ऊंट, कूब, जिन्न और जलेबियां...

गुल्लू की जिद पर आखिरकार दादी मां मान ही गई और उन्होंने एक बार फिर से कहानी सुनानी शुरू कर दी। जैसे ही दादी ने कहा, ‘हां तो बच्चों आज की कहानी गौर से सुनो, और बताओ कि इस कहानी से क्या सीख मिलती है?’  गुल्लू डब्बू और राधा सब के सब सीधे होकर बैठ गए क्योंकि जो दादी की कहानी के सवाल का सबसे पहले जवाब देता था उसे ही दादी अपने हाथ की बनाई हुई कुरमुरी, रसीली जलेबियां सबसे पहले और छककर खिलाती थी। 
दादी ने खंखार कर गला साफ किया और फिर शुरू हो गई। 
‘बात उस समय की है जब दुनिया नई-नई बनी थी। न आदमी चालाक था, न जानवर खतरनाक। सब मिल-जुल कर रहते थे। काम भी ज्यादा नहीं था, सो सब आपस में बिना भेदभाव के काम करते थे। 
चारों ओर रेगिस्तान ही रेगिस्तान था जिसका मालिक एक जिन्न था। उसने रेगिस्तान में सुविधा के लिए कार्यों का बंटवारा कर दिया था। उस वक्त बस गिनती के चार प्राणी थे घोड़ा, कुत्ता, बैल और बहुत लंबी टांगों और गर्दन वाला अजीब सा एक और प्राणी। 
प्राणी क्या तमाशा था। एक नंबर का कामचोर, आलसी, निकम्मा और घमंडी। काम से बचने के लिए किसी से मिल-जुल कर रहने की बजाय रेगिस्तान के एक कोने में पड़ा रहता। भूख लगती तो जो भी मिलता खा लेता। खाने में भी इतना आलसी कि झाड़ी, कांटे, घास, सब खा लेता मगर हाजमा इतना अच्छा कि सब पचा लेता। पानी मिला तो पी लिया नहीं तो ना सही। 
अब चूंकि जिन्न को पता था कि कुल चार प्राणी हैं सो सारा काम चार ही हिस्सों में बांटा था। कुत्ता रखवाली करता, घोड़ा भार ढोता तो बैल हल जोतता। यें तीनों ही एक-दूसरे का पूरा ख्याल रखते। जब भार ढोते-ढोते घोड़ा थक जाता तो कुत्ता और बैल उसके लिए काम करते और घोड़ा थोड़ी देर आराम कर लेता। जब बैल को थकान होती तो घोड़ा उसके बदले हल जोत देता। जब कुत्ते को आराम की ज़रुरत होती तो घोड़ा और बैल रखवाली का जिम्मा ले लेते। पर, मजाल कि लंबी टांगों वाला बदसूरत सा वह जीव जरा भी काम कर दे। अपनी लम्बी गर्दन का फायदा लेता हुआ वह बैठा-बैठा ही पेड़ों की पत्तियां खाता रहता या वहां के इकलौते तालाब में अपना अक्स देख-देख खुश होता रहता। उसे लगता था कि वही दुनिया में सबसे खूबसूरत है और वह बस मौज करने के लिए ही पैदा हुआ है। वह खुद को राजा मानता था उसका कहना था कि भगवान ने इसीलिए तो उसे सबसे बड़ा बनाया है ताकि सब उसके नीचे रहें, काम करें। अब कुछ दिन तो बैल, घोड़े और कुत्ते ने सहा, पर जब बात हद से गुजर गई तो उन्होंने आकर प्राणी से कहा ‘उठ भाई उठ, काम कर’। पर वह क्यों सुनता वह अक्सर कहता ‘जिसे मिले यूं, वह काम करें क्यों’ और उन्हें चिढ़ाने के लिए कहता ‘कुब-कुब’ यानि जाओ जाओ। 
एक दिन जब वें थक कर चूर-चूर हो गए और उनका धैर्य जवाब दे गया तो उन्होंने जाकर जिन्न से शिकायत की। सुनकर जिन्न को भी गुस्सा आया और वह उनको लेकर प्राणी के पास गया और कहा ‘उठ भाई उठ, काम कर’ पर घमंडी जीव ने नहीं सुनी उल्टे पलट कर कहा ‘ये उठ-उठ क्या होता है, दिखता नहीं मैं तुम सबसे ऊंचा हूं और ऊंचे लोग काम नहीं करते वे तो राजा होते हैं राजा! और बोला ‘कुब-कुब’ यानि जाओ जाओ।’
अब जिन्न को तो भगवान ने ताकत और अधिकार दिए थे वह भला क्यों सुनता उसने कहा, ‘तुम या तो तुरंत काम करना शुरू करो वर्ना...’
‘वर्ना क्या?’ प्राणी बोला। ‘तुम फिर उठ-उठ करोगे? मुझे यह सुनना अच्छा नहीं लगता...कुब-कुब, जाओ जाओ।’
बस, फिर क्या था जिन्न को गुस्सा आ गया बोला ‘तो सुनो आज से तुम्हें मैं ही नहीं सब तुम्हें उठ-उठ ही कहेंगे। इस तरह बिगड़ते-बिगड़ते बाद में उस प्राणी का नाम ऊंट हो गया। तुम हर बात के जवाब में कुब-कुब करते हो सो तुम्हारी पीठ पर कूब हो जाएंगे और इस तरह ऊंट की पीठ पर तभी से कूब यानि कूबड़ हो गया जो ब्रिटेन जैसे इलाकों में तो दो-दो हैं। 
इतना ही नहीं जिन्न ने कहा अब से तुम्हें बिना रुके काम करना होगा लगातार। अब तो ऊंट फंस गया। रुआंसा हो गया, बोला ‘पर, ऐसे में मैं खाऊंगा पीऊंगा कैसे?  मैं तो मर जाऊंगा’ जब ऊंट खूब रोने-गिड़गिड़ाने लगा और कुत्ते बैल तथा घोड़े ने भी उस पर दया करने को कहा तो जिन्न पसीज गया और बोला ‘वैसे तो तुम दया के काबिल नहीं पर फिर भी तुम्हे मैं यह वरदान देता हूं कि तुम कई दिन तक बिना खाए पीये रह लोगे। तुम अपना भोजन अपने कूबड़ में इकट्ठा कर सकते हो पर काम तो करना ही होगा...’
बस, उस दिन से ऊंट को दुष्ट माना जाता है, उससे जमकर काम कराया जाता है और खाने के नाम पर भी सूखा भूसा या कांटेदार झाड़ी ही उसके हिस्से में आती है। उसे घर के अंदर भी नहीं रखा जाता क्योंकि घमंड करने की सजा की वजह से उसकी गर्दन झुकती जो नहीं। तब ही नहीं आज भी आलसी निकम्मे और घमंडी और कड़वा बोलने वालों के लिए लोग ऐसा ही व्यवहार करते हैं जबकि काम करने वाले लोगों को सब प्यार करते हैं। 
हां तो बच्चों अब बताओ इस कहानी से तुम्हें क्या सीख मिलती है? 
दादी ने पूछा मगर जवाब तो कहीं से भी नहीं आया। आता भी कैसे गुल्लू, डब्लू और राधा तीनों ही कहानी सुनते-सुनते कब के सो चुके थे। दादी उन्हें देखकर मुस्कुराई और कपड़ा उड़ा कर रसोई में चली गई। थोड़ी देर बाद ही वहां से जलेबियों की खुशबू आ रही थी। (सुमन सागर)