्ती सरकारों की भांति ही टाल-मटोल की नीति अपनाने का आरोप भी लगाया था।
मौजूदा सरकार की त्रुटिपूर्ण नीतियों का आलम यह है कि पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने सरकार के मुफ्त तीर्थ यात्रा बसों संबंधी नीतिगत फैसले की ईमानदारी और प्रतिबद्धता पर कई प्रश्न-चिन्ह उठाये हैं। उच्च अदालत ने  सरकार से यह भी पूछा है, कि इस फैसले का उद्देश्य क्या है। अदालत ने स्पष्ट किया कि धार्मिक तीर्थयात्रा नागरिकों की निजी आस्था का मामला है। इस हेतु दी जाने वाली सबसिडी की भारी धन-राशि को शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं हेतु खर्च किया जाना चाहिए। अदालत की यह टिप्पणी भी काबिले-गौर है कि एक ओर प्रदेश के युवा बेकारी के दौर में रोज़गार एवं नौकरी के लिए तरस रहे हैं, जबकि सरकार अपने राजनीतिक हित-साधन के लिए धार्मिक तीर्थ यात्राओं जैसी योजनाओं पर अपनी सत्ता का आधार तय करने जा रही है। सरकार की इस नीति के विरुद्ध अदालत में दायर याचिका में भी यही दलील दी गई है कि ऐसी तीर्थ यात्राएं जन-साधारण से एकत्रित करों के पैसे की बर्बादी के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। इस प्रकार की नीतियों से नि:संदेह रोडवेज़ एवं पैप्सू रोडवेज़ के घाटे की गठरी और भारी होगी जिसे उतारने के लिए सरकार को अतिरिक्त ऋण उठाना पड़ सकता है। मुख्यमंत्री भगवंत मान राजनीतिक मंचों पर खड़े होकर बेशक भारी-भरकम दमगजे मारते हों, किन्तु वास्तविकता यह है कि पंजाब में युवाओं के लिए नौकरी और रोज़गार के अभी भी लाले पड़े हैं। विकास और उन्नति के धरातल पर एक भी बड़ा और सार्थक पग ऐसा नहीं उठाया जा सका जिसके परिणाम भावी नियति को प्रकाशमान करते दिखाई देते हों। रोडवेज़ में न तो पिछले 20 वर्षों से स्थायी भर्ती की गई है, न यात्री परिवहन के लिए नई बसों का कोई बेड़ा ही खरीदा जा सका है। मौजूदा सरकार के गठन के बाद से रोडवेज़ के कच्चे कर्मचारियों को स्थायी करने के धरातल पर कोई भी कारगर फैसला अभी तक नहीं किया जा सका है।
 मान सरकार द्वारा महिलाओं को मुफ्त यात्रा सुविधा जारी रखने से जहां सैंकड़ों नई बसों की ज़रूरत बढ़ी है, वहीं रोडवेज़ का घाटा भी दुरावस्था  तक पहुंच गया है। मुफ्त की महिला सवारियों को लेकर एक ओर जहां बसों में नत्य-प्रति होते विवाद बढ़े हैं, वहीं अन्य बस-सवारियों को होने वाली परेशानी इसके अतिरिक्त है। नि:संदेह इस स्थिति पर विराम लगना चाहिए। हम समझते हैं कि सरकार को हवा में तीर चलाने की अपेक्षा ठोस धरातल पर खड़े होकर रोडवेज़ की घाटे की व्यवस्था को सुधारने हेतु यत्न करने होंगे। वहीं कर्मचारियों की काले कानून खत्म करने जैसी न्यायोचित मांगों को तत्काल रूप से स्वीकार कर उन्हें आन्दोलन के पथ पर और आगे बढ़ने से रोकना होगा। ऐसा नहीं होने से जहां पंजाब में अव्यवस्था बढ़ेगी, वहीं आम लोगों की समस्याओं और परेशानियों में भी इज़ाफा होगा। हम समझते हैं कि सरकार ने जैसे मांगें मानने की घोषणा की है, उसी भावना के साथ वह इस पर अमल भी करे, अन्यथा कर्मचारियों के रोष के प्याले में पुन: ज्वार उमड़ सकता है।