एसआईआर की आंच से तपने लगा पश्चिम बंगाल
बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर अभियान अपने अंतिम चरण में पहुंच रहा है। विपक्ष लगातार एसआईआर का विरोध कर रहा है। बिहार विधानमंडल के मानसून सत्र में भी एसआईआर के विरोध के स्वर सुनाई दे रहे हैं। एसआईआर का मामला देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंच चुका है। सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार में एसआईआर पर रोक नहीं लगाई, लेकिन अभियान की टाइमिंग को लेकर प्रश्न अवश्य उठाए हैं।
भारत निर्वाचन आयोग बिहार के बाद, चुनाव आयोग इस वर्ष के अंत तक 2026 में चुनाव होने वाले पांच राज्यों में मतदाता सूचियों की इसी प्रकार की समीक्षा करेगा। असम, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल की विधानसभाओं का कार्यकाल अगले वर्ष मई-जून में समाप्त हो रहा है। ध्यान रहे पश्चिम बंगाल और असम दोनों ही राज्यों में एनआरसी बड़ा मुद्दा है क्योंकि इन राज्यों में बांग्लादेशी घुसपैठियों और शरणार्थियों की बड़ी संख्या है। पश्चिम बंगाल में जहां तृणमूल कांग्रेस एसआईआर को लेकर बेचैन है तो वहीं कांग्रेस असम को लेकर चिंतित है।
गैर-भाजपा शासित कई राज्यों से विरोध की आवाज़ उठने लगी है। हालांकि विरोध का सबसे ऊंचा स्वर पश्चिम बंगाल से सुनाई दे रहा है, जहां 2026 में विधानसभा चुनाव होंगे। गत 21 जुलाई को कोलकाता में तृणमूल कांग्रेस की शहीद दिवस रैली में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि भाजपा बंगाल में एसआईआर जैसी कवायद करने की योजना बना रही है, इसे कभी अनुमति नहीं दी जाएगी। वास्तव में, ममता के निशाने पर भाजपा है। एसआईआर कराना चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र का विषय है। सबकुछ जानते बूझते हुए भी ममता एसआईआर को लेकर भाजपा पर राजनीतिक बाण चला रही हैं। भला एसआईआर करवाने या न करवाने से भाजपा का क्या संबंध? सोचिए, पश्चिम बंगाल में एसआईआर अभी शुरू भी नहीं हुआ, और ममता बनर्जी ने इसके विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है। इसी से तृणमूल कांग्रेस की बेचैनी को समझा जा सकता है।
ममता बनर्जी का सार्वजनिक मंच से यह कहना कि पश्चिम बंगाल में एसआईआर की अनुमति नहीं दी जाएगी। सीधे तौर पर चुनाव आयोग को धमकी के साथ संविधान और संवैधानिक संस्था का अपमान भी है। संविधान और संवैधानिक संस्थाओं के प्रति तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के मन में आदर का भाव बचा ही नहीं है। सीबीआई के अधिकारियों को बंधक बनाने से लेकर ईडी के अधिकारियों पर प्राणघातक हमले में प्रदेश सरकार और तृणमूल कांग्रेस की भूमिका जगजाहिर है। अभी हाल ही में संसद द्वारा पारित वक्फ बिल के विरोध में ममता ने कहा था कि पश्चिम बंगाल में वक्फ कानून लागू नहीं होने देंगे। भला कोई संविधान के तहत निर्वाचित सरकार और मुख्यमंत्री ऐसे कैसे गैर-जिम्मेदाराना संविधान विरोधी बयानबाजी कर सकता है। लेकिन पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार ने नियम कानून और संविधान को शायद खूंटी पर टांग रखा है।
ममता बनर्जी एसआईआर को एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर से भी ज्यादा खतरनाक बता चुकी हैं। तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद नेता डेरेक ओ ब्रायन ने बीती 28 जून को कहा कि चुनाव आयोग द्वारा घोषित मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण ‘पिछले दरवाजे से एनआरसी लाने का एक भयावह कदम है।’ संसद के मॉनसून सत्र के दूसरे दिन बिहार वोटर लिस्ट मुद्दे पर विपक्षी सांसदों ने संसद में प्रदर्शन किया है। तृणमूल कांग्रेस के अलावा कांग्रेस, राजद, सपा और विपक्ष के अन्य दल इस विरोध में शामिल हैं। राजनीतिक हलकों में इस बात की जोरों से चर्चा है कि बिहार के बाद मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण की बारी पश्चिम बंगाल की होगी। तभी पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस बहुत बेचैन है। तृणमूल कांग्रेस को यह चिंता सता रही है कि अगर चुनाव आयोग ने चुनिंदा विधानसभा क्षेत्रों में टारगेट करके मतदाताओं के नाम काटे तो उसका फायदा भाजपा को होगा। पश्चिम बंगाल में 30 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, जिसके बारे में भाजपा आरोप लगाती है कि इनमें बड़ी संख्या बांग्लादेशी और रोहिंग्या की है। इनका वोट एकमुश्त तृणमूल को जाता है। हर क्षेत्र में 10 से 20 हजार नाम अगर कट जाते हैं तो तृणमूल को उसका बड़ा नुकसान होगा। हालांकि बिहार से उलट पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के नेता ज्यादा जागरूक और सक्रिय हैं। वे आसानी से नाम नहीं कटने देंगे। पिछले कई महीनों से वे खुद घर-घर जाकर सब चेक कर रहे हैं।
भाजपा का आरोप है कि पिछले 14 वर्षों में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार ने अवैध बांग्लादेशियों व रोहिंग्याओं को मतदाता सूची में व्यवस्थित रूप से घुसपैठ कराई है। बीते मार्च पश्चिम बंगाल भाजपा के प्रतिनिधिमंडल ने चुनाव आयोग को ऑडिट और मतदाता सूची संशोधन की ज़रूरत से अवगत कराते हुए बताया था कि पश्चिम बंगाल में 13 लाख से अधिक फर्जी या डुप्लीकेट मतदाता हैं। बीते जून को भाजपा ने दावा किया कि बांग्लादेश से जुड़े कोटा सुधार आंदोलन के नेता न्यूटन दास का नाम काकद्वीप विधानसभा इलाके के वोटर लिस्ट में है। तृणमूल ने आरोपों से इन्कार किया है।
जानकारी के अनुसार दिल्ली की जीत के बाद भाजपा की नज़र 2026 में पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को पछाड़ने पर है। दिल्ली चुनाव में मिली जीत से भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ा है और वो ज्यादा मज़बूती से ममता बनर्जी को चुनौती देने की कोशिश करेगी। ममता बनर्जी भी जमीनी सच्चाई और आने वाले राजनीतिक खतरों को बखूबी भांप रही है। इसलिये उन्होंने अभी से विरोध का स्वर ऊंचा करना शुरू कर दिया है। एक तरफ विपक्ष चुनाव आयोग पर भाजपा से मिलीभगत के आरोप लगाता है। वहीं दूसरी तरफ जब चुनाव आयोग मतदाता सूची की त्रुटियों को दूर कर साफ सुथरी सूची बनाने का अभियान चलाता है, तो उसका विरोध करने लगता है। साफ सुथरी वोटर लिस्ट न बने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाता है।