लोकसभा चुनाव में नैतिक मर्यादा कितनी ज़रूरी ?

भारतीय लोकसभा चुनाव का शंखनाद हो चुका है। केवल चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की तारीख की घोषणा बाकी है। संभवत: मार्च माह के दूसरे सप्ताह में चुनावी तारीखों का ऐलान भी हो सकता है। यह चुनाव सिर्फ  राजनीतिक ही नहीं होता, बल्कि एक विचारशील भारतीय जनता की अभिव्यक्ति भी होता है। चुनाव के माध्यम से लोग अपनी समस्याओं, आकलनों और आशाओं को साझा करते हैं, जिससे राजनीतिक प्रक्रिया और नेताओं की गतिविधियों को निर्देशित किया जा सकता है। भारतीय लोकतंत्र में लोकसभा के चुनाव देशवासियों के लिए एक महत्वपूर्ण और गर्व की बात है। यह चुनाव एक समाजशास्त्रीय उत्सव की तरह होता है जिसमें नागरिकों को अपने मताधिकार का उपयोग कर निर्णय लेने का मौका मिलता है कि वे किसे अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व संसद में करने का मौका देंगे। चुनाव के समय, विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशी लोगों के बीच जाकर राजनीतिक रैलियों, संवादों और प्रचार-प्रसार के माध्यम से अपनी बात कहते हैं। हमारे देश में बोलने का अधिकार है, इसकी रक्षा करना लोकतांत्रिक धर्म है लेकिन इसकी आड़ में चुनावों में मर्यादाहीन भाषा चिंताजनक है।
देश में जब-जब भी चुनाव आते हैं, तब-तब राजनेताओं का बड़बोलापन व भाषा की मर्यादा सीमा लांघ जाती है। इस माहौल में देश में जाति, धर्म, लिंग भेद के नाम पर तरह-तरह के जुमले चलते हैं। चुनावों में अनैतिकता बढ़ जाती है। चुनाव में बढ़ते अनैतिक आचरण से हमारे लोकतंत्र की मर्यादा तार-तार हो रही है। चुनाव लड़ने वाले नेताओं से जनता यह अपेक्षा करती है कि अपनी भाषायी मर्यादा के साथ-साथ चुनाव में किसी भी प्रकार का ऐसा आचरण नही करें जिससे आम जनता पर विपरीत असर पड़े। देश के राजनीतिक दलों को भी चाहिए कि वे उन लोगों को टिकट दें जो नैतिक व ईमानदार छवि वाले हों।
चुनाव लड़ना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन चुनाव में लोकतांत्रिक व्यवस्था के विपरीत आचरण करना राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा है। चुनाव भले ही महाविद्यालय के हों, पंचायत स्तर के हों, विधानसभा या लोकसभा के ही क्यों न हों, लेकिन जब नैतिकता एवं मर्यादा को ताक पर रखकर चुनाव लड़े जाते हैं तो चुनाव दंगल का रूप ले लेते हैं। ऐसी स्थिति में एक-दूसरे के प्रति सम्मान, सद्भाव एवं देश विकास की बात गौण हो जाती है इसलिए चुनावों में नैतिक आचरण बहुत ज़रूरी है। मूल्यों की रक्षा एवं विकास के लिए ऐसे उम्मीदवारों को संकल्प ग्रहण करना होगा जो देश के विकास में सहभागी बनना चाहते हैं। तभी इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में देश की जनता के साथ समुचित न्याय किया जा सकता है।
चुनाव शुद्धि देश की जनता के सामने बहुत बड़ा विकल्प है। अगर जनता चुनाव शुद्धि को सफल बनाती है तो देश को एक स्वस्थ सरकार मिल सकती है, जिसके परिणामस्वरूप देश का प्रत्येक क्षेत्र में  विकास होगा। चुनाव शुद्धि के लिए उम्मीदवार यह संकल्प ग्रहण करें कि वे चुनाव में विजयी हों या न, परन्तु किसी भी हालत में भ्रष्ट व अनैतिक तरीकों का इस्तेमाल नहीं करेंगे। इसी प्रकार सत्ता पर आसीन दल की बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी बनती है कि चुनाव में सरकारी सम्पत्ति एवं साधनों का उपयोग किसी भी प्रकार नहीं होना चाहिए। सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी बनती है हमारी जनता जर्नादन की, जिसे किसी लोभ, भय आदि में आकर मतदान कदापि नहीं करना चाहिए। तभी स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था को अमली जामा पहनाया जा सकता है। जब चुनाव में अनैतिक आचरण नहीं होगा, तब योग्य उम्मीदवार का सामने आना तय है। वर्तमान हालात में चुनावों की दशा देखकर योग्य उम्मीदवार स्वयं ही किनारा कर लेता है, जो देश में सही लोकतांत्रिक व्यवस्था व विकास के लिए अच्छी बात नहीं है। देश की जनता को सजग व जागरूक होना होगा, योग्य उम्मीदवार का चयन करना होगा। तभी इस चुनाव की व्यवस्था को सुधारा जा सकता है। जब यह व्यवस्था लोकतंत्र में प्रभावी होगी, तभी उम्मीदवार यह संकल्प ग्रहण कर पायेगा कि वह चुनावों में अनैतिक आचरण नहीं...।
लोकतंत्र में चुनावों का आयोजन न केवल एक तकनीकी प्रक्रिया है बल्कि यह एक आत्मिक घोषणा भी है। चुनाव देशवासियों के लिए जागरूकता और सहभागिता का प्रतीक होते हैं जिसमें हर व्यक्ति की एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कोई भी चुनाव देश के नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रेरित करता है। लोकतंत्र का सबसे महत्वपूर्ण उत्सव लोकसभा चुनाव जब भी आता है, वह एक शंखनाद की तरह हमारे देश में गूंजता है। इस शंखनाद के पीछे कई कारण होते हैं। पहला, यह चुनाव जनता के अधिकार का प्रतीक होता है। लोकतंत्र में लोकसभा चुनाव एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें हर नागरिक को अपने प्रतिनिधि का चयन करने का अधिकार होता है। यह चुनाव देशवासियों को एक मंच प्रदान करता है जिस पर वे अपनी समस्याओं, आशाओं और विचारों को व्यक्त कर सकते हैं। दूसरा, लोकसभा चुनाव एक प्रकार का जनता की बात समझने का माध्यम भी होता है। यह चुनाव दिखाता है कि लोग किस पार्टी या नेता पर विश्वास करते हैं और किस पर नहीं। इससे राजनीतिक दलों को जनमत के आधार पर अपनी रणनीति बनाने का अवसर मिलता है। तीसरा, लोकसभा चुनाव एक महत्वपूर्ण विकल्प का माध्यम होता है। यह चुनाव हमें एक नया नेतृत्व चुनने का मौका देते हैं, जो देश के विकास और सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।  (अदिति)