धूप, छाया, सड़कें तथा पंचकूला

प्रत्येक वर्ष कुतुब की लाठ (दिल्ली) के निकट नवयुग फार्म पर सर्दियों के अंत तथा गर्मियों की आमद के समय होने वाली ‘धुप्प दी महफिल’ दूर-पास के पंजाबी प्रेमियों के मेल-मिलाप का अवसर बनती है। इस वर्ष की महफिल 11 फरवरी को आयोजित हुई। अन्य बातों के अतिरिक्त इसमें मुम्बई के फिल्म जगत से जुड़े अमरीक गिल तथा कुलबीर बडेसरों तथा पट्टी (अमृतसर) के बुज़ुर्ग साहित्यकार निर्मल अरपान का सम्मान किया गया। चाहे एमस्टर्डम, नीदरलैंड्स में रहती अमर ज्योति अपना सम्मान प्राप्त करने के लिए नहीं पहुंच सकीं, परन्तु उसकी कमी राम सरूप अणखी के बेटे क्रांतिपाल ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से दिल्ली का मार्ग तय करके पूरी की। हमेशा की तरह इस महफिल में नव-प्रकाशित पंजाबी पुस्तकें भी लोकार्पित की गईं। इस बार जिनकी संख्या डेढ़ दर्जन थी। इस में तारा सिंह कामल की चुनिंदा कविता तथा ‘कहानी पंजाब’ की 400 पृष्ठों की बड़ी साहित्यिक पत्रिका भी शामिल थी, जिसे इसका वर्तमान सम्पादक क्रांतिपाल अपने पिता अणखी की याद में प्रत्येक वर्ष नई तथा प्रमुख रचनाओं से सजा कर एक पर्चे में कई पुस्तकों जितनी सामग्री पेश करता है। 
इस महफिल में पंजाब से शामिल होने वालों के लिए दिल्ली से वापसी का नया रूट था जो किसान आन्दोलनकारियों से डरते हुए हरियाणा तथा पंजाब की सरकारों ने मुख्य मार्गों पर लोहे तथा पत्थरों के बैरीकेड बना कर बंद कर रखा था। किसानों के दिल्ली प्रवेश को रोकने के उद्देश्य से दिल्ली सरकार ने धारा 144 लगा रखी थी। वैसे भी हरियाणा पुलिस ने सावधानी के तौर पर हमें करनाल से निकलने के बाद कुरुक्षेत्र, शाहबाद मारकंडा, साहा, बरवाला, लाडवा तथा पंचकूला के रास्ते आने की आज्ञा दी। हमें अन्य यात्रियों का तो पता नहीं, मेरे और रघबीर सिंह सिरजना तथा हमारे साथियों के लिए यह मार्ग बिल्कुल ही नया था। हमें तीन-चौधाई रास्ता चंडीगढ़ के मील-पत्थरों के बिना तय करना पड़ा। हरियाणा सरकार ने इस मार्ग को नया, चौड़ा तथा बढ़िया रूप देते हुए प्रत्येक स्थान पर पंचकूला की दूरी तो लिख रखी थी, चंडीगढ़ या शिमला की दूरी नहीं। इन स्थानों का बोर्ड पंचकूला के बहुत निकट आकर पढ़ने को मिला। जैसे हरियाणा की सरकार इस मार्ग पर यात्रा करने वालों को अपनी नई सड़क दिखाना चाहती हो। 
किसान नेताओं का कहना है कि सरकार ने पिछले आन्दोलन के दौरान किसानों की जो मांगें मानी थीं, उन्हें अभी तक पूरा नहीं किया। इन मांगों में लखीमपुर खीरी में मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवज़ा देना, फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी देता कानून बनाना, आन्दोलन के दौरान किसानों पर किए गए केस रद्द करना, आन्दोलन के दौरान शहीद हुए किसानों के परिवारों को सरकारी नौकरी देना, किसानों का ऋण माफ करना आदि शामिल हैं। परिणाम यह कि शंभू सीमा पर नौजवान किसानों के जोश को हरियाणा की पुलिस तथा सेना के जवान  रोक न सके। रबड़ की गोलियां, आंसू गैस के गोलों के बीच किसान डट कर मुकाबला कर रहे हैं। 
चाहे बड़ी संख्या में नौजवान घायल हुए, अधिकतर गोलियों का सामना नौजवान अपनी जान जोखिम में डाल कर करते रहे। समय की सरकारें भूल गई हैं कि हरियाणा तथा पंजाब के लोगों ने इस प्रकार के अत्याचार को कभी भी लम्बे समय तक सहन नहीं किया। सरकारें तथा पुलिस के ऐसे हथकंडों के खिलाफ लोग बार-बार उठे हैं, तथा उन्होंने सरकारों को अपने दमनकारी तरीके छोड़ने के लिए मजबूर किया है। 
गांव पत्तड़ कलां के अनमोल पातर
जालन्धर तहसील में पड़ता 570 हैक्टेयर ज़मीन तथा तीन हज़ार की आबादी वाला गांव पत्तड़ कलां आजकल पूरे पंजाब में छाया हुआ है। यहां जन्मे सुरजीत पातर को पद्मश्री सम्मान के साथ-साथ भाषा विभाग पंजाब ने शिरोमणि पंजाबी कवि के रूप में सम्मानित किया है।  देश-विदेश में उनकी प्रशंसा का अंत नहीं। उनका बेटा मनराज पातर चाहे कविता नहीं रचता, परन्तु उसकी आवाज़ तथा अदा पिता को मात देती है। 
आज बड़ी-बड़ी संस्थाएं पिता-पुत्र को निमंत्रण देतीं तथा सम्मानित करती हैं। इसी माह की सात तारीख को श्री गुरु गोबिन्द सिंह कालेज चंडीगढ़ का स्थापना दिवस था। उन दोनों ने अपने साज़िंदों की सहायता से दशम पातशाह की मेहर, उपलब्धियों व बख्शीश से संबंधित नूर-ए-इलाही कार्यक्रम पेश किया तो खचाखच भरे नलवा हाल के श्रोताओं ने मंत्रमुगध होकर इसका आनन्द लिया। इस कार्यक्रम का तालमेल तथा पेशकारी इतनी अच्छी थी कि इसने दिन-प्रतिदिन लोकप्रिय होते जाना है। पत्तड़ कलां के पातर ज़िन्दाबाद।
अंतिका
—गालिब—
मंज़र एक बुलंदी पर, और हम बना सकते
अर्श से इधर होता, काश कि मन अपना।