संघ और भाजपा के विवाद में विपक्ष अपने लिए मौका न ढूंढे

लोकसभा चुनाव के परिणाम आने के बाद विपक्ष पहले ही खुद को जीता हुआ और भाजपा को हारा हुआ मानकर फूला नहीं समा रहा था किन्तु इसके बाद उसकी खुशी दुगुनी हो गई, जब उसे भाजपा और संघ में झगड़े की बात पता चली। विपक्ष अच्छी तरह से जानता है कि भाजपा को चुनावों में संघ की बड़ी मदद मिलती है इसलिए उसे इनके आपसी झगड़े में अपने लिए मौका दिखाई दे रहा है। ऐसा नहीं है कि विपक्ष के नेताओं को पता नहीं है कि भाजपा और संघ में झगड़ा नहीं हो सकता लेकिन विपक्ष भाजपा के खिलाफ बोलने के अवसर ढूंढता रहता है। सच क्या है, यह जानने की जगह विपक्ष के लिए यह अच्छी खबर है कि संघ ने भाजपा के खिलाफ बयान दिया है। सरसंघचालक मोहन भागवत ने चुनाव परिणाम आने के बाद बयान दिया है कि जो मर्यादा का पालन करते हुए काम करता है, जो गर्व करता है लेकिन अहंकार नहीं करता, वही सही अर्थों में सेवक कहलाने का अधिकारी है। इसके अलावा उन्होंने मणिपुर हिंसा की चर्चा करते हुए कहा कि सरकार को इसे रोकना चाहिए। इसके अलावा आरएसएस के नेता इंद्रेश कुमार ने बयान दिया है कि प्रभु का न्याय बड़ा सत्य होता है। संघ के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर ने लिखा है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के अति आत्मविश्वासी नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए आईना है, हर कोई भ्रम में था, किसी ने लोगों की आवाज नहीं सुनी। इन बयानों के आधार पर ही विपक्ष और मीडिया में यह चर्चा चल रही है कि संघ भाजपा से नाराज है और उसका भाजपा से झगड़ा चल रहा है। विपक्ष ने इन बयानों को लेकर संघ पर भी निशाना साधा है कि वो पहले क्यों नहीं बोला। संघ और भाजपा के विवाद को लेकर विपक्ष ने दोनों के खिलाफ अपना एजेंडा चलाना शुरू कर दिया है।
वास्तव में संघ और भाजपा के बीच कोई विवाद नहीं है। इसको समझने के लिए ज़रूरी है कि भाजपा और संघ के रिश्ते को समझें। संघ भाजपा और उसके अन्य संगठनों की मां है और गलती करने पर मां अपने बच्चों को डांटती है। बेशक भाजपा देखने में संघ से भी बड़े संगठन के रूप में दिखाई दे रही हो लेकिन यह पूरी सच्चाई नहीं है। संघ के बनाये संगठनों में से एक भाजपा है और इसके महत्वपूर्ण नेताओं में से ज्यादातर संघ से आये हुए नेता ही हैं। संघ अपने आप में दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ माना जाता है, जो सरकार से बिना कोई मदद लिए अपने सारे काम करता है। संघ अगर एक विशाल वटवृक्ष है तो भाजपा  इसकी एक बड़ी शाखा है। संघ ही भाजपा को खाद पानी देकर सींचने का काम करता है। यह सच्चाई भाजपा के नेता भी जानते हैं कि उनकी पार्टी कितनी भी बड़ी हो जाये लेकिन वो संघ के बिना आगे नहीं बढ़ सकती। प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों सहित भाजपा के कई मुख्यमंत्री संघ के स्वयंसेवक रहे हैं। आप विचार करें कि जिस संगठन में संघ के लोगों का वर्चस्व है, उसके साथ संघ कैसे उलझ सकता है। न केवल संघ बल्कि उसके कई संगठन चुनाव के दौरान भाजपा की मदद करते रहे हैं। संघ ने पहले एक राजनीतिक दल के रूप में जनसंघ का निर्माण किया था जिसका जनता पार्टी में विलय हो गया था। जनता पार्टी के टूटने के बाद जनसंघ के नेताओं ने ही भारतीय जनता पार्टी के नाम से नई पार्टी का गठन किया था। भाजपा को इन चुनावों में अपेक्षित जीत हासिल नहीं हो सकी है और उसे कई राज्यों में भारी नुकसान का सामना करना पड़ा है। 
संघ ने भाजपा को हुए नुकसान के कारणों का विश्लेषण किया होगा, उसके अनुसार ही संघ के नेताओं के बयान आ रहे हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या  ऐसे बयान सिर्फ संघ के नेताओं के ही रहे हैं। वास्तव में चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा के कई नेताओं ने अपनी नाराजगी जाहिर की है और अपनी ही पार्टी के कई कामों को लेकर सवाल खड़ा किया है। बेशक भाजपा सत्ता में आ गई है लेकिन वो कई राज्यों में हुई हानि की अनदेखी नहीं कर सकती। हैरानी की बात है कि कांग्रेस अपनी हार से खुश है लेकिन भाजपा अपनी जीत के छोटा होने से परेशान है, इससे भाजपा और कांग्रेस के नेताओं की सोच का अंतर पता लगता है। देखा जाये तो संघ के नेताओं के बयानों को अपने तरीके से मीडिया और विपक्ष ने लिया है जबकि वो भाजपा को सुधारने के लिए दिये गये बयान हैं। विपक्ष इन बयानों की बात करते हुए यह भी भूल गया कि संघ ने विपक्ष पर भी सवाल उठाया है। संघ ने जहां मणिपुर की हिंसा को रोकने की बात कही है, वहीं यह भी कहा है कि क्या कारण है कि दस साल से मणिपुर बिल्कुल शांत था और अचानक इतनी हिंसा शुरू हो गई। देखा जाये तो संघ ने इशारा कर दिया है कि इसके पीछे कोई गहरी साजिश है। 
संघ ने भाजपा नेताओं में अहंकार आने की बात की है तो यह बात भाजपा के कार्यकर्ताओं द्वारा भी कही जा रही है। भाजपा के नेताओं को अहंकार के लिए सुनाया जा रहा है लेकिन विपक्ष के नेताओं में भी अहंकार की कमी नहीं है। संघ के नेता इंद्रेश कुमार ने जहां भाजपा नेताओं की भक्ति के अहंकार को लेकर अपनी बात कही है तो दूसरी तरफ उन्होंने विपक्ष की अनास्था को लेकर भी सवाल खड़ा किया है। संघ के मुखपत्र में अगर भाजपा नेताओं को अति आत्मविश्वासी कहा गया है तो गलत नहीं है। ऑर्गेनाइजर सही कहा है कि भाजपा नेताओं में अति आत्मविश्वास पैदा हो गया था जिसके कारण उन्होंने अपने ही लोगों की बात नहीं सुनी। संघ कुछ राज्यों में भाजपा की हुई हार को बहुत गंभीरता से ले रहा है। वो भाजपा के साथ  कोई जंग नहीं लड़ रहा है। अपने बच्चे में कमी दिख रही है तो मां सही रास्ता दिखाने की कोशिश कर रही है, बच्चे को बड़ा होने का अहसास हो गया है। वो सुन नहीं रहा था तो उसे समझाया जा रहा है। मां चाहती है कि उसका बच्चा और आगे बढ़े लेकिन बच्चा कुछ कमजोर पड़ गया है तो मां उसे ताकत दे रही है। विपक्ष समझ नहीं पा रहा है कि संघ भाजपा को सुधारने की कोशिश कर रहा है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ संघ ही भाजपा में सुधार की कोशिश कर रहा है बल्कि भाजपा में भी अपने नुकसान को लेकर जबरदस्त मंथन चल रहा है। आने वाले समय में इस मंथन का असर भाजपा के संगठन में दिखाई देगा। संघ ने चुनावों से पहले भी अपनी बात रखी थी। वास्तव में संघ और भाजपा लड़ नहीं रहे हैं बल्कि विपक्ष के खिलाफ एक साथ आ रहे हैं। विपक्ष के झूठ के खिलाफ अब सिर्फ भाजपा अकेले लड़ने वाली नहीं बल्कि संघ का भी उसे साथ मिलने वाला है। पहले भाजपा में सुधार किया जायेगा और फिर विपक्ष पर वार किया जायेगा।