अविश्वास वाला बजट

वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा द्वारा वर्ष 2024-25 के लिए पेश किए गये बजट ने पंजाबियों को बड़ी हद तक निराश किया है। इस सरकार के गठन से पहले आम आदमी पार्टी के बड़े नेताओं ने जहां बहुत सारे दावे किए थे, वहीं लोगों के साथ अनेक वायदे भी किए थे। भगवंत मान ने तो बार-बार पंजाब में इन्कलाब लाने की बात भी की थी। शहीद भगत सिंह का नाम बार-बार लिया था और कहा था कि हमारी सरकार बनने पर पंजाब में एक नई सुबह होगी। अपने शासन काल के दो वर्ष के समय के दौरान ही इस पार्टी के नेताओं ने लोगों के मनों में बने सपनों को चूर-चूर कर दिया है। किसी भी पक्ष से देखते हुए असंतुष्टि ही नज़र आती है। अब तक सरकार द्वारा नए शुरू किए गये अनेक प्रोजैक्ट आधे अधूरे लगते हैं और उनके पूरा होने की उम्मीद भी नज़र नहीं आती, ऐसा आभास ही नए पेश किए गए बजट से होता है। ज़रूरत तो यह थी कि सरकार बड़े स्तर पर प्राथमिक ढांचे का निर्माण करती लेकिन निर्माण के लिए लम्बी योजनाबंदी की आवश्यकता होती है और इसके साथ ही समुचित फंड भी होने ज़रूरी होते हैं। यदि सरकार की पहल विज्ञापनबाज़ी द्वारा लोगों को भरमाने की रही हो तो इस हेतु खर्च की जाती बड़ी रकम की सरकार को कोई चिंता नहीं होती। सरकार से इस बात की भी उम्मीद की जाती थी कि अलग-अलग विभागों में अच्छी कारगुजारी दिखा कर ज़रूरी वित्तीय साधन इकट्ठे करती लेकिन इस मुहाज पर यह सरकार सफल नहीं हो सकी।
रेत और आबकारी संबंधी पुख्ता नीतियां बना कर सरकार अपना खज़ाना भर सकती थी। ऐसे दावे इसके नेता करते भी रहे थे, परन्तु पहले की भांति इस सरकार में इन महत्त्वपूर्ण विभागों के साथ-साथ अन्य संस्थानों में भी व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार किये जाने के समाचार लगातार मिलते रहे हैं। इनके संबंध में पहले से घोषित योजनाएं अब तक शुरू नहीं की गईं। मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का, कुछ समय बाद स्वाद कसैला होता जा रहा है। इसकी पूर्ति के लिए या तो अपने स्रोतों से आय होना ज़रूरी होता है या भिन्न-भिन्न ढंग-तरीकों से ऋण लेना पड़ता है। सरकार ने दो वर्ष में लगभग 60 हज़ार करोड़ रुपये ऋण और ले लिया है।
पेश किये गये बजट के अनुसार ही अब तक पंजाब के सिर पर कुल ऋण साढ़े तीन लाख करोड़ से अधिक हो गया है जिसका ब्याज ही 24 हज़ार करोड़ बनता है। मात्र मुफ्त बिजली पर ही 20 हज़ार करोड़ से अधिक खर्च आने की सम्भावना है। बजट में वित्त मंत्री ने 23 हज़ार करोड़ का घाटा दिखाया है। इसकी पूर्ति कैसे की जाएगी, इस संबंध में कोई स्पष्ट उल्लेख इस बजट में नहीं किया गया। केन्द्रीय फंडों का उपयोग करके अपनी शुरू की गई योजनाएं एवं अपने कार्यक्रम चलाने के कारण केन्द्र सरकार ने अपनी ओर से दी जा रही राशियों को रोक लिया है। ऐसी स्थिति के दृष्टिगत यह चिन्ता होना स्वाभाविक है कि भविष्य में सरकार किस तरह अपने कामकाज चलाएगी। यदि पेश किये गये बजट को ध्यान से देखा जाए तो ऐसी चिन्ता में और भी वृद्धि हो जाती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द