राष्ट्रीयता, राष्ट्र-प्रेम के रंगों में समाया भारत का स्वाभिमान
आज राष्ट्रीय ध्वज दिवस पर विशेष
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास और महत्व अत्यंत गौरवशाली है। यह मात्र एक कपड़े का टुकड़ा नहीं बल्कि करोड़ों भारतीयों की भावनाओं, अरमानों, बलिदानों और सांस्कृतिक चेतना का जीवंत प्रतीक है। स्वतंत्र भारत के इस गौरवशाली चिन्ह की यात्रा सैंकड़ों वर्षों के संघर्ष, विचार-मंथन और राष्ट्र निर्माण के दौर से जुड़ी है। हमारे तिरंगे की अहमियत हर भारतीय के दिल में समाई है क्योंकि यह न केवल देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता का चिन्ह है बल्कि आज़ादी के लिए चले महासंग्राम और समावेशी संस्कृति की अमिट छाप भी है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज, जिसे हम ‘तिरंगा’ के नाम से जानते हैं, उसे संविधान सभा द्वारा 22 जुलाई, 1947 को स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया था। इसी दिन की स्मृति में प्रतिवर्ष 22 जुलाई को ‘राष्ट्रीय ध्वज दिवस’ मनाया जाता है, जिससे आज के युवाओं को हमारे ध्वज की गौरवगाथा और उसके पीछे छिपी अपूर्व राष्ट्रभक्ति की भावना की जानकारी मिल सके।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रंग, इसकी संरचना और उसके बीच स्थित चक्र, तीनों ही अपने आप में गहन दार्शनिक एवं ऐतिहासिक संदेश रखते हैं। तिरंगे में सबसे ऊपर केसरिया रंग देश के साहस, त्याग और बलिदान की भावना का प्रतीक है, मध्य में श्वेत रंग शांति, सत्य और निर्मलता का द्योतक है जबकि सबसे नीचे हरा रंग समृद्धि, विकास, उर्वरता और आशावाद का संदेश देता है। तिरंगे के मध्य स्थित गहरे नीले रंग का 24 आरी वाला अशोक चक्र धर्म और सत्य के पथ को दर्शाता है। यह चक्र सम्राट अशोक के ‘सारनाथ’ के शिलालेख से लिया गया है, जो प्रगति, गति और सतत बदलाव का भी प्रतीक बन गया है। इस चक्र की 24 तीलियां देश के 24 घंटे सतत क्रियाशील और जागरूक रहने की प्रेरणा देते हैं।
तिरंगे के स्वरूप की अंतिम रूपरेखा टी. पिंगली वेंकैय्या नामक महान स्वतंत्रता सेनानी एवं वस्त्र वैज्ञानिक ने तैयार की थी, जो गांधीजी के मार्गदर्शन में एक ऐसा ध्वज चाहते थे, जो संपूर्ण भारत की बहुलवादी संस्कृति, स्वतंत्रता आंदोलन की भावना और आधुनिक भारत के नए मूल्यों को एक साथ समेट सके। पिंगली वेंकैय्या ने न केवल सैद्धांतिक रूप से बल्कि अधुनातन रंगों के साथ तिरंगे का सर्वसमावेशी स्वरूप प्रस्तावित किया था, जिसे संविधान सभा ने स्वीकार किया। आज भी पिंगली वेंकैय्या का नाम भारतीय ध्वज के जनक के तौर पर इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। तिरंगे के महत्व को समर्पित ‘राष्ट्रीय ध्वज दिवस’ का आयोजन हमें यह याद दिलाने के लिए है कि हमारा राष्ट्रीय ध्वज केवल झंडारोहण या सरकारी आयोजनों तक सीमित नहीं बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता, कर्त्तव्यनिष्ठा, समाज के प्रति उत्तरदायित्व और साझा भारतीयता के उच्च आदर्शों का जीवंत परिचायक है।
भारतीय तिरंगा जब स्वतंत्रता सेनानियों के हाथों में लहराया जाता था तो इसका हर रंग, चक्र व ध्वज-पताका हर भारतीय के हृदय में उत्साह, ऊर्जा और बलिदान की भावना जगाती थी। ब्रिटिश शासन के दौरान तिरंगे का महत्व आंदोलनकारियों के लिए विशेष तौर पर प्रेरणास्रोत रहा। ध्वज के अपमान के खिलाफ हजारों लोगों ने कारावास, यातनाएं और मृत्यु तक को हंसते-हंसते स्वीकार किया। राष्ट्रीय ध्वज के प्रति सम्मान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51-ए के तहत प्रत्येक नागरिक का मूल कर्त्तव्य है। भारतीय ध्वज संहिता द्वारा झंडे के उपयोग, संरक्षा एवं आदर संबंधी दिशा-निर्देश बनाए गए हैं ताकि राष्ट्र ध्वज का सम्मान हमेशा अक्षुण्ण रहे। ध्वज के निर्माण में केवल खादी कपड़े का उपयोग करने की परंपरा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आत्मनिर्भरता, स्वदेशी व स्वावलंबन की अवधारणा को मूर्त रूप देती है।
राष्ट्रीय ध्वज की निर्माण यात्रा भी गौरवशाली व संघर्षपूर्ण रही है। 1906 में पहली बार कोलकाता के ‘पारसी बगान स्क्वायर’ में तीन रंगों का झंडा फहराया गया, जिसमें हरा, पीला और लाल रंग था। 1921 में गांधीजी की सलाह पर पिंगली वेंकैय्या ने झंडे का नया स्वरूप प्रस्तावित किया, जिसमें दो रंग (लाल और हरा) हिंदू, मुसलमान और शांति के प्रतीक बने। बाद में इसमें सफेद रंग जोड़ा गया, जिससे भारत की सांस्कृतिक एकता का संदेश और भी मज़बूत हुआ। अंतत: 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने अशोक चक्र के साथ, केसरिया, सफेद और हरे रंग के तिरंगे को स्वतंत्र भारत का ध्वज बनाया। आज तिरंगा न केवल भारतीय गणराज्य की पहचान है बल्कि प्रवासी भारतीयों और विश्व पटल पर बसे भारतीयों के लिए भी सम्मान, गर्व और अपने देश से जुड़े होने की अनुभूति का महान प्रतीक है। तिरंगे के नीचे भारत विविध भाषाओं, धर्मों, संस्कृति, खानपान और वेशभूषा को समेटे एक अखंड राष्ट्र के रूप में सामने आता है।
आज के युग में राष्ट्रीय ध्वज की चेतना केवल राष्ट्रीय पर्वों अथवा समारोहों तक सीमित नहीं रही, यह चंद्रयान, मंगलयान जैसे भारत के वैज्ञानिक अभियानों तथा वैश्विक मंचों पर भारतीय उपलब्धियों की शान भी है। जब कोई भारतीय अंतरिक्ष यात्री या वैज्ञानिक तिरंगा लेकर अनंत गगन में विजय पताका लहराता है तो पूरी दुनिया में ‘जय हिंद’ की गूंज सुनाई देती है। क्रिकेट, हॉकी, कबड्डी, ओलंपिक जैसे खेल आयोजनों में जब भारत का तिरंगा बुलंदी पर पहुंचता है तो हर भारतीय का सिर सम्मान और गौरव से ऊंचा हो जाता है। संविधान निर्माताओं, नेताओं और स्वतंत्रता सेनानियों ने तिरंगे को मात्र राष्ट्रीय प्रतीक नहीं अपितु राष्ट्र की आत्मा के रूप में देखा। इस ध्वज के समक्ष कई वीर शहीद हुए, असंख्य लोगों ने यातनाएं झेली, राष्ट्रभक्ति की अलख को प्रज्वलित रखा।