डा. अमरीक सिंह चीमा को याद करते हुए
कल बरसी पर विशेष
सब्ज़ इंकलाब के एक संस्थापक, कृषि प्रसार सेवा के निर्माता तथा किसानों के रहनुमा, ग्रामीण पृष्ठभूमि के कृषि वैज्ञानिक डा. अमरीक सिंह चीमा पूर्व उप-कुलपति पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) निधन के 42 वर्ष बाद भी लोगों की यादों में बने हुए हैं। पीएयू से सेवा-निवृत्त होने के बाद पंजाब के किसानों के नौजवान लड़कों को रोज़गार तथा विदेशों में ज़मीनें दिलवा कर उनकी आय बढ़ाने के साधनों की तलाश में वह विदेशी दौरे पर गए और तंज़ानिया में ही 18 जुलाई, 1982 को स्वर्ग सिधार गए। पंजाब की नौजवान किसान लहर के संस्थापक ने गांवों के नौजवानों को नया कृषि विज्ञान तथा उन्हें खेलों एवं मनोरंजन के साधन उपलब्ध करवाने के लिए गांवों में नौजवान किसान क्लब भादसों ब्लाक में बनाने शुरू किए और किसानों की सेवा के लिए रखड़ा में पंजाब यंग फार्मर्स एसोसिएशन की स्थापना की। डा. चीमा एक संस्था थे, जो पंजाब चैम्बर ऑफ एग्रीकल्चर, आल इंडिया चैम्बर ऑफ एग्रीकल्चर, एग्रीकल्चर रिलीफ एसोसिएशन आदि संस्थाएं अस्तित्व में लाए।
पाकिस्तान के सियालकोट ज़िला के गांव ‘बधाई चीमा’ में वर्ष 1918 में एक सितम्बर को जन्मे डा. चीमा की उपलब्धियां तथा जीवन हमारे लिए बड़ा चमत्कारी है। उनका विश्वास था कि ज्ञान-विज्ञान ही किसानों को ऊंचा उठा सकता है। वह पंजाब के डायरैक्टर कृषि रहे और फिर भारत सरकार के कृषि मंत्रालय में दिल्ली में कृषि आयुक्त बन कर चले गए। कृषि प्रसार सेवा के विशेषज्ञ डा. चीमा प्रत्येक के काम आते थे और किसी को भी खाली तथा निराश नहीं जाने देते थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों के कृषि उत्पादन दोगुणा करने के मिशन को सफल करने वाले प्रमुख व्यक्ति डा. चीमा ही थे, जिन्होंने कैरों से ‘मुख्यमंत्री गोल्ड मैडल’ लेने का सम्मान प्राप्त किया। भारत सरकार के कृषि आयुक्त के पद पर रहते हुए डा. चीमा ने मैक्सिको से अधिक उत्पादन देने वाली गेहूं की किस्मों के बीज मंगवाने वाले, सब्ज़ इंकलाब की नींव रखने वाले भारत रत्न सी. सुब्रह्मण्यम का विश्वास जीता। वह डा. एम.एस. स्वामीनाथन, उस समय के महानिदेशक आईसीएआर के नेतृत्व में यह बीज पंजाब के किसानों को उपलब्ध करवा कर यहां गेहूं की काश्त में इंकलाब लाए। यही नहीं भारत के कृषि मंत्री बाबू जगजीवन राम के भी डा. चीमा विश्वासपात्र थे। इतने दूरदर्शी थे कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण से पहले ही वह किसानों को ऋण देने के लिए व्यापारिक बैंकों को प्रेरित करके क्षेत्र के उस समय के मुख्य बैंक स्टेट बैंक ऑफ पटियाला को ‘ननानसु’ प्रोजैक्ट शुरू करवा कर कृषि के मैदान में लाए और ‘ननानसु वे ऑफ फाइनांस’ दूसरे अन्य बैंकों में भी शुरू करवाया, जिस विधि से प्रभावित होकर कई बैंकों ने कृषि ऋण देने शुरू कर दिए।
पीएयू के उप-कुलपति बनने से पहले डा. चीमा का चयन विश्व बैंक में एक वरिष्ठ अधिकारी के रूप में हो गया था। वहां भी कृषि मामलों संबंधी सलाहकार बने, परन्तु वहां रह कर वह संतुष्ट नहीं थे। जल्द ही वह इस पद को छोड़ कर आ गए, क्योंकि पंजाब की कृषि की सेवा का जुनून उनमें उमड़ रहा था। विश्व बैंक से वापिस आने पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें कृषि भवन में कृषि मंत्रालय का अतिरिक्त सचिव बना दिया, जिसके बाद वह किसानों के तथा कृषि आधारित उद्योगों के कामकाज करवाते रहे और पंजाब के कृषि क्षेत्र को सुविधाएं पहुंचाने के लिए लगातार प्रयास करते रहे। राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह के भी चहेते थे डा. चीमा। अतिरिक्त सचिव कृषि का पद छोड़ कर वह पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के उप-कुलपति बन गए। उनकी विश्वव्यापी सोच के अनुसार कृषि और कृषि आधारित उद्योग के विकास के बिना खुशहाली संभव नहीं थी। पीएयू में उन्होंने इस संबंधी ज़ोरदार प्रयास किए और मुख्यमंत्री तथा कृषि से संबंधित अधिकारियों से अपना तालमेल बनाए रखा। कौणी के एक गांव में होम साइंस कालेज खोल कर वह यूनिवर्सिटी को गांवों में ले गए।
चावल की पी.आर.-106 किस्म तथा गेहूं की एच.डी.-2329 किस्म किसानों तक पहुंचा कर किसानों का उत्पादन बढ़ाया, जिससे उनकी आय बढ़ी। चावल तथा गेहूं की ये दोनों किस्में किसानों ने काफी देर तक अच्छी आमदन (मनी-स्पिनर) के रूप में अपनाए रखीं। इससे पंजाब की आर्थिकता में भी वृद्धि हुई। चावल की काश्त का प्रशिक्षण लेने के लिए कई किसानों को डा. चीमा ने ताइवान (जहां की टाइचूंग-1 किस्म का बीज लाकर यहां धान की काश्त में इंकलाब लाया) तथा अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्था, मनीला (फिलिपीन्स) भेजा। डा. चीमा की झोली में कई सम्मान पड़े, जिनमें राष्ट्रपति डा. ज़ाकिर हुसैन द्वारा उन्हें दिया गया ‘पद्म श्री’ भी शामिल था। वह तीव्र बुद्धि के मालिक थे, जो प्रत्येक समस्या को तुरंत सुलझाते तथा फैसला लेते थे। उन्होंने कई देशों का दौरा किया। वह धार्मिक प्रवृत्ति भी रखते थे। उन्होंने कुछ किताबें भी लिखीं, जिनमें से धार्मिक ‘नामयोग’ तथा ‘गीता एंड यूथ टूडे’ पाठकों को बहुत पसंद आईं।