विधानसभा उप-चुनावों में नहीं चला मोदी का जादू

हाल ही में लोकसभा की पांचों सीटे जीतने वाली भाजपा उत्तराखंड के विधानसभा उप-चुनाव में दोनों सीटें हार गई है। यह हार मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की है या फिर उप-चुनाव के दौरान मंगलौर में बाहरी तत्वों की घुसपैठ कराकर हिंसा के जरिए चुनाव जीतने को कोशिश की हार है, जिसे वोटरों ने पूरी तरह से नकारा है। वास्तव में उत्तराखंड की दो विधानसभा सीटों पर हुए उप-चुनाव के परिणाम राजनीति में बदलाव के बड़े संकेत दे रहे हैं। मंगलौर विधानसभा सीट बहुजन समाज पार्टी विधायक हाजी सरवत करीम अंसारी के निधन के बाद खाली हुई थी, वहीं बद्रीनाथ विधानसभा सीट के पूर्व कांग्रेस विधायक राजेंद्र सिंह भंडारी ने लोकसभा चुनाव के दौरान पाला बदला था और वे भाजपा के साथ चले गए थे। इस कारण ये दोनों सीट खाली हुई थी। दोनों सीटों पर 10 जुलाई को मतदान हुआ था। विधानसभा उप-चुनाव के परिणाम में दोनों सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की है।
उत्तराखंड में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू किए जाने के बाद से पुष्कर सिंह धामी एक बड़े नेता के तौर पर सामने आने की कोशिश कर ही रहे थे कि उन्हें उप-चुनाव की हार ने झटका दे दिया। भाजपा प्रदेश की एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं रही। इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण विपक्ष की तगड़ी रणनीति को माना जा रहा है। विपक्ष ने चुनाव के दौरान राहुल गांधी की ओर से उठाए जाने वाले मसलों को ज़ोरदार तरीकों से जनता के बीच रखा। राहुल गांधी ने जिस प्रकार से युवाओं के बेरोज़गारी के मुद्दे को उठाया है, उससे प्रदेश का युवा वर्ग को जोड़ने की कोशिश की गई। वहीं, उत्तर प्रदेश में जिस प्रकार से अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने मिलकर पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक यानी पीडीए पॉलिटिक्स को अपनाया। वह उत्तराखंड की ज़मीन पर भी काम करता दिख रहा है। इसकी काट मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी नहीं तलाश पाए। उप-चुनाव में हिमाचल प्रदेश की देहरा सीट पर राज्य के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की पत्नी और कांग्रेस की उम्मीदवार कमलेश ठाकुर की जीत हुई है। कमलेश ने भाजपा के होशियार सिंह को 32 हज़ार से ज़्यादा वोट से हरा दिया है। लेकिन सुक्खू को उनके गृह ज़िले में हमीरपुर भाजपा ने झटका दिया है। इस सीट पर भाजपा के आशीष कुमार शर्मा करीब 1500 वोट से चुनाव जीत गए हैं। हिमाचल की नालागढ़ विधानसभा सीट से कांग्रेस के हरदीप सिंह बावा ने भाजपा के के.एल. ठाकुर से जीत हासिल की हैं।
 पश्चिम बंगाल में विधानसभा की चार सीटों के लिए हुए उप-चुनाव में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने भाजपा को करारा झटका लगा है। कांग्रेस ने कोलकाता की मानिकतला सीट के अलावा उत्तर दिनाजपुर की रायगंज, पुरुलिया ज़िला की बागदा और नादिया ज़िला की रानाघाट दक्षिण सीट भी जीत ली है। इनमें से मानिकतला के अलावा शेष तीन सीटें उसने भाजपा से छीनी हैं। भाजपा ने सन् 2021 के विधानसभा चुनाव में ये सीटें जीती थीं।
कोलकाता की मानिकतला सीट पर टीएमसी ने पूर्व मंत्री साधन पांडे की पत्नी सुप्ती पांडे को उम्मीदवार बनाया था। साधन पांडे के निधन के कारण यहां उप-चुनाव कराए गए। उन्होंने इस सीट पर भाजपा के वरिष्ठ नेता कल्याण चौबे को करीब 62 हज़ार से ज्यादा वोटों से पराजित कर दिया है। रायगंज सीट पर टीएमसी उम्मीदवार कृष्ण कल्याणी ने भाजपा के मानस कुमार घोष को 50 हज़ार से ज्यादा वोटों के अंतर से पराजित किया है। 
भाजपा को मतुआ बहुल बागदा सीट के अलावा नादिया ज़िला की रानाघाट दक्षिण सीट पर भी हार का सामना करना पड़ा है। बागदा में तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार मधुपर्णा ठाकुर 33 हज़ार से ज्यादा वोटों के अंतर से जीती हैं जबकि रानाघाट दक्षिण में टीएमसी उम्मीदवार मुकुटमणि अधिकारी भी 39 हज़ार से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत गए। उन्होंने भाजपा के मनोज कुमार विश्वास को हराया।
पंजाब की जालंधर पश्चिमी की सीट पर आम आदमी पार्टी के मोहिंदर भगत ने भाजपा के शीतल अंगुराल को 37 हज़ार से ज़्यादा वोटों से हरा दिया है। कांग्रेस पार्टी की सुरिंदर कौर इस सीट पर तीसरे नम्बर पर रही हैं। शीतल अंगुराल ने सन् 2022 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में ‘आप’ के टिकट पर चुनाव जीते थे, लेकिन मार्च में लोकसभा चुनावों के पहले वह भाजपा में शामिल हो गए थे। उनके पार्टी छोड़ने के बाद यह सीट खाली हुई थी। बिहार की रूपौली सीट की बात करें तो यह सीट जेडीयू विधायक बीमा भारती के आरजेडी में शामिल होने के बाद खाली हुई थी। बीमा भारती को आरजेडी ने लोकसभा चुनावों में मैदान में उतारा था, लेकिन वह चुनाव हार गई थीं। बीमा भारती इस बार आरजेडी की टिकट पर रूपौली से चुनाव लड़ी थीं। इस सीट पर निर्दलीय शंकर सिंह ने जीत हासिल की है। तमिलनाडु की एकमात्र सीट पर डीएमके के अन्नीयुर सिवा पीएम उम्मीदवार से करीब 50 हज़ार वोट से अधिक वोटों से जीत गए है। कुल मिला कर इन उप-चुनावों मे भाजपा 13 में से दो सीटें ही जीतने में सफल हुई है। इन चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी का जादू नहीं चल पाया है।