जनता के सामने अब अहम मुद्दा नहीं रहा भ्रष्टाचार 

भ्रष्टाचार से कौन डरता है? निश्चित रूप से भारत के राजनीतिक दल तो बिल्कुल नहीं, जो वर्तमान लोकसभा चुनाव अभियान में एक-दूसरे के खिलाफ  लड़ रहे हैं। न ही आम जनता जो वर्षों से देश की भ्रष्टाचार की दुष्ट व्यवस्था का हिस्सा रही है। केंद्रीय जांच एजंसियों जैसे कि सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों पर चुनिंदा विपक्षी राजनीतिक पार्टियों और राज्य नेताओं के परिसरों पर छापे और गिरफ्तारियों से आम जनता की यह धारणा बदलने की संभावना नहीं है कि सभी राजनीतिक दल भ्रष्ट हैं। 
आम तौर पर राजनीतिक दलों और अधिकांश मतदाताओं के सामने भ्रष्टाचार अहम मुद्दा नहीं है। राज्य के विपक्षी नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप अक्सर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद हटा दिये जाते हैं जो केंद्र में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की प्रमुख राजनीतिक इकाई है, जो चुनाव पूर्व भ्रष्टाचार विरोधी अभियान का नेतृत्व करती है।
यदि प्रफुल्ल पटेल, जो केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री रहते हुए कथित तौर पर 25,000 करोड़ रुपये के विमान खरीद घोटाले में शामिल थे, के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, जो महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ राजनीतिक गठबंधन के नेतृत्व में सरकार में शामिल हुई है, उसे भाजपा नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल होने के बाद हटा दिया गया। प्रफुल्ल पटेल के कार्यकाल के दौरान एयर इंडिया भ्रष्टाचार मामले में सीबीआई क्लोजर रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस ने केंद्र की मोदी सरकार और भाजपा पर निशाना साधा। हाल ही में कांग्रेस पार्टी ने ‘दाग’ हटाने के लिए भाजपा की ‘वाशिंग मशीन’ कैसे काम करती है, इसका लाइव डेमो दिया। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा का कहना है कि सत्ताधारी पार्टी का फार्मूला है, ‘भाजपा में शामिल हो जाओ, केस बंद।’
भारत के बड़ी संख्या में राजनीतिक क्षत्रप वित्तीय भ्रष्टाचार और अन्य आपराधिक कार्रवाइयों में शामिल माने जाते हैं। उनमें से कुछ को अपने खिलाफ लगाये गये ऐसे आरोपों या यहां तक कि अपनी दोषसिद्धि पर गर्व भी महसूस हुआ होगा। उदाहरण के लिए लगभग 10,000 करोड़ रुपये के बड़े चारा घोटाला मामले में दोषी ठहराये गये 75 वर्षीय बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव भाजपा के खिलाफ राष्ट्रीय विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में एक प्रमुख नेता बने हुए हैं। दोषी ठहराये जाने पर लालू प्रसाद यादव ने 17 अप्रैल, 2021 तक जेल की सज़ा काट ली और उन्हें एक अन्य मामले में पटना उच्च न्यायालय द्वारा ज़मानत दे दी गयी।  अपराध और भ्रष्टाचार भारत के राजनीतिक जीवन का हिस्सा बने रहे हैं। जेल में रहने के कारण अक्सर राजनीतिक नेताओं को रिहा होने के बाद उनके अनुयायियों के सामने एक शक्तिशाली नेता की छवि मिल जाती है। इससे यह स्पष्ट हो सकता है कि विभिन्न पार्टियों में इतने सारे दागी राजनीतिक नेता विधायक बनने के लिए सार्वजनिक जनादेश प्राप्त करने में कैसे कामयाब होते हैं।
एसोसिएशन फार डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की एक रिपोर्ट के अनुसार 40 प्रतिशत मौजूदा सांसदों ने अपने खिलाफ आपराधिक मामले घोषित किए थे जबकि 25 प्रतिशत विधायकों पर हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर अपराधों के आरोप थे। एडीआर रिपोर्ट जिसका शीर्षक था ‘भारत की लोकसभा और राज्यसभा के मौजूदा सांसदों का विश्लेषण 2023’ पिछले साल जारी की गयी थी। 
राज्यों या केंद्र में सत्ता में बैठे अधिकांश राजनेता भ्रष्टाचार में ही लगे रहते हैं। कोई राजनीतिक दल जितने लम्बे समय तक सत्ता में रहता है, उसका भ्रष्टाचार का स्तर उतना ही बढ़ जाता है। राज्यों में यह पुलिस और सीआईडी जैसी राज्य जांच एजेंसियों को नियंत्रित करता है। केंद्र की सत्ता में पार्टी या उसका घटक दल ईडी और सीबीआई जैसी राष्ट्रीय जांच एजेंसियों को नियंत्रित करता है। ऐसा कहा जाता है कि सरकारी प्रक्रियाएं, निर्णय लेने और सार्वजनिक प्रशासन में पारदर्शिता की कमी भ्रष्ट आचरण के लिए उपजाऊ जमीन प्रदान करती है।
राजनीतिक भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने का एकमात्र तरीका हर पांच साल में सरकार को बदलने के लिए मतदाताओं द्वारा मतपत्र की शक्ति का उपयोग करना है। इससे सत्ताधारी पार्टी को पुलिस, विभिन्न जांच एजेंसियों और प्रशासन के साथ एक मज़बूत और स्थायी गठजोड़ बनाने से रोका जा सकेगा ताकि सरकारी फंड को लूटने से बचाया जा सके और रिश्वतखोरी और खर्च में हेराफेरी जैसी अन्य भ्रष्ट गतिविधियों को नियंत्रित रखा जा सके। पुलिस, जांच एजेंसियों और प्रशासन को चुनाव के बाद पूरी तरह से नयी सरकार द्वारा अपने कार्यों या निष्क्रियताओं के खिलाफ जांच का भय रहेगा।
सरकार का नियमित परिवर्तन अच्छी लोकतांत्रिक प्रथाओं और शासन के लिए मौलिक है। मतदाताओं और सरकार के संयुक्त प्रयासों से ही भ्रष्टाचार को खत्म किया जा सकता है। भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को दंडित करने के कानूनों को नियमित रूप से लागू किया जाना चाहिए।  (संवाद)