पहले ही दिन हंगामा क्यों ?

संसद का मानसून सत्र शुरू हो गया है। यह 21 जुलाई से 21 अगस्त तक चलेगा, चाहे देश की आज़ादी के संबंध में 15 अगस्त को होने वाले कार्यक्रमों के लिए कुछ छुट्टियां होंगी। देश में जिस प्रकार का राजनीतिक माहौल बना हुआ है, उसको देखते हुए संसद के इस समारोहों में बड़ा शोर-शराबा होने की उम्मीद है। इसलिए दोनों ही पक्षों द्वारा अपनी-अपनी रणनीति तैयार करने के लिए तैयारी की गई है। वैसे तो संसद के काम को सुचारू रूप में चलाने के लिए 20 जुलाई को एक सर्वदलीय बैठक भी हुई थी, जिसमें लगभग सभी पार्टियों के नेताओं और प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। भारतीय लोकतंत्र में हर किसी को अपनी पार्टी बनाने का अधिकार है परन्तु राष्ट्रीय स्तर पर उसको कुछ निर्धारित शर्तों पर ही मान्यता दी जाती है। इस संसदीय सत्र में 51 के लगभग राजनीतिक पार्टियां भाग ले रही हैं। इस लम्बी चली सर्वदलीय बैठक में अलग-अलग पार्टियों के बहुत से नेताओं ने अपनी बात विस्तारपूर्वक रखी थी। इसमें यह ज़रूर तय हुआ था कि देश के लिए महत्वपूर्ण समझे जाने वाले सभी विषयों पर विस्तार से बहस की जाएगी और इसलिए प्रतिनिधिता अनुसार प्रत्येक पार्टी को उचित समय भी दिया जाएगा।
इस सत्र में 8 महत्वपूर्ण बिल भी पेश किए जाने हैं। उन पर भी चर्चा के लिए समय निर्धारित किया जाएगा। कुछ वर्ष पहले बने  विपक्षी दल के ‘इंडिया गठबंधन’ में तो समय के व्यतीत होने के साथ-साथ बड़ी दरारें आ चुकी हैं और इसमें शामिल पार्टियों ने एकमत होने की बजाय अपनी-अपनी डफली बजाने को प्राथमिकता देनी शुरू कर दी है। परन्तु जो कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा ज़रूरी है, उनमें पहलगाम में हुआ आतंकी हमला, अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प द्वारा भारत और पाकिस्तान के बीच 4 दिनों तक हुए युद्ध के बाद युद्धविराम संबंधी की गई टिप्पणी और नवम्बर में हो रहे बिहार के चुनावों से पहले चुनाव आयोग द्वारा वोटर सूचियों में सुधार करने की शुरू की गई प्रक्रिया आदि के चर्चित विषय शामिल हैं। इसके अलावा इस वर्ष मार्च माह में दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के सरकारी घर में लगी आग के बाद बड़ी मात्रा में मिले जले हुए नोटों की गट्ठियों को लेकर उठे विवाद के बाद जस्टिस वर्मा पर संसद द्वारा महाभियोग अधीन कार्रवाई करने के लिए पूरी तैयारी कर ली गई है, परन्तु पहले ही दिन संसद में शोर-शराबा तथा हंगामा होने की बात समझ से बाहर ज़रूर है। कांग्रेस तथा विपक्षी पार्टियां इसके लिए बज़िद दिखाई दीं कि पहलगाम के घटनाक्रम तथा ऑपरेशन सिंदूर आदि संबंधी तुरंत चर्चा की जानी चाहिए, जबकि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा था कि प्रश्नकाल के बाद वह सभी विषयों पर चर्चा करवाने के लिए तैयार हैं।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी यह कहा कि वह सभी सदस्यों को यह आश्वासन दिलाना चाहते हैं कि देश की रक्षा संबंधी वे जिस भी विषय पर तथा जितनी लम्बी चर्चा चाहते हैं, वह लोकसभा अध्यक्ष के फैसले के बाद उसके लिए पूरी तरह तैयार हैं। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजीजू ने भी यह कहा कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की अध्यक्षता में होने वाली बैठक में विपक्षी प्रतिनिधि जिस विषय पर भी चर्चा चाहते हैं, उन मुद्दों पर सरकार पूरी तरह चर्चा करवाने के लिए तैयार है और उसमें विपक्षी पार्टियों को अपनी बात कहने का पूरा अवसर दिया जाएगा। राज्यसभा में भी पहले दिन इसी तज़र् पर ही बातचीत हुई। विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि 22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकवादी हमला हुआ था, अब तक न तो उसके आरोपी पकड़े गए हैं और न ही मारे गए हैं। यह भी कि भारत तथा पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के बारे में अमरीकी राष्ट्रपति ने 24 बार टिप्पणियां की हैं, जो टिप्पणियां की गई हैं, उस संबंधी भी विस्तारपूर्वक बात की जानी चाहिए।
हम समझते हैं कि जब सत्र से पहले इस बात पर पूरी सहमति बन गई थी कि दरपेश महत्वपूर्ण विषयों पर सभी पक्षों की शमूलियत से विस्तापपूर्वक चर्चा होगी तो पहले ही दिन संसद के दोनों सदनों में ऐसा हंगामा क्यों खड़ा किया गया? इससे तो यही प्रतीत होता है कि आगामी दिनों में भी किसी न किसी बात पर पहले की भांति ही ऐसे हंगामे करके संसद का समय बर्बाद किया जाता रहेगा। इसलिए सरकार समेत सभी विपक्षी पार्टियों का यह फज़र् बनता है कि वे संसद में पहले बनी सहमति के अनुसार अपने-अपने विचार पेश करने को प्राथमिकता दें। अनावश्यक खड़ा किया जा रहा हंगामा किसी भी तरह सार्थक नहीं होगा और ऐसा देश के लोगों में निराशा पैदा करने का ही कारण बनेगा। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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