दरकते पहाड़, उफनती नदियां और नाकाफी सिद्ध होते प्रबंध
बरसात का मौसम आते ही देश के कई राज्यों में हालात काफी बिगड़ गए हैं। एक ओर कई राज्य बाढ़ की चपेट में आ गए हैं, तो पहाड़ी राज्यों की हालत भी खराब होती जा रही है। चट्टानें खिसकने, पहाड़ दरकने और भूस्खलन से हालात काफी खराब होते जा रहे हैं। अतिवृष्टि और बाढ़ की चपेट में आकर कई राज्यों में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। उत्तराखंड, हिमाचल व असम में नदियां उफान पर हैं और महाराष्ट्र, गुजरात में मानसूनी बारिश से स्थिति काफी खराब है। राजस्थान में भी बारिश कहर बरपा रही है। खासकर पूर्वोत्तर राज्यों में हालात काफी खराब हो रहे हैं। वहां नदियां उफान पर हैं। असम के में करीब 25 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं। राज्य में अब तक बाढ़ से 50 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। विनाशकारी बाढ़ की वजह से काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में 100 से अधिक जंगली जानवरों की भी मौत हो चुकी है।
इधर उत्तर प्रदेश में बारिश की वजह से 13 लोगों की मौत हो गई। हालात को देखते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने टेलीफोन पर सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात की। उन्होंने असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व सरमा को भी केंद्रीय मदद का भरोसा दिया है। भारी बारिश से हिमाचल में 150 से अधिक सड़कें बाधित हुई हैं। इनमें मंडी की 111, सिरमौर की 13, शिमला की 9 तथा चंबा और कुल्लू की आठ-आठ सड़कें शामिल हैं। भारी बारिश से उत्तराखंड में पहाड़ दरकने लगे हैं। उनका मलबा सड़कों पर गिर रहा है। यहां पर भी मलबा व पेड़ गिरने की वजह से कई सड़कें बंद हैं। हालात को देखते हुए प्रशासन को चारधाम यात्रा भी स्थगित करनी पड़ी।
आसमान से ऐसी तबाही बरस रही है कि ज़मीन पर सब कुछ ध्वस्त हो रहा है। पहाड़ तिनके की तरह बिखर रहे हैं। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में धारचूला की ओर जाने वाली एक सड़क पर पहाड़ का बड़ा हिस्सा टूट कर ऐसे गिरा कि सड़क बंद हो गई और सैकड़ों गाड़ियां फंस गईं। उत्तरकाशी में हिमखंड टूटने से गंगा के बहाव में अचानक तेज़ी आ गई। गौमुख में पुल बह जाने से 2 कांवड़िए पानी के तेज़ बहाव में बह गए। शेष कांवड़ियों को एसडीआरएफ की मदद से बचाया गया।
बारिश और भूस्खलन की वजह से उत्तराखंड की सबसे बड़ी पर्यटन नगरी नैनीताल की ओर जाने वाली सड़कें बेहाल हो गई हैं। स्थानीय लोग भूस्खलन के डर से सहमे हुए हैं। जगह-जगह पहाड़ दरक रहे हैं। भूस्खलन की वजह से भवाली-कैंचीधाम को जोड़ने वाला रास्ता बंद हो गया है। लोगों से सुरक्षित जगहों पर जाने की अपील की गई।
उधर नेपाल में हो रही बारिश के कारण एक बार फिर से बिहार में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। पश्चिम बंगाल और सिक्किम को जोड़ने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग भूस्खलन की चपेट में आने से पिछले कई दिनों से बंद है। इससे यातायात में काफी परेशानी हो रही है। साथ ही तीस्ता के रौद्र रूप के कारण जलपाइगुड़ी जिले के कई इलाकों में बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गयी है। यह हाल तब है, जब बरसात शुरू हुई है। हालांकि ऐसा नहीं है कि बारिश अचानक आयी है। मौसम विभाग ने भारी बारिश को लेकर पहले ही चेतावनी जारी कर दी थी, लेकिन शायद राज्य सरकारों के द्वारा इसको गम्भीरता से नहीं लिया जाता है। हकीकत यह कि अपने देश के कुछ राज्यों में हर साल की बाढ़ आती है, लेकिन इसको नियंत्रित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाता है। असम, पश्चिम बंगाल, बिहार जैसे राज्यों का एक बड़ा इलाका प्रत्येक वर्ष बाढ़ की त्रासदी झेलता है। मगर दुर्भाग्य से हमारी सरकारें इस मद में बजटीय आवंटन को लेकर जितनी उत्सुक दिखती हैं, इस समस्या के स्थायी समाधान को लेकर उनके प्रयास उतने दिखाई नहीं पड़ते। अगर देखा जाए तो देश में हर साल बारिश और बाढ़ से करीब 7 करोड़ लोग प्रभावित होते हैं। पिछले 65 सालों से हर साल औसतन बाढ़ में 2130 लोग मारे जाते हैं। लगभग एक लाख 20 हज़ार जानवर मरते हैं। लगभघ 82.08 लाख हेक्टेयर खेती बर्बाद होती है। एक रिसर्च के अनुसार भूस्खलन की जो घटनाएं पहाड़ी इलाकों में होती थीं, वे 2004 से 2010 के बीच 22 मि.मी. प्रति वर्ष की रफ्तार से होती थी, लेकिन 2022-23 में ही भारी बरसात के कारण ये 32 मि.मी. प्रतिवर्ष की रफ्तार से हुईं।
एक रिपोर्ट के अनुसार इसरो और कोचिन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के एक शोध के अनुसार पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन की घटनाएं पिछले 20 वर्षों में काफी बढ़ी हैं। साफ है कि पिछले कुछ वर्षों में कुदरत का कहर बढ़ा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि मौसम संबंधी गतिविधियों में आ रहे बदलाव का बड़ा कारण जलवायु संकट है। ऐसा सिर्फ भारत या एशियाई क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि पूरी धरती पर देखने को मिल रहा है। इसलिए जब तक ध्यान जलवायु संकट से निपटने के उपायों पर ध्यान केंद्रित नहीं होगा, तब तक इससे निजात मिलना असंभव है।
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