प्रदेश की नियति

लोकसभा के 7वें और अंतिम चरण के चुनाव में कुछ दिन ही बाकी रह गये हैं। इस चरण में पंजाब के चुनाव भी होने हैं। चाहे चंडीगढ़ और पंजाब की 14 सीटें ही हैं। लोकसभा के 543 सदस्यों में यह संख्या बहुत कम है लेकिन कई अन्य पक्षों से पंजाब का महत्व अधिक है। यह छोटा सा सीमावर्ती प्रदेश है। पाकिस्तान की इस पर नज़रें रहती हैं। अफगानिस्तान में से तरह-तरह के नशों की तस्करी के लिए भी इस प्रदेश को निशाना बनाया जाता है। दो दशक पहले बनी आम आदमी पार्टी का भी दिल्ली के बाद पंजाब ही आधार रहा है। विगत विधानसभा चुनावों में इस प्रदेश में से ही इस पार्टी को बड़ा समर्थन मिला था। प्रदेश की 117 विधानसभा सीटों में से आम आदमी पार्टी को 92 सीटें मिली थीं। यहां उस समय एक बदलाव की आंधी चली थी। नई बनी प्रदेश सरकार से लोगों को बड़ी उम्मीदें थीं, लेकिन दो वर्ष के अंतराल में ये आशाएं धूल-धूसरित हो गई हैं। आज हर तरफ निराशा दिखाई दे रही है। प्रदेश में हर स्थान पर अलग-अलग वर्गों द्वारा धरने लगाए जा रहे हैं, तथा प्रदर्शन किये जा रहे हैं। अमन कानून की हालत बहुत बुरी है। उद्योगपतियों और व्यापारियों से अपराधी गिरोहों द्वारा फिरौतियां मांगी जा रही हैं। नशों की भरमार है। नौजवानों में बड़े स्तर पर बेरोज़गारी पाई जा रही है। इस समय में सरकार कोई ठोस प्राप्तियां करने में असमर्थ रही है।
इस बार राजनीतिक दृश्य भी काफी हद तक बदल गया है। विगत लम्बे समय से यहां अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी का सहयोग बना रहा। स. प्रकाश सिंह बादल के नेतृत्व में इस गठबंधन ने लम्बा समय शासन किया। इसके साथ-साथ कांग्रेस का भी प्रभाव लगातार प्रदेश में देखा जाता रहा है। लम्बे चले किसान आन्दोलन ने भी केन्द्र सरकार को चुनौती दी और अंत में मोदी सरकार की ओर से घोषित तीन कृषि कानूनों को केन्द्र को वापिस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था। इसके बावजूद अब भी किसान वर्ग के बड़े भाग में अशांति दिखाई देती है, जो राजनीतिक पार्टियों के लिए एक चुनौती बनी हुई है। जहां ‘आप’ अकेले तौर पर मैदान में उतरी हुई है, वहीं भाजपा ने भी प्रदेश में अलग तौर पर चुनाव लड़ने की नीति अपनाई हुई है और एक प्रकार से इसे चुनौती के रूप में लेना शुरू कर दिया है। ‘इंडिया’ गठबंधन द्वारा देश के कई अन्य प्रदेशों में मिल कर चुनाव लड़े जा रहे हैं। दिल्ली में भी कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी एक साथ मिल कर चुनाव लड़ रही हैं, परन्तु पंजाब में ये दोनों पार्टियां अलग-अलग तौर पर चुनाव मैदान में उतरी हुई हैं। इसलिए हम पंजाब की कांग्रेस इकाई की प्रशंसा करते हैं, जिसने प्रदेश में भगवंत मान सरकार की घटिया कारगुज़ारी तथा उसके विरोधियों के खिलाफ बदले की भावना से काम करने के कारण अलग तौर पर चुनाव लड़ने का अपना दृढ़ इरादा रखा। 
चाहे कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व यहां चुनाव आम आदमी पार्टी के साथ मिल कर लड़ना चाहता था, परन्तु कांग्रेस की पंजाब इकाई ने इस मामले में अपने दृष्टिकोण को बिल्कुल स्पष्ट रखा और अपने इरादों पर दृढ़ रही। इस कारण ही वह अकेले चुनाव लड़ने की सरगर्मी दिखा रही है। कांग्रेस की प्रदेश इकाई के इस फैसले का उन्हें लाभ होता ही दिखाई दे रहा है। वैसे इस समय सभी पार्टियों के लिए ही ये चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल बने दिखाई दे रहे हैं। हम समझते हैं कि मतदाताओं को प्रदेश की आम आदमी पार्टी की सरकार की दो वर्ष की कारगुज़ारी को देखते हुए ही अपने मताधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए। यह भी कि उनकी प्राथमिकता उस पार्टी तथा उम्मीदवार के प्रति होनी चाहिए, जिससे उन्हें देश तथा प्रदेश की नियति को संवार सकने की आशा हो। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द