वोटिंग मशीनों की विश्वसनीयता का सवाल

देश में पिछले कई दशकों से वोटिंग मशीनों (ई.वी.एम्ज़) द्वारा विधानसभाओं एवं लोकसभा के चुनाव करवाने का सिलसिला चलता आ रहा है। नि:संदेह ई.वी.एम्ज़ के इस्तेमाल से चुनावों के परिणाम शीघ्र आते हैं तथा पहले की तरह बूथों पर कब्ज़े करके बैलेट पेपरों पर बलपूर्वक मोहरें लगा कर वोट डालने की घटनाएं भी बीते समय की बात हो गई हैं, परन्तु फिर भी इनका इस्तेमाल एवं विश्वसनीयता को लेकर राजनीतिक पार्टियों के नेताओं, कानूनविदों एवं बुद्धिजीवियों के अलग-अलग वर्गों की ओर से समय-समय पर सवाल उठाए जाते रहे हैं। ई.वी.एम्ज़ का इस्तेमाल केन्द्र में कांग्रेस के शासनकाल दौरान 1982 में आरम्भ हुआ था तथा पहली बार केरल के पैरूल विधानसभा क्षेत्र में इन मशीनों का इस्तेमाल करके मतदान किया गया था। उसके बाद लम्बे समय तक केन्द्र में कांग्रेस शासन के दौरान इनका इस्तेमाल होता रहा है। उस समय भाजपा एवं कुछ अन्य विपक्षी पार्टियों की ओर से इन मशीनों के इस्तेमाल संबंधी सवाल उठाये जाते रहे थे तथा ये भी आरोप लगाये जाते रहे थे कि इन मशीनों का सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा उम्मीदवारों को जिताने एवं विरोधियों को हराने के लिए दुरुपयोग किया जाता है। अब जबकि केन्द्र में भाजपा के नेतृत्व वाला जनतांत्रिक गठबंधन पिछले 10 वर्ष से सत्तारूढ़ है तो ई.वी.एम्ज़ के दुरुपयोग के आरोप कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियों के नेताओं की ओर से लगाये जाते हैं। दिल्ली एवं देश के कुछ अन्य भागों में देश के प्रसिद्ध वकीलों ने भी इनके दुरुपयोग या इनके साथ छेड़छाड़ संबंधी आशंकाएं व्यक्त की हैं।
समय-समय इन आशंकाओं को लेकर कई समाज सेवी संगठन सुप्रीम कोर्ट में भी जाते रहे हैं। यह सिलसिला अभी भी जारी है। 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले भी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया था। याचिकाएं दायर करवाने वालों ने यह मांग की थी कि कम से कम एक चुनाव क्षेत्र में 50 प्रतिशत ई.वी.एम्ज़ मशीनों द्वारा किए गए मतदान का वीवीपैट प्रणाली से प्राप्त होने वाली पर्चियों के साथ मिलान किया जाए। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने यह मांग रद्द कर दी थी। फिर हर चुनाव क्षेत्र में पांच मशीनों की पर्चियों का वीवीपैट प्रणाली द्वारा प्राप्त पर्चियों के साथ मिलान शुरू हो गया था। विगत दिवस फिर सुप्रीम कोर्ट में ई.वी.एम्ज़ के इस्तेमाल संबंधी तथा इसके संबंध में अलग-अलग पक्षों की ओर से उठाये गये सवालों के बारे में लगभग पांच घंटे तक पुन: सुनवाई है। सुप्रीम कोर्ट में एसोसिएशन फॉर डैमोक्रेटिक रिफार्मज़ तथा कुछ अन्य संगठनों ने मांग की थी कि ई.वी.एम्ज़ द्वारा डाली गईं सभी वोटों का वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट)से प्राप्त होने वाली पर्चियों के साथ पूरा-पूरा मिलान किया जाए। सुप्रीम कोर्ट में एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से यह भी मांग की गई कि मतदान की प्रक्रिया पहले की तरह बैलेट पेपर द्वारा आरम्भ की जाए। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना एवं दीपांकर दत्ता पर आधारित पीठ ने इन मांगों संबंधी चुनाव आयोग के वकीलों एवं अधिकारियों से पूरी-पूरी जानकारी ली और यह भी पूछा कि चुनाव आयोग ई.वी.एम्ज़ द्वारा मतदान की प्रक्रिया को तकनीकी रूप से और किस सीमा तक पारदर्शी बना सकता है, जिससे कि मतदाताओं की विश्वसनीयता में और वृद्धि हो सके।
इसके उत्तर में चुनाव आयोग की ओर से कहा गया है कि मतदान की प्रक्रिया को सम्पन्न करने के लिए ई.वी.एम्ज़ पर आधारित प्रणाली सफलता के साथ काम कर रही है तथा इनके इस्तेमाल या इनसे छेड़छाड़ संबंधी समय-समय पर जो आरोप लगते रहे हैं वे ठीक नहीं पाए गए थे। इसके साथ ही चुनाव आयोग की ओर से यह भी कहा गया है कि प्रत्येक मतदाता को उसके वोट के भुगतान संबंधी यदि पर्ची दी जाती है तो इसका पोलिंग बूथ के बाहर किसी न किसी रूप में दुरुपयोग भी हो सकता है, इसलिए यह व्यवहारिक नहीं। इससे गुप्त मतदान का सिद्धांत भी भंग होता है। इस बात पर तो सुप्रीम कोर्ट ने भी सहमति व्यक्त की है कि भारत जैसे बड़े देश में पुन: बैलेट पेपरों द्वारा चुनाव करवाने का सिलसिला आरम्भ करना आसान नहीं है। उस प्रणाली के कुछ अपने दोष भी हैं। फिर भी ई.वी.एम्ज़ द्वारा चुनाव करवाने की प्रक्रिया में सुधारों की गुंजाइश है जोकि किये जाने बनते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने प्रसिद्ध कानूनविद प्रशांत भूषण की दलीलों के जवाब में यह भी कहा कि ई.वी.एम्ज़ के इस्तेमाल तथा इनसे छेड़छाड़ करने संबंधी ज़रूरत से अधिक सवाल नहीं उठाये जाने चाहिएं, इनसे चुनाव प्रणाली की विश्वसनीयता को लेकर मतदाताओं के मन में आशंकाएं बढ़ेंगी। लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव प्रणाली की विश्वसनीयता विशेष महत्त्व रखती है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र या विधानसभा क्षेत्र में सभी ई.वी.एम्ज़ मशीनों द्वारा किए गए मतदान का वीवीपैट की पर्चियों के साथ मिलान करवाने के संबंध में फैसला फिलहाल आरक्षित रख लिया है।
इस संबंध में हमारा यह स्पष्ट विचार है कि चाहे ई.वी.एम्ज़ द्वारा चुनाव करवाने की प्रक्रिया से मतदान के सिलसिले में सुधार हुआ है तथा इससे बूथों पर कब्ज़े करके बलपूर्वक बैलेट पेपरों पर मोहरें लगाने की घटनाएं भी रुकी हैं परन्तु फिर भी जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस प्रणाली को अधिक से अधिक पारदर्शी तथा विश्वसनीय बनाने के लिए जो भी कदम उठाये जा सकते हैं वे उठाये जाने चाहिएं, क्योंकि ई.वी.एम्ज़ के दुरुपयोग संबंधी अभी भी लगातार सवाल उठ रहे हैं। इस संबंध में चुनाव आयोग तथा संबंधित सभी पार्टियों को भी आपस में सहयोग करना चाहिए। चाहे यह बात ठीक है कि विश्व के ज्यादातर सभी विकसित देशों में जहां-जहां भी पहले ई.वी.एम्ज़ द्वारा चुनाव करवाने की प्रक्रिया आरम्भ की गई थी, वहां बाद में लोगों के अलग-अलग वर्गों की ओर से सवाल उठाये जाने पर पुन: बैलेट पेपरों द्वारा चुनाव करवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है परन्तु फिलहाल भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश में फिर से ऐसा करना ज्यादा आसान दिखाई नहीं देता। फिलहाल इसी प्रणाली को अधिक पारदर्शिता से जारी रखा जा सकता है और आगामी समय में इस संबंध में और तकनीकी एवं ़गैर-तकनीकी सुधार किये जा सकते हैं। सबसे अहम बात यह है कि मतदाताओं की संतुष्टि ज़रूर होनी चाहिए।