अब पाकिस्तान नहीं जाएगा रावी का पानी

पंजाब और जम्मू-कश्मीर सीमा पर केंद्र सरकार के सहयोग से शाहपुर कंडी बांध बन कर तैयार हो गया है। जानकारी के मुताबिक इस बांध के बनने के बाद रावी नदी का पानी पाकिस्तान की ओर जाना लगभग बंद हो चुका है। इसका अर्थ यह है कि भारतीय किसानों को अब उस 1150 क्यूसिक पानी का लाभ मिल सकेगा जो पहले पाकिस्तान को मिलता था। कठुआ और सांबा ज़िले की 32 हज़ार हैक्टेयर ज़मीन की सिंचाई में इस पानी का इस्तेमाल किया जाएगा। उल्लेखनीय है कि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि हुई थी जिसके तहत भारत के पास रावी, सतलुज और ब्यास नदियों के पानी का अधिकार है जबकि सिंधु, झेलम और चिनाब नदी के पानी पर पाकिस्तान का हक है। रावी, ब्यास और सतलुज को पूर्वी नदियां जबकि चिनाब, झेलम और सिंधु को पश्चिमी नदियां कहा जाता है। 
शाहपुर कंडी बांध परियोजना की नींव 1995 में पी.वी. नरसिम्हा राव ने रखी थी। इसके बाद पंजाब और जम्मू-कश्मीर सरकार के बीच कई विवाद होने की वजह से इस परियोजना का काम ठप्प पड़ गया था। वर्ष 2014 में भाजपा सरकार के केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने इस मुद्दे को प्रधानममंत्री मोदी के सामने रखा था। प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप के बाद दोनों राज्यों के बीच के विवादों को सुलझाया गया और 2018 में इस बैराज का काम फिर से शुरू हुआ। रावी नदी पर बांध बनने से पहले लगभग 2 मिलियन एकड़ फुट पानी पाकिस्तान चला जाता था, लेकिन अब भारत इस पानी का इस्तेमाल अपने लाभ के लिए कर सकेगा। बता दें कि रावी नदी भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में बहती है। रावी नदी का उद्गम भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य में रोहतांग दर्रे के पास है। हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पंजाब से होकर यह नदी पाकिस्तान में प्रवेश करती है। बता दें कि भारत सरकार ने हाल के वर्षों में कई जल भंडारण कार्यों को अंजाम दिया है। सतलुज पर भाखड़ा बांध, ब्यास पर पोंग और पंढोह बांध, रावी पर थीन बांध (रणजीत सागर) के साथ-साथ ब्यास-सतलुज लिंक और इंदिरा गांधी नहर परियोजना जैसी अन्य परियोजनाओं ने भारत को पूर्वी नदियों के जल का लगभग पूरे हिस्से का उपयोग करने की अनुमति दी है।
गौरतलब है कि भारत द्वारा सिंधु जल संधि 1960 में संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस जारी किया गया था। 62 साल के इतिहास में यह पहली बार है जब भारत ने सिंधु जल संधि में संशोधन की मांग की थी। उस समय पाकिस्तान को जारी नोटिस इसलिए भी मायने रखता था, क्योंकि भारत के कई विशेषज्ञ समय-समय पर इस समझौते को रद्द करने की मांग करते रहे हैं। भारत भी इससे पहले पाकिस्तान को पानी रोकने की चेतावनी दे चुका था।
पुलवामा हमले के बाद फरवरी 2019 में भारत के तत्कालीन परिवहन और जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा था कि भारत पाकिस्तान में बह रहे अपने हिस्से के पानी को रोक सकता है। सिंधु जल समझौता रद्द होने या भारत की ओर से पानी का बहाव बदलने से पाकिस्तान में नदी के पानी पर निर्भर रहने वाले करोड़ों लोगों के लिए संकट पैदा हो सकता है। सरकारी सूत्रों के अनुसार भारत ने यह नोटिस 25 जनवरी, 2022 को जारी किया था। भारत की ओर से जारी नोटिस में कहा गया था कि भारत पाकिस्तान के साथ जल संधि को पूरी तरह से लागू करने का समर्थक रहा है, लेकिन पाकिस्तान की कार्रवाइयों ने भारत को ज़रूरी नोटिस जारी करने के लिए मजबूर कर दिया। नोटिस जारी करने का मुख्य मकसद पाकिस्तान को समझौते के उल्लंघन को सुधारने के लिए 90 दिनों की मोहलत देना था। पाकिस्तान नोटिस प्राप्त करने के तीन महीने के भीतर आपत्ति दर्ज करा सकता था।
दरअसल सिंधु जल संधि तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी सेना के जनरल अयूब खान के बीच कराची में सितम्बर 1960 में हुई थी। लगभग 63 साल पहले हुई सिंधु जल संधि के तहत भारत को सिंधु तथा उसकी सहायक नदियों से 19.5 प्रतिशत पानी मिलता रहा है जबकि पाकिस्तान को लगभग 80 प्रतिशत पानी मिलता रहा। 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु घाटी को छह नदियों में विभाजित करते हुए इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस संधि के तहत दोनों देशों के बीच प्रत्येक साल सिंधु जल आयोग की वार्षिक बैठक होना अनिवार्य रखा गया। सिंधु जल संधि को लेकर पिछली बैठक 30-31 मई, 2022 को नई दिल्ली में हुई थी। इस बैठक को दोनों देशों ने सौहार्दपूर्ण बताया था। पूर्वी नदियों पर भारत का अधिकार है जबकि पश्चिमी नदियों को पाकिस्तान के अधिकार में दे दिया गया। इस समझौते की मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी।
भारत को आवंटित तीन पूर्वी नदियां सतलुज, ब्यास और रावी के कुल 168 मिलियन एकड़ फुट में से लगभग 33 मिलियन एकड़ फुट वार्षिक जल भारत के लिए आवंटित किया गया है। भारत अपने हिस्से का लगभग 90 प्रतिशत ही उपयोग करता है। शेष बचा हुआ पानी पाकिस्तान चला जाता है जबकि पश्चिमी नदियां जैसे सिंधु, झेलम और चिनाब का लगभग 135 मिलियन एकड़ फुट वार्षिक जल पाकिस्तान को आवंटित किया गया है। सिंधु जल प्रणाली में मुख्य नदी के साथ-साथ पांच सहायक नदियां भी शामिल हैं। इन नदियों में रावी, ब्यास, सतलुज, झेलम और चिनाब हैं। ये नदियां सिंधु नदी के बाएं ओर बहती है। 
दरअसल सिंधु जल संधि के तहत भारत को कुछ शर्तों के साथ पश्चिमी नदियों पर रन ऑफ द रिवर परियोजना के माध्यम से पनबिजली उत्पन्न करने का अधिकार दिया गया है। भारत के केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा (नीलम) और रातले जलविद्युत परियोजनाएं इन्हीं पश्चिमी नदियों पर हैं, लेकिन पाकिस्तान इस पर आपत्ति जताता रहा है। पाकिस्तान ने 2015 में इस परियोजना पर तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति का अनुरोध किया था, लेकिन 2016 में पाकिस्तान ने इस अनुरोध को एकतरफा वापस लेते हुए फैसला सुनाने के लिए एक मध्यस्थ अदालत की मांग की थी। पारस्परिक रूप से बीच का रास्ता निकालने के लिए भारत की ओर से बार-बार प्रयास करने के बावजूद पाकिस्तान ने 2017 से 2022 तक स्थायी सिंधु आयोग की पांच बैठकों में इस पर चर्चा करने से इन्कार कर दिया था। इस तरह से पाकिस्तान की ओर से सिंधु जल संधि के प्रावधानों के लगातार उल्लंघन ने भारत को सिंधु जल समझौते में संशोधन को लेकर नोटिस जारी करने के लिए मजबूर कर दिया था।