वर्ल्ड बुक ऑफ रिकार्ड्स में दर्ज है गंगा आरती

भारतीय ज्ञान परंपरा आरंभ से ही मानवता के कल्याण हेतु चिंतन करती रही है। वैदिक साहित्य में जहां एक ओर वसुधैव कुटुंबकम् की भावना मिलती है वहीं दूसरी ओर सर्वे भवंतु सुखिन: की कामना भी की गई है। यहां समस्त चिंतन का मूल मनुष्य है, इसलिए वैदिक चिंतन मनुर्भव अर्थात् ‘मनुष्य बनो’ की संकल्पना को सिद्धांत और व्यवहार रूप में प्रसारित करता है। भारतवर्ष के अनेक संत, महापुरुष, विभिन्न ग्रंथ, मठ-मंदिर एवं आश्रम निरंतर मानवता की सेवा अथवा परोपकार को ही सबसे बड़ा धर्म मानकर कार्य करते रहे हैं। ये मठ-मंदिर, अखाड़े और आश्रम प्रेरणा के केन्द्र रहे हैं। यही वे स्थान हैं जहां से समाज और राष्ट्र के कल्याण हेतु जन जागरण और जन आंदोलन दिशा पाते हैं। भारतवर्ष में ज्ञान-विज्ञान, संस्कृति एवं अध्यात्म का प्रवाह निरंतर गतिमान रहा, लेकिन विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण एवं दासता के कालखंड में ये श्रेष्ठ परंपराएं हाशिए पर चली गई थीं। तदुपरांत भी मठ-मंदिर, अखाड़े और आश्रम जनमानस को संबल देते रहे। अनेक कष्ट सहकर भी समाज और राष्ट्र कल्याण हेतु संत परम्परा का योगदान एवं बलिदान अविस्मरणीय रहा है।
देवभूमि उत्तराखंड के ऋषिकेश स्थित परमार्थ निकेतन आश्रम मां गंगा के किनारे पर स्थित है, जहां अनेक संत-महापुरुषों ने तपस्या की और आज भी यह क्रम जारी है। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष पूज्य स्वामी चिदानंद सरस्वती जी भारतवर्ष की संत परम्परा के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व अध्यात्म, प्रकृति-पर्यावरण एवं जन जागरण के विविध विषयों का प्रेरणा पुंज है। यहां प्रात: काल वैदिक मंत्रोचार के साथ ऋषि कुमारों और अन्य लोगों के साथ वैदिक यज्ञ का आयोजन सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। तदुपरांत योग, ध्यान, सत्संग आदि दैनिक चर्या के महत्वपूर्ण हिस्से हैं।  देश-विदेश से हजारों लोग प्रतिदिन यहां आते हैं और भारतीय अध्यात्म, योग, ध्यान, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा एवं संस्कृति को जानने-समझने एवं अनुभव करने का प्रयास करते हैं। स्वामी चिदानंद सरस्वती जी की प्रेरणा एवं सान्निध्य में वर्ष 1997 से यहां संध्या समय गंगा आरती का आयोजन होता है, जो वर्ल्ड बुक ऑफ  रिकॉर्ड्स में दर्ज हो चुकी है। मां गंगा किनारे गंगा आरती का आयोजन आनंददायक अनुभव के साथ-साथ देश-विदेश में भारतीय समाज, संस्कृति एवं चिंतन का भी संचार करता है। आरती के समय स्वामी चिदानंद जी एवं अन्य संतों का उद्बोधन जन-जन में नई ऊर्जा का संचार करता है। राम कथा एवं भगवद्गीता की कथाएं यहां निरंतर चलती रहती हैं, जिनसे अध्यात्म के साथ-साथ भारतीय ज्ञान परम्परा का भी संचार होता है। परमार्थ निकेतन दशकों से मानवता के कल्याण हेतु प्रकृति-पर्यावरण एवं जल संरक्षण के लिए निरंतर कार्य कर रहा है।
आज जल संकट न केवल भारत अपितु वैश्विक समस्या बनती जा रही है। ऐसे में परमार्थ निकेतन स्वामी चिदानंद जी के मार्गदर्शन में लाइफ स्टाइल फॉर एनवायरनमेंट जैसी महत्वपूर्ण मुहिम चला रहा है। समाज व राष्ट्र जीवन में सकारात्मक बदलाव हेतु परमार्थ निकेतन में शिक्षा एवं संस्कारों के माध्यम से व्यक्ति निर्माण का कार्य भी निरंतर जारी है। स्वामी जी अपने उद्बोधन में बहुत स्पष्टता से कहते हैं, बेशक देव भक्ति अपनी-अपनी करें किन्तु राष्ट्रभक्ति केवल भारत की हो। संस्कृति के प्रति सभी को प्रेरित करते हुए स्वामी चिदानंद जी अपने उद्बोधन में लगातार कहते हैं कि अब समय आ गया है कि अपने परिवार में अपनी संस्कृति को आरोपित करें और स्वयं भी उस संस्कृति को जिएं। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण प्रदूषण के खतरों से आज हम सब प्रभावित हो रहे हैं। उनके समाधान सामूहिक प्रयासों से और परम्परा के अनुकरण द्वारा ही संभव हैं। परमार्थ निकेतन निरंतर यह संदेश दे रहा है कि प्रकृति के पैरोकार व पहरेदार बनें। जीवन में तीन चीज बहुत महत्वपूर्ण हैं। प्रकृति, संस्कृति और संतति। पर्यावरण संरक्षित रहेगा तो हमारी प्रकृति बचेगी। संस्कृति बचेगी तो संतति भी बचेगी। गोस्वामी तुलसीदास ने श्री रामचरित मानस में लिखा है, परहित सरिस धर्म नहिं भाई। परमार्थ निकेतन के नाम में ही परहित की भावना निहित है। आज यह स्थान न केवल भारतवर्ष अपितु वैश्विक पटल पर भी प्रेरणा का केन्द्र बनता जा रहा है। प्रतिदिन देशी-विदेशी हजारों लोग यहां से ज्ञान-विज्ञान, अध्यात्म, संस्कृति और प्रकृति-पर्यावरण के अनेक विषयों की शिक्षा और दीक्षा लेकर निस्वार्थ भाव से कर्म क्षेत्र में जुट रहे हैं।

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