क्यों भूकम्प आया प्रदेश की राजनीति में ?

कुछ समय पहले नितीश कुमार द्वारा पाला बदलने से बिहार से लेकर दिल्ली तक की राजनीति में भूकम्प मचा दिया था। इस पर हर किसी के अपने-अपने विचार थे, उसी समय दिव्य हिमाचल ने सवाल पूछा था कि क्या बिहार की राजनीति का असर हिमाचल प्रदेश की राजनीति पर भी हो सकता है। बहुत से लोगों ने यही बात सोची होगी शायद ऐसा न हो, लेकिन हाल ही के राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के कुछ विधायकों ने प्रदेश की राजनीति में जो हलचल मचा दी उसे देखकर हर कोई हैरान हो गया। इस राजनीतिक हलचल ने तो सुक्खू सरकार की जड़ों को हिला दिया, प्रदेश की राजनीति की हलचल राष्ट्रीय मीडिया पर जबरदस्त अभी तक सुर्खियों में है। 
अभी तक मीडिया का कुछ हिस्सा यह अंदाजा लगा रहा था कि सुक्खू सरकार कभी भी गिर सकती हैं हालांकि ऐसा हुआ नहीं है अभी तक। प्रदेश में राज्यसभा चुनाव में जो हलचल हुई उसके बारे तो प्रदेश की जनता शायद जानती भी नहीं होगी कि आखिर यह मामला है क्या? क्योंकि यहां के लोग राजनीति में कम ही रूचि रखते हैं और लगभग 1977 से विधानसभा चुनाव में सरकार बदलते आएं हैं। लेकिन यह समझना ज़रूरी है कि आखिर राज्यसभा क्या होता है, राज्यसभा के चुनाव में आमजन भाग नहीं लेता है बल्कि इसमें राज्यों के विधायक मतदान करते हैं। और जिस दल के उम्मीदवार के पक्ष में ज्यादा विधायक करते हैं उस दल का उम्मीदवार राज्यसभा का उम्मीदवार विजयी घोषित किया जाता है। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद भी क्रास की वोटिंग क्यों हुई यह समझ से बाहर है। 
हिमाचल प्रदेश की राजनीति में जो कांग्रेस के कुछ विधायकों की राज्यसभा के चुनाव में जो क्रास वोटिंग से भूकम्प आया उसका भी कहीं न कहीं कारण कांग्रेस की हाईकमान की गलतियों का ही नतीजा है, इसने विधायकों की नाराज़गी दूर करने के लिए गंभीरता से प्रयास क्यों नहीं किए? अगर किसी भी राजनीतिक पार्टी में स्वार्थी और दलबदलू गलत मंशा वाले लोग शामिल हो तो उस राजनीति पार्टी की हाइकमान भी क्या करे? 
लोकतंत्र में यह कोई हैरत की बात नहीं कि कोई किसी भी राजनीतिक पार्टी का छोटा-बड़ा राजनेता पार्टी बदलता है, जब किसी राजनेता को अपनी मौजूदा पार्टी की हाइकमान की नीतियां गलत लगे तो वो पार्टी बदलने में पूर्ण रूप से स्वतंत्र होता है। लेकिन जब कोई वर्षों तक पार्टी में रहा हो और जो पार्टी का खास चेहरा हो वो पार्टी को छोड़ दे तो वो उस पार्टी के लिए खतरे की घंटी मानी जा सकती है।