रोज़गार सृजन पर केन्द्र सरकार की चुप्पी पर उठते सवाल

यह समझना मुश्किल है कि केन्द्र सरकार रोज़गार सृजन पर चुप क्यों है जबकि वह साल-दर-साल बुनियादी ढांचे पर रिकॉर्ड खर्च का लगातार दावा कर रही है। नयी नौकरी चाहने वालों के लिए अवसर लगातार कम हो रहे हैं। पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए बेरोज़गारी का लगातार बढ़ना चिन्ता का कारण बनता जा रहा है। वर्तमान में देश का वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक हो सकता है, लेकिन स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा समय-समय पर जारी किये जाने वाले बेरोज़गारी के आंकड़ों को देखते हुए यह रोज़गारहीन आर्थिक विकास की तरह दिखता है जबकि बुनियादी ढांचे पर होने वाला खर्च सीधे तौर पर रोज़गार से जुड़ा होता है।
सरकार ने देश के सतत् विकास के लिए 2019 से 2023 तक पांच साल की अवधि में बुनियादी ढांचे पर 14 खरब डॉलर खर्च करने की अपनी योजना के बारे में अक्सर बात की थी। इस तरह के बुनियादी ढांचे के खर्च से देश में स्वचालित रूप से लाखों नौकरियां पैदा होनी चाहिए थीं। यदि हां तो सरकार बुनियादी ढांचे के खर्च से जुड़े रोज़गार सृजन पर चुप्पी क्यों साधे हुए है? केंद्रीय वित्त मंत्री ने अपने वार्षिक बजट में रोज़गार सृजन के आंकड़ों को क्यों छोड़ दिया? आर्थिक मामलों के विभाग के तहत वित्त मंत्रालय की बुनियादी ढांचा नीति और योजना प्रभाग, रेलवे, परिवहन विभाग, राजमार्ग और एक्सप्रेस-वे के साथ-साथ सरकार के समग्र बुनियादी ढांचे के खर्च में सीधे शामिल है। रोज़गार सृजन पर मंत्रालय की लम्बी चुप्पी एक बड़ा रहस्य बनी हुई है।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के अनुसार भारत के 2030 तक सात वित्तीय वर्षों में बुनियादी ढांचे पर लगभग 143 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की संभावना है जो 2017 और 2023 के बीच पिछले सात वित्तीय वर्षों में खर्च किए गए 67 लाख करोड़ रुपये से दोगुने से भी अधिक है। हालांकि इन्फ्रास्ट्रक्चर फंड आवंटन और परियोजनाओं के समय पर निष्पादन के बीच बहुत अंतर है। ऐसा प्रतीत होता है कि बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर तथाकथित बजट आवंटन और उनके कार्यान्वयन से संबंधित जानकारी में कुछ गंभीर गड़बड़ी है।
राष्ट्रीय बजट शायद ही परियोजना कार्यान्वयन में अत्यधिक देरी के बारे में बात करता है, जिसके कारण कई प्रमुख परियोजनाएं रद्द हो गयीं और अन्य की लागत में भारी वृद्धि हुई। आधिकारिक रिपोर्टों से पता चलता है कि पिछले जुलाई माह तक लगभग 809 विलंबित परियोजनाओं की लागत में 4.65 लाख करोड़ रुपये से अधिक की वृद्धि हुई। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की एक रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि 117 अरब डॉलर (7.63 लाख करोड़ रुपये) की परियोजनाएं वित्त वर्ष 2018 में खत्म कर दी गयी। यह संदिग्ध है कि क्या बुनियादी ढांचा क्षेत्र पर वार्षिक बजट आवंटन वास्तविक परियोजना खर्च या गैर-खर्च की सही तस्वीर प्रदान करता भी है? रोज़गार सृजन के पहलू पर सरकार की लगातार चुप्पी के पीछे यह एक कारण हो सकता है। इन परिस्थितियों में ज़ोरदार बुनियादी ढांचे के बजट आवंटन प्रस्ताव कुछ हद तक खोखले लग सकते हैं।
2023-24 के आखिरी पूर्ण बजट में बुनियादी ढांचे के लिए सरकार का पूंजी निवेश परिव्यय 33 प्रतिशत बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपये (122 अरब डॉलर) कर दिया गया था। सरकार का रेलवे के बुनियादी ढांचे के विकास पर 2.40 लाख करोड़ रुपये खर्च करने का इरादा है जो अब तक का सबसे अधिक परिव्यय और 2013-14 के आवंटन का लगभग नौ गुना होने का दावा किया गया है। अंतिम मील कनेक्टिविटी के लिए लगभग 100 महत्वपूर्ण परिवहन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को 75,000 करोड़ रुपये (़9बिलियन) के निवेश के साथ प्राथमिकता पर लेने के लिए पहचाना गया था, जिसमें निजी स्रोतों से 15,000 करोड़ रुपये भी शामिल थे। इनका उद्देश्य बंदरगाह, कोयला, इस्पात, उर्वरक और खाद्यान्न जैसे क्षेत्रों को लाभ पहुंचाना है। इसके अतिरिक्त, सरकार ने 50 और हवाई अड्डों, हेलीपोर्टों, जल हवाई अड्डों और उन्नत लैंडिंग मैदानों को पुनर्जीवित करके क्षेत्रीय हवाई कनेक्टिविटी में सुधार करने की योजना बनायी है। उम्मीद तो यह थी कि सरकार 2024-25 के लेखानुदान बजट में आम आदमी और विशेष रूप से करदाताओं को जानकारी देगी तथा रोज़गार पर उनके प्रभाव के बारे में परियोजनाओं के कार्यान्वयन की स्थिति पर एक पूरी रिपोर्ट प्रदान करेगी।
दुर्भाग्य से पूंजी निवेश के उन बड़े-बड़े अनुमानों से परे बढ़ती बेरोज़गारी की गंभीर हकीकत भी छिपी है। सरकार यह बताने में असमर्थ है कि इतने बड़े निवेश पर्याप्त नौकरियां पैदा करने में विफल क्यों हो रहे हैं। हर महीने नौकरी की तलाश कर रहे युवाओं की बढ़ती संख्या से स्थिति और खराब होती जा रही है। सीएमआईई की रिपोर्ट के अनुसार बेरोज़गारी दर लगभग आठ प्रतिशत के आस-पास मंडरा रही है जो लगभग पांच साल पहले लगभग पांच प्रतिशत थी। बताया गया है कि रोज़गार के लिए कानूनी उम्र के 900 मिलियन भारतीयों में से श्रम बल भागीदारी दर छह साल पहले 46 प्रतिशत से गिरकर 40 प्रतिशत हो गयी है।
विश्व बैंक द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार 2010 और 2020 के बीच भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या 26 प्रतिशत से घटकर 19 प्रतिशत हो गयी। सीएमआईई के एक अनुमान में कहा गया है कि 2022 तक महिला श्रम बल की भागीदारी घटकर नौ प्रतिशत रह गयी थी। श्रम बाज़ार संकट के दौर से गुजर रहा है। वर्तमान समय में नौकरियां कम हैं। मांग व आपूर्ति का अंतर बढ़ रहा है। 
राज्य स्तरीय चयन परीक्षा पास करने वाले हज़ारों सरकारी वित्त पोषित स्कूलों में नौकरी के इच्छुक उम्मीदवार महीनों से धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं क्योंकि कथित भर्ती घोटाले के कारण उन्हें नौकरी नहीं मिली। बेटरप्लेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यापक आर्थिक चुनौतियों और अनिश्चित आर्थिक माहौल के कारण 2022-23 में भारत में फ्रंटलाइन नौकरियों की संख्या में 17.5 प्रतिशत की गिरावट आयी है। बेटरप्लेस एशिया का सबसे बड़ा मानव पूंजी ऐसा समाधान है जो उद्यमों को अपने फ्रंटलाइन श्रमिकों के सम्पूर्ण जीवन-चक्र का प्रबंधन करने में सक्षम बनाता है।
ज़ाहिर है भारत में मौजूदा बेरोज़गारी की स्थिति का सरकार के बुनियादी ढांचे के निवेश के दावों से कोई संबंध नहीं है। जैसा कि पूरी दुनिया में देखा गया है कि बुनियादी ढांचा निवेश रोज़गार सृजन के लिए एक इंजन की तरह काम करता है। आर्थिक विकास की पूरी क्षमता का दोहन करने के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश और नौकरी में वृद्धि के बीच संबंध महत्वपूर्ण है। बेहतर कनेक्टिविटी, रोज़गार सृजन, प्रतिस्पर्धात्मक लाभ और जीवन की बेहतर गुणवत्ता बुनियादी ढांचे के विकास के कुछ प्रमुख लाभ हैं। सरकार का बड़ा बुनियादी ढांचा निवेश देश के आम नागरिकों के रोज़गार सृजन और जीवन की गुणवत्ता जैसे क्षेत्रों में प्रदर्शन से मेल खाने में विफल रहता है। यह संभव है कि वास्तविक जमीनी निवेश बजटीय निधि आवंटन से काफी कम हो। इससे शायद यह समझा जा सकता है कि सरकार रोज़गार सृजन पर चुप क्यों है। (संवाद)