पुतिन के चयन के अर्थ

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एक बार फिर रूस के राष्ट्रपति चुने गये हैं। पिछले लगभग अढ़ाई दशकों से वह रूस की सत्ता पर छाये हुये हैं। इस बार भी उनके चयन को सुनिश्चित माना जा रहा था, चाहे पश्चिमी देशों ने करवाये गये इन चुनावों को मात्र एक दिखावा ही कहा है। चाहे सोवियत यूनियन के टूटने के बाद इसमें से दर्जन भर देश अलग हो गये थे परन्तु आज भी रूस क्षेत्रफल के हिसाब से विश्व का सबसे बड़ा देश है तथा आज भी इसे शक्तिशाली देश माना जाता है। व्लादिमीर पुतिन ने वर्ष 1999 में सत्ता सम्भालते ही बड़ी सख्ती से शासन किया। इस समय में उन्होंने देश के भीतर उठे हर तरह के विरोध को लगभग खत्म ही कर दिया था। सोवियत यूनियन के टूटने के बाद यह आशा की जाती थी कि यहां 1917 से शासन करती आ रही कम्युनिस्ट पार्टी की पकड़ कमज़ोर होने के बाद बहु-पार्टी शासन कायम हो जायेगा, परन्तु विगत लम्बी अवधि में पुतिन ने तानाशाहों की तरह ही शासन किया है। एक समय था जब आर्थिक पक्ष से यह देश बहुत पिछड़ गया था, परन्तु इसे पुन: खड़ा करने में पुतिन का भारी योगदान माना जाता है। चाहे रूस के मुकाबले में आज चीन विश्व की दूसरी बड़ी शक्ति बन चुका है परन्तु इसके बावजूद किसी न किसी रूप में रूस का दबदबा एवं प्रभाव बना हुआ है।
1947 में भारत के स्वतंत्र होने के बाद दुनिया बड़ी सीमा तक दो भागों में बंटी हुई थी। अमरीका एवं सोवियत यूनियन दो बड़ी शक्तियां थीं। उस समय सोवियत यूनियन ने हर पक्ष से भारत के साथ खड़ा होने को अधिमान दिया था तथा इसकी आर्थिक एवं तकनीकी रूप में बड़ी सहायता की थी। 1962 में चीन के साथ हुये युद्ध में भी सोवियत यूनियन ने दोनों देशों के मध्य संतुलन बनाये रखा था। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का झुकाव भी प्राय: सोवियत यूनियन की ओर था। उस समय सोवियत यूनियन ने भारत में स्टील उत्पादन तथा अन्य उद्योग भी लगाये तथा हथियारों के क्षेत्र में भी इसकी बड़ी सहायता की। सोवियत यूनियन के टूटने के बाद पिछले अढ़ाई दशकों से पुतिन भी भारत का साथी बना रहा है। दोनों देशों का यह मेल-मिलाप आज तक जारी है। पिछले दो वर्ष से रूस एवं यूक्रेन के मध्य युद्ध जारी है। अमरीका सहित जहां ज्यादातर पश्चिमी देश रूस को हमलावर मानते हैं, वहीं भारत ने इस युद्ध में बड़ी सीमा तक निष्पक्ष रहने का यत्न किया है, जिस कारण इसकी भारी आलोचना भी होती रही है।
परन्तु पिछले अनेक दशकों से भारत के रूस के साथ हर तरह के मेल-मिलाप की कड़ी बेहद मज़बूत होने के कारण आज भी दोनों देशों में यह मेल-मिलाप तथा सहयोग बना दिखाई देता है। पुतिन के पुन: राष्ट्रपति चुने जाने से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आगामी समय में यूक्रेन के साथ युद्ध और भी विनाशकारी साबित हो सकता है तथा यह विश्व के लिए एक बड़ा युद्ध भी बन सकता है। विश्व भर में यह भी आशा की जाने लगी है कि दोनों ही देशों के साथ अच्छे संबंध होने के कारण भारत इस युद्ध को खत्म करने में अपना बड़ा योगदान डाल सकता है। आज अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर पुन: ऐसे यत्नों की ज़रूरत है कि संयुक्त रूप में इस विनाशकारी युद्ध को रोका जाये। नि:संदेह आगामी समय में इस पक्ष से भारत एक बड़ी भूमिका निभाने के समर्थ हो सकता है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द