डा. अमरीक सिंह चीमा को याद करते हुए 

18 जुलाई, 1982 को पंजाब के किसानों के युवा लड़कों को विदेश में ज़मीन दिलाने वाले तथा सब्ज़ इंकलाब के प्रमुख अन्वेषकों के रूप में हमेशा याद किए जाने वाले पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के उप-कुलपति के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद डा. अमरीक सिंह चीमा का तन्ज़ानिया में निधन हो गया था। वह विदेश में पंजाब के युवाओं को रोज़गार उपलब्ध करवाने के लिए गए थे। डा. चीमा एक संस्था थे। पंजाब की युवा किसान लहर के संस्थापक ने गांवों के युवाओं को मनोरंजन, खेलों तथा नया कृषि ज्ञान उपलब्ध करवाने के लिए गांवों में नौजवान किसान क्लब बना कर रखड़ा में ‘पंजाब यंग फार्मर्स एसोसिएशन’ की स्थापना की थी। गांवों में होम साइंस कालेज स्थापित करके पी.ए.यू. को गांवों में ले गए। 
बैंकों के राष्ट्रीयकरण से पहले ही व्यापारिक बैंकों को ऋण देने के लिए प्रेरित किया तथा उस समय के क्षेत्र के मुख्य स्टेट बैंक ऑफ पटियाला को इस क्षेत्र में प्रवेश करवाया। बैंकों में ‘गांव अपनाओ’ योजना शुरू करवा कर ननाणसु प्रॉजैक्ट का उद्घाटन किया। इससे व्यापारिक बैंकों के लिए गांवों में कृषि ऋण देने के लिए मार्ग प्रशस्त हो गया। युवा किसानों को विदेश भेज कर प्रशिक्षण दिलाया। पंजाब में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रताप सिंह कैरों का कृषि उत्पादन दोगुणा करने का सपना साकार करके उन्होंने स्वर्ण पदक का सम्मान प्राप्त किया।
सब्ज़ इंकलाब के भीष्म पितामह डा. सी. सुब्रमण्यम के कृषि उत्पादन बढ़ाने के मिशन को पूरा करने में सहयोग दिया। जब वह पंजाब के कृषि विभाग के डायरैक्टर के बाद पदोन्नत होकर भारत सरकार के कृषि आयुक्त बने तो पंजाब में कृषि आधारित उद्योग लगाने के लिए एग्रो इंडस्ट्रीज़ को प्रेरित किया। कई गांवों के कारीगरों को भी इंजीनियर बना कर पंजाब को भारत का कम्बाइन उद्योग का प्रमुख बना दिया, जिस में करतार एग्रो इंडस्ट्रीज़ भादसों शामिल है। भादसों पायलट प्रॉजैक्ट के प्रभारी डा. चीमा ने भादसों को एग्रो इंडस्ट्रीज़ के क्षेत्र में उच्च दर्जा हासिल करवाया। 
आई.सी.ए.आर. के डायरैक्टर जनरल तथा सचिव एग्रीकल्चर डा. एम.एस. स्वामीनाथन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मैक्सिको से गेहूं की छोटे कद की, परन्तु अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों ‘लरमा रोज़ो’ तथा ‘सनोरा 64’ के बीज पंजाब के किसानों को उपलब्ध करवा कर पंजाब में सब्ज़ इंकलाब का आगाज़ किया। सिर्फ यही नहीं, डा. चीमा ने किसानों के अतिरिक्त छोटी श्रेणी के काश्तकारों, बाज़ीगरों तथा कुम्हारों को रोज़गार देकर अलग-अलग व्यवसाय में आबाद किया और शामलात ज़मीनें दिला कर काश्तकार बनाया। डा. चीमा को प्रत्येक किसान व काश्तकार ‘मेरा चीमा’ कह कर पुकारता था। वह किसानों को मिल कर बहुत खुश होते थे। दिन भर किसानों को मिलते और फाइलों का काम वह शाम को कार्यालय के बाद खत्म करते। डा. चीमा बहुत धार्मिक व्यक्ति भी थे। 
उन्होंने कई किताबें भी लिखीं, जिनमें ‘नामयोग’ तथा ‘गीता एंड यूथ टूडे’ पाठकों की पसंद बनीं। उनकी सफलता में उनकी पत्नी रामिन्द्र कौर का बहुत योगदान था, जिनकी मेज़बानी तथा मेहमान-नवाज़ी उच्चकोटि की थी। डा. अमरीक सिंह चीमा का जन्म सन् 1918 में 1 सितम्बर को पाकिस्तान के सियालकोट ज़िले के गांव वधाई चीमा में हुआ था और इतने महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न करके 64 वर्ष की आयु में ही उनका निधन हो गया। उनके पंजाब के विकास तथा विशेषकर राज्य की कृषि में डाले गए योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। 

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