शैक्षिक परिसरों में बढ़ती आत्महत्याओं हेतु कौन है ज़िम्मेदार ?
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा गठित तथ्यान्वेषण समिति ने इस साल दो नेपाली छात्राओं की आत्महत्या के लिए भुवनेश्वर के डीम्ड विश्वविद्यालय के आईआईटी को ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा है कि ‘विश्वविद्यालय की अवैध और ़गैर-कानूनी गतिविधियों’ के कारण एक छात्रा की मौत हुई और प्रशासन की कार्रवाई ‘आपराधिक दायित्व’ के दायरे में आती है। अपने निष्कर्ष के आधार पर समिति ने कठोर सिफारिशें की हैं, जिनका संज्ञान लेते हुए आयोग ने विश्वविद्यालय के विस्तार पर रोक लगाने, दोषी अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाई करने आदि पर विचार कर रहा है। प्रोफेसर नागेश्वर राव के नेतृत्व वाली यूजीसी समिति ने कैंपस का दौरा, स्टेकहोल्डर्स से वार्ता और विस्तृत समीक्षा के बाद 20 मई, 2025 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसे अब सार्वजनिक किया गया है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यौन उत्पीड़न, अपर्याप्त हॉस्टल सुविधाओं, अत्यधिक छात्रों को प्रवेश देना, छात्रों के विरुद्ध क्रूर बल प्रयोग करना आदि शिकायतों पर विश्वविद्यालय कानून के अनुरूप कार्यवाही करने में नाकाम रहा, जिनकी वजह से यह घटनाएं हुईं। समिति ने पाया कि विश्वविद्यालय के इन्फ्रास्ट्रक्चर व प्रशासन में गंभीर कमियां थीं, हॉस्टल सुविधाएं ‘निम्नस्तरीय’ थीं कि तीन छात्रों को एक छोटे से कमरे में ठूंसा गया था और संस्कृति का लिहाज़ किये बिना विदेशी छात्राओं को रहने का स्थान दिया गया गया था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यौन उत्पीड़न की शिकायतों को अनदेखा किया गया या उनमें अवैध समझौता कराया गया, प्रशासन ने जबरन बेसहारा नेपाली छात्रों को बेदखल किया और सुरक्षाकर्मियों ने छात्रों के खिलाफ बल प्रयोग किया। विश्वविद्यालय नियमों, देश के कानूनों और देश के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर अपनी प्रतिष्ठा को वरीयता दे रहा था।
इसमें शक नहीं है कि विश्वविद्यालय की आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) के सदस्य और वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों को इन अपराधों के लिए कानूनन सज़ा मिलनी चाहिए, जैसा कि यूजीसी समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है, लेकिन बड़ा सवाल यह है घटना के घटित होने के बाद ही यह सब क्यों होता है? छात्र जब शिकायत करते हैं तब किसी स्तर पर उनकी सुनवायी क्यों नहीं होती है? ऐसा ढर्रा बना गया है कि एक अन्य छात्र आत्महत्या करता है, एक अन्य पोस्ट मोर्टेम होता है, थोड़ा हाय-हुल्ला मचता है, लेकिन छात्रों की शिकायतों पर व्यवस्थित खामोशी जारी रहती है। ओडिशा में 20 वर्षीय कॉलेज छात्रा के भयावह आत्मदाह के बाद अब खबर आयी है कि ग्रेटर नोएडा में भी एक 21 वर्षीय मैडीकल की छात्रा ने आत्महत्या कर ली है। गौरतलब है कि बालासोर, ओडिशा की घटना, भुवनेश्वर की घटना से अलग है, जिसके बारे में यूजीसी की रिपोर्ट आयी है। बालासोर में एक 20 वर्षीय छात्रा ने शिकायत की थी कि फकीर मोहन (स्वायत्त) कॉलेज में इंटीग्रेटेड बीएड विभाग के प्रमुख समीरा कुमार साहू उनका यौन उत्पीड़न कर रहे हैं, लेकिन कॉलेज की आंतरिक शिकायत समिति ने छात्रा की शिकायत को निरस्त कर दिया, जिसके बाद 12 जुलाई 2025 को छात्रा ने आत्मदाह कर लिया, जिसे लेकर 14 जुलाई 2025 को पूरे देश का गुस्सा फूट पड़ा।
पुलिस ने अब साहू व कॉलेज के प्रधानाचार्य दिलीप घोष को गिरफ्तार किया है। जांच जारी है, लेकिन अब इस सबका क्या फायदा? लड़की तो अपनी जान से गई। जब वह ज़िंदा थी, तब ही उसकी शिकायत का संज्ञान लेने की ज़रूरत थी। शिकायतों को अनदेखा करने की प्रवृत्ति को बदलने की ज़रूरत है, तभी छात्रों की खुदकुशियों पर विराम लगाया जा सकता है। यूजीसी समिति की रिपोर्ट को पढ़ने से मालूम होता है कि कॉलेज या विश्वविद्यालय चाहे जो हो, हर जगह एक सा ही पैटर्न नज़र आता है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘.... विश्वविद्यालय की आईसीसी ने यौन उत्पीड़न मामलों में कानूनन एक्शन नहीं लिया। कोई पारदर्शिता नहीं थी कि जांच के प्रोटोकॉल्स का पालन किया गया। त्रासदीपूर्ण घटना से बहुत पहले लड़की ने प्रशासन से दो बार शिकायतें की थीं। दोनों बार अवैध समझौतों के लिए मज़बूर किया गया...। विश्वविद्यालय को पहली ही शिकायत पर लड़के को सज़ा देने का अधिकार था। सज़ा देने की बजाये उन्होंने लड़के का पक्ष लेते हुए जबरन अवैध समझौता कराया। इसकी वजह से लड़की ने आत्महत्या की। लड़की को आत्महत्या से बचाया जा सकता था।’
ध्यान रहे कि 16 फरवरी, 2025 को बीटेक (तीसरे वर्ष) की नेपाली छात्रा प्रकृति लमसल अपने हॉस्टल के कमरे में मृत पायी गई थी। इसके बाद केआईआईटी विश्वविद्यालय के हॉस्टल ही में 2 मई, 2025 को एक अन्य नेपाली छात्रा ने आत्महत्या की थी। इन्हीं घटनाओं की जांच करने के लिए ही यूजीसी ने राव समिति गठित की थी। ग्रेटर नोएडा की शारदा यूनिवर्सिटी में 21 वर्षीय मैडीकल की छात्रा ने 18 जुलाई, 2025 की रात को खुदकुशी कर ली क्योंकि फैकल्टी के कुछ सदस्य उसके साथ अनुचित व्यवहार कर रहे थे। यह इस साल की चार प्रमुख घटनाएं हैं, जो अखबारों की सुर्खियां बनीं, उनका तो ज़िक्र ही नहीं जो खबर न बन सकीं। इन सभी में एक ही पैटर्न है। लड़की अत्याधिक दबाव व तनाव में थी, फैकल्टी या कॉलेज के ही अन्य सदस्य उसका यौन उत्पीड़न कर रहे थे, शिकायत करने पर उसे राहत नहीं मिली बल्कि उसकी शिकायत को अनदेखा कर दिया गया या ‘अवैध समझौता’ करा दिया गया। इस संदर्भ में पत्र भी हैं। बालासोर के मामले में साथी छात्रों को मज़बूर किया गया कि वह फैकल्टी सदस्य का साथ दें ताकि शिकायतकर्ता को अकेला किया जा सके। ग्रेटर नोएडा केस में आत्महत्या नोट है, जिसमें उत्पीड़न व अपमान के लिए प्रोफेसरों के नाम लिए गये हैं।
गौरतलब है कि उच्च शिक्षा में फैकल्टी के पास छात्रों के ऊपर बहुत अधिक पॉवर होती है- विचार विकसित करने से लेकर कॅरियर तक। लेकिन ऐसी व्यवस्था की सेहत को बरकरार रखने हेतु जिन सुरक्षा उपायों की ज़रूरत है, वह टूटे हुए प्रतीत होते हैं। छात्रों की मानसिक सेहत की चिंताओं और उच्च शिक्षा संस्थानों में आत्महत्याओं को संबोधित करने के लिए जब मार्च में सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय टास्क फोर्स गठित कर रहा था, तो उसने नोट किया था कि छात्रों में खुदकुशी की घटनाएं कृषि तनाव के कारण किसानों की आत्महत्याओं से भी अधिक हो गई हैं। इसका ज्यादा कुसूर ज़हरीली प्रतिस्पर्धा का निकलता है और इस मुद्दे पर भी अधिक ज़िम्मेदारी कॉलेज प्रशासकों की होनी चाहिए लेकिन उत्पीड़न के मामले तो अलग ही श्रेणी के हैं। यह विशिष्ट फैकल्टी सदस्यों द्वारा पॉवर का दुरूपयोग है।
इस प्रकार की यातनाओं से छात्रों को कैसे बचाया जाये? ग्रेटर नॉएडा के मामले में, रिपोर्टों के अनुसार, छात्रा को क्लास रूम में निरंतर अपमानित किया जाता था। उसके पैरेंट्स ने कॉलेज प्रशासन से शिकायत की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। बालासोर की छात्रा कॉलेज प्रशासन के अतिरिक्त पुलिस के पास भी गई, राहत नहीं मिली। यूजीसी को अब तो अपनी समिति की रिपोर्ट से मालूम हो गया होगा कि अधिकतर आईसीसी पीड़ित को राहत देने की बजाय लीपापोती करके ‘दोषी’ को ही बचाती हैं। इसलिए यह आश्चर्य नहीं है कि अकेले आईआईटी खड़गपुर ने पिछले सात माह में चार छात्रों की ‘अप्राकृतिक मौतें’ देखी हैं। घटना के बाद हर कुलीन संस्था ‘चूक’ की बात करती है, लेकिन अगर शिकायत होने पर ही छात्र को राहत मिल जाये तो यह ‘चूक’ का बहाना बंद हो जाये।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर