ज्ञान-विज्ञान का स्रोत होने चाहिएं किसान मेले 

 

ज्ञान-विज्ञान तथा संशोधित शुद्ध बीज कृषि का केन्द्र हैं। कृषि प्रसार सेवा अब न कृषि विश्वविद्यालय और न पंजाब कृषि एवं किसान कल्याण विभाग द्वारा पूर्व की भांति किसानों से सम्पर्क करके उपलब्ध हो रही है। विश्वविद्यालय तथा विभाग दोनों ने मुख्य तौर पर किसान मेलों तथा किसान प्रशिक्षण शिविरों के माध्यम से ही यह सेवा उपलब्ध करवाने का यत्न जारी रखा हुआ है। खरीफ की फसलों के संबंध में जानकारी तथा अलग-अलग फसलों के बीज किसानों को उपलब्ध करवाने के लिए आई.सी.ए.आर.-इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट पूसा दिल्ली में जो 28 फरवरी से तीन दिवसीय कृषि विज्ञान मेला आयोजित होना था, वह अब स्थगित कर दिया गया है। मेले की नई तिथि भविष्य में घोषित की जाएगी। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) भी 5 मार्च को नाग कलां जहांगीर (अमृतसर) में, 7 मार्च को बल्लोवाल सौंखड़ी तथा 12 मार्च को बठिंडा में किसान मेले आयोजित कर रहा है। इसके अतिरिक्त 18 मार्च को फरीदकोट, 22 मार्च को रौणी (पटियाला) तथा 20 मार्च को गुरदासपुर में किसान मेले लगाए जाएंगे। पीएयू द्वारा मुख्य किसान मेला लुधियाना विश्वविद्यालय परिसर में 14-15 मार्च को लगाया जाएगा। इसके अतिरिक्त पंजाब यंग फार्मर्स एसोसिएशन द्वारा किसानों को बासमती किस्मों तथा सब्ज़ियों के शुद्ध बीज वितरित करने के लिए 20 मार्च को आई.ए.आर.आई-कोलैबोरेटिव आऊटस्टेशन रिसर्च सैंटर रखड़ा (पटियाला-नाभा रोड) में एक विशेष बीज वितरक तथा किसान प्रशिक्षण शिविर लगाया जाएगा। इन किसान मेलों तथा शिविरों में आम तौर पर जो किसान आते हैं, उनमें दूरवर्ती एवं निकटवर्ती गांवों के छोटे तथा ठेके पर कृषि कर रहे किसान कम संख्या में शामिल होते हैं। किसान मेले ही ज्ञान-विज्ञान तथा बीज उपलब्ध करने के केन्द्र हैं। इन वर्गों के किसान आम तौर पर नये अनुसंधानों की जानकारी तथा बीज से वंचित रह जाते हैं। उनमें से अधिकतर पुरानी किस्मों के बीज ही परम्परागत विधियों से इस्तेमाल करने के लिए मजबूर हैं, जिस कारण उनका उत्पादन कम रह जाता है।
बीज की मंडी बड़ी जटिल हो गई है, वहां अप्रमाणित किस्मों के बीज आम ही बेचे जाते हैं। किसानों को कृषि विशेषज्ञों से सरकारी या निजी क्षेत्र में सम्पर्क करके अपनी खरीफ की बिजाई हेतु योजना बनानी चाहिए ताकि वे नई किस्मों के बीज तथा नई तकनीकों का इस्तेमाल करके अपना उत्पादन बढ़ाएं तथा अपनी आय में वृद्धि करें। 
मार्च में आयोजित किये जा रहे इन किसान मेलों में धान तथा बासमती की अलग-अलग किस्मों की मांग मुख्य रहने की सम्भावना है। धान खरीफ के मौसम में पंजाब की मुख्य फसल है, जिसकी 31 लाख हैक्टेयर से अधिक रकबे पर बिजाई हो रही है। इसमें लगभग 6 लाख हैक्टेयर रकबा बासमती की काश्त के अधीन है। गत वर्ष खुली मंडी में बासमती की किस्मों का किसानों को अच्छा दाम मिलने के कारण उनका अधिक रूझान बासमती किस्मों की काश्त की ओर रहने की सम्भावना है। आई.सी.ए.आर.-इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीच्यूट द्वारा बासमती का अधिक उत्पादन तथा लाभ देने वाली नई किस्में पूसा बासमती-1847, पूसा बासमती-1885 तथा पूसा बासमती-1886 विकसित करके किसानों के खेतों में काश्त करने के लिए जारी की गई हैं। पूसा बासमती-1847 किस्म कम समय में पकने वाली पूसा बासमती-1509 का विकल्प है। 
किसान मेले आयोजित करने वाली संस्थाओं को व्यापारिक नीति नहीं अपनानी चाहिए। उन्हें किसानों का वैज्ञानिकों से सम्पर्क तथा उनको ज्ञान-विज्ञान उपलब्ध करवाने की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए। इन मेलों में जो प्रदर्शनियां लगाई जाती हैं, वे सही रूप में किसानों के लिए कृषि सामग्री तथा कृषि मशीनरी की प्रदर्शनियां हों, व्यापारिक दुकानें नहीं। मेलों में प्रदर्शनियां लगाने के लिए स्टाल बुक करने पड़ते हैं, जिनका किराया बहुत ज़्यादा होता है। इन प्रदर्शनियों में सिर्फ वही फर्में या व्यापारी भाग ले सकते हैं, जिनका इन वस्तुओं का बड़ा व्यापार है और मेले में वे अपना सामान बेच कर या बुकिंग करके प्रदर्शनी पर किया गया खर्च वसूल करने का प्रयास करते हैं। प्रबंधकों को प्रदर्शनी में भाग लेने वाली फर्मों को बिक्री दुकानें नहीं बनने देना चाहिए, अपितु किसानों को तकनीकी जानकारी उपलब्ध करवाने का साधन बनाने की कोशिश करनी चाहिए। किसान मेलों को प्रभावशाली बनाकर किसानों तक नया कृषि ज्ञान तथा विज्ञान पहुंचाने के लिए आवश्यक सुधार लाने की आवश्यकता है। अब जब कृषि प्रसार सेवा में कुछ सुस्ती आ गई है, इन किसान मेलों द्वारा किसानों का ज्ञान बढ़ाने के लिए अधिक से अधिक प्रयास होने चाहिएं और इन किसान मेलों द्वारा ही किसानों के लिए लाभदायक योजनाएं और सही मायनों में उनके काम आने वाली मशीनें उन तक पहुंचाने के लिए प्रभावशाली कदम उठाए जाने चाहिएं। इन किसान मेलों को राजनीति तथा व्यापार का केन्द्र नहीं बनने देना चाहिए।