जेलों के भीतर बढ़ती जा रही है अव्यवस्था

बठिंडा की केन्द्रीय जेल में कैदियों द्वारा एक सहायक अधीक्षक के साथ हाथ-पाई किये जाने की घटना ने प्रदेश की जेलों की दुरावस्था को एक बार फिर उजागर किया है। इस जेल में सिद्धू मूसेवाल की हत्या के कुछ आरोपियों के साथ कुछ अन्य गैंगस्टर कैदी भी बंद हैं। सूचनाओं के अनुसार जेल में कैदियों को बैरकों में बंद करने के समय और अवधि को लेकर अधिकारियों के साथ कुछ कैदियों की पहले बहस हुई जिसके दौरान उन्होंने एक सहायक अधीक्षक के साथ उग्र बहसबाज़ी की। इस दौरान उन्हें जान से मारने की धमकियां भी दी गईं। इस घटना के बाद बेशक थाना छावनी की पुलिस ने कुछ कैदियों के विरुद्ध शिकायत दर्ज कर ली है, किन्तु इस एक घटना ने एक बार फिर सिद्ध किया है कि प्रदेश की जेलों में सब अच्छा नहीं है, और कि सरकार की सुरक्षा व्यवस्था को जेलों के भीतर की अराजकता ने ठेंगे पर ले रखा है। पंजाब में जेलों के भीतर की स्थिति को लेकर यद्यपि कभी भी कोई सकारात्मक पक्ष दिखाई नहीं दिया, किन्तु मौजूदा आम आदमी पार्टी की भगवंत मान की सरकार तो इस मामले में प्रत्येक चरण पर विफल सिद्ध हुई है। विगत दो वर्ष के कार्यकाल के दौरान जेलों में कैदियों द्वारा वार्डनों एवं अन्य स्टाफ सदस्यों पर हमलों की घटनाओं में निरन्तर वृद्धि होती गई है। कैदियों की आपसी लड़ाइयों में भी इज़ाफा हुआ है, और इस दौरान कैदियों द्वारा जेलों के भीतर बनाये गये तेजधार जुगाड़ू हथियारों और बाहर से मंगवाये गये हथियारों का खुल कर प्रयोग किया गया है।
जेलों में नशीले पदार्थों के मिलने, जेल परिसरों के भीतर ही नशीले पदार्थों का क्रय-विक्रय होने और इस हेतु मोबाइल टैलीफोन सैटों का खुल कर इस्तेमाल होने की घटनाएं भी आम हुई हैं। यह स्थिति किस सीमा तक गम्भीर है, इसका पता इस बात से भी चल जाता है कि स्वयं पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय की ओर से जेलों के भीतर नशे के कारोबार को लेकर कई बार तल्ख टीका-टिप्पणी की जा चुकी है। अदालत ने इस प्रकार के मामलों को लेकर सरकार से कई बार जवाब-तलबी की है कि जेलों के भीतर मोबाइल सैट, नशीले पदार्थों अथवा जुगाड़ हथियारों की पहुंच अथवा निर्माण कैसे हो जाता है। अदालत ने इस सन्दर्भ में कई बार जेल अधिकारियों को निजी तौर पर पेश होने के निर्देश भी जारी किये हैं किन्तु इसे मौजूदा ‘आप’ सरकार की हठधर्मिता कहें, अथवा जेल अधिकारियों द्वारा सरकारी सत्ता की अवज्ञा अथवा अवहेलना कि किसी भी पक्ष के कानों पर कभी जूं तक नहीं रेंगी। जेल अधिकारियों की अवमानना का आलम यह है कि दबंग कैदियों से तो अधिकारी स्वयं डरते हैं, किन्तु नियमों-कानूनों का पालन कर रहे कैदियों के साथ अक्सर मार-पीट की जाती है। ऐसे ही एक अमानवीय मामले की जांच की आंच उच्च न्यायालय तक भी पहुंची है।
पंजाब की जेलों के भीतर की इस अराजक और अनुशासनहीन स्थिति के लिए अनेक कारण उत्तरदायी हो सकते हैं किन्तु एक बड़ा कारण जेलों में स्टाफ की भारी कमी होना भी है। भगवंत मान सरकार की ओर से बेशक प्रदेश के अनेकानेक विभागों में नई भर्ती और नई नौकरियों के बड़े-बड़े दावे और घोषणाएं की गई हैं। ऐसे दावों का भारी-भरकम विज्ञापनों के ज़रिये प्रचार भी बहुत किया गया है, किन्तु वास्तविकता के धरातल पर पुलिस प्रशासन, जेल विभाग और सरकारी निकाय विभाग में स्टाफ की कमी के समाचार अक्सर मिलते  रहते हैं। जेलों में स्टाफ की कमी का आलम तो यह है कि अभी हाल ही में हाईकोर्ट ने सरकार को नोटिस भेज कर पूछा है कि जेलों में स्वास्थ्य धरातल पर स्टाफ की कमी किस सीमा तक है। स्वयं सरकार की अपनी एक रिपोर्ट के अनुसार पंजाब की जेलों में डेढ़ लाख से अधिक बंदी कई प्रकार के रोगों का शिकार हुए पाये गये हैं। सामाजिक सुरक्षा, महिला और बाल विकास की टीमों ने भी जेलों में स्टाफ की कमी और कैदियों के बीमार होने के मामलों को लेकर चिन्ता जताई है।
हम समझते हैं कि नि:संदेह पंजाब की जेलों की दाल में थोड़ा-सा नहीं, बहुत कुछ काला मौजूद है। अदालतों ने स्पष्ट रूप से इस ओर इंगित किया है कि एक ओर तो जेल स्टाफ की मिली-भुगत से ही जेलों में नशा और मोबाइल सैट पहुंचते हैं, वहीं जेलों में स्टाफ की कमी भी इस समस्या के लिए उत्तरदायी बनती है। सरकार के कई विभागों की ओर से अक्सर नई भर्तियों के विज्ञापनी दावे अवश्य किये जाते हैं, किन्तु अदालतों की टिप्पणियां सरकारी दावों की पोल खोल कर रख देती हैं। जेलों के भीतर से हज़ारों काल्स होने और हज़ारों अन्य लेन-देन होने की शिकायतों के प्रमाण भी सामने आए हैं। हम समझते हैं कि जेलों के भीतर की अव्यवस्था और कानून-हीनता पर काबू पाने के लिए नि:संदेह सरकार को ठोस योजनाबंदी करनी होगी। ऐसा न होने पर जेलों के भीतर की स्थिति के प्रदेश की कानून  व्यवस्था के जिस्म पर नासूर बनते जाने का ़खतरा निरन्तर बड़ा होता जाएगा।