ट्रम्प की टैरिफ धमकी का सामूहिक रूप से विरोध करें ‘ब्रिक्स’ देश

17वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन 6-7 जुलाई को रियो डी-जनेयरो में आयोजित हुआ, जो ग्यारह देशों की विस्तारित सदस्यता वाला पहला शिखर सम्मेलन था। इसके तुरंत बाद अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने ब्रिक्स के साथ जुड़ने वाले देशों पर 10 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी दी। इससे पहले भी ट्रम्प ने ब्रिक्स देशों पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी देते हुए कहा था कि वह अमरीकी डॉलर के वर्चस्व को नष्ट करना चाहते हैं और अमरीका को कमज़ोर करना चाहते हैं। ट्रम्प ब्रिक्स से इतने भयभीत और उत्तेजित क्यों हैं?
ब्रिक्स मूल रूप से पांच देशों से बना था—ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका। इसकी शुरुआत 2009 में पहले चार देशों के साथ हुई और एक साल बाद दक्षिण अफ्रीका इसमें शामिल हुआ था। ब्रिक्स की परिकल्पना एक ऐसे मंच के रूप में की गई थी जो वैश्विक दक्षिण के हितों और आकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करे। ब्रिक्स के पांच सदस्य विश्व की 40 प्रतिशत जनसंख्या और विश्व की अर्थव्यवस्था का एक-चौथाई हिस्सा हैं। 2024 में जोहान्सबर्ग में आयोजित 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में इस मंच में छह और देशों —मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और इंडोनेशिया को शामिल करने का निर्णय लिया गया। अब ब्रिक्स के ये ग्यारह देश मिलकर विश्व की 49.5 प्रतिशत जनसंख्या, विश्व के सकल घरेलू उत्पाद का 40 प्रतिशत और विश्व के व्यापार का 26 प्रतिशत प्रतिनिधित्व करते हैं।
ब्रिक्स कोई गुट या गठबंधन नहीं है। यह वैश्विक दक्षिण के देशों का एक समूह है (रूस एकमात्र अपवाद है), जो बहुपक्षीय संस्थाओं में सुधार, व्यापार, आर्थिक सहयोग, जलवायु परिवर्तन और प्रौद्योगिकी पर समान विचारों पर पहुंचने का प्रयास करता है। इस प्रकार ब्रिक्स में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक जैसी संस्थाओं और व्यापार एवं वित्तीय तंत्रों पर जी-7 देशों और पश्चिमी साम्राज्यवाद के प्रभुत्व को चुनौती देने की क्षमता है। ब्रिक्स का उदय 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट की पृष्ठभूमि में हुआ और जी-20 के जी-7 देशों की छाया से बाहर निकलने में विफल रहने के बाद यह और अधिक प्रासंगिक हो गया।
रियो डी-जनेयरो घोषणा-पत्र ने हाल ही में हुई दो आक्रामक घटनाओं के संबंध में वैश्विक दक्षिण की स्थिति को स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित किया है। इसने ईरान की संप्रभुता और परमाणु स्थलों पर हमलों की निंदा की है। इसने गाज़ा पर इज़राइल के नए हमलों और खाद्य एवं मानवीय आपूर्ति की नाकेबंदी की भी कड़ी निंदा की है। घोषणा-पत्र में अमरीका का नाम लिए बिना एकतरफा टैरिफ और गैर-टैरिफ  उपायों में वृद्धि पर भी गंभीर चिंता व्यक्त की गई। इसने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक में प्रमुख वैश्विक दक्षिण देशों के लिए अधिक मतदान शक्तियों और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ब्राज़ील और भारत के प्रतिनिधित्व की लम्बे समय से चली आ रही मांग को भी दोहराया है।
राष्ट्रपति ट्रम्प की नाराज़गी का कारण ब्रिक्स द्वारा डॉलर पर निर्भरता कम करने और बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों पर अमरीका और जी-7 देशों की पकड़ ढीली करने के लिए उठाए जा रहे कदम और उपाय हैं। अमरीका द्वारा विशिष्ट देशों के विरुद्ध आर्थिक और वित्तीय प्रतिबंधों का तेज़ी से उपयोग करने और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय एवं बैंकिंग प्रणालियों से बाहर करने के साथ अधिक से अधिक देश वैकल्पिक व्यवस्थाओं के माध्यम से अपने हितों की रक्षा करने की कोशिश कर रहे हैं। ब्रिक्स सदस्यों ने स्थानीय मुद्राओं में व्यापार और मुद्रा विनिमय व्यवस्था पर चर्चा की है।
सीमा पार भुगतान के लिए कदम भी एजेंडे में हैं। रियो घोषणा-पत्र में कहा गया है कि नेता अपने देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक गवर्नरों को ब्रिक्स सीमा पार भुगतान पहल पर चर्चा जारी रखने और ब्रिक्स भुगतान कार्य बल (बीपीटीएफ) द्वारा ‘ब्रिक्स भुगतान प्रणालियों की बेहतर अंतर.संचालन क्षमता पर चर्चा जारी रखने के लिए संभावित रास्तों की पहचान करने में हुई प्रगति की सराहना’ करने का काम सौंपेंगे। हालांकि वैकल्पिक मुद्रा व्यवस्था का कोई विशिष्ट लक्ष्य नहीं है, लेकिन डॉलर पर निर्भरता कम करने के लिए उठाए गए सीमित कदम ट्रम्प प्रशासन में चिंता का विषय बन रहे हैं।
ब्रिक्स कुछ वैकल्पिक संस्थाओं की स्थापना में क्रमिक प्रगति कर रहा है। यह न्यू डिवेल्पमेंट बैंक (एनडीबी) के उदाहरण से स्पष्ट है। इसकी स्थापना 2015 में 100 अरब डॉलर की पूंजी से हुई थी और इसका मुख्यालय शंघाई में है। यह बैंक ऋणों के भुगतान के लिए ऋण देने के बजाय बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए ऋण प्रदान करता है। बैंक ने अब तक ब्रिक्स सदस्य देशों और वैश्विक दक्षिण के अन्य देशों में 98 बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए 36 अरब डॉलर का ऋण दिया है।
ट्रम्प के राष्ट्रपतित्व में व्यापार और अन्य सभी क्षेत्रों में एकतरफा आक्रामकता देखी जा रही है, जिसका वैश्विक दक्षिण के देशों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। व्यापार युद्ध केनडा, यूरोपीय संघ, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे घनिष्ठ सहयोगियों को भी नहीं बख्श रहा है। जहां एक ओर यह अमरीका के नेतृत्व वाले साम्राज्यवादी गठबंधन को कमज़ोर कर रहा है, वहीं दूसरी ओर वैश्विक दक्षिण के लिए एक प्रमाणिक मंच के रूप में ब्रिक्स की अपील बढ़ रही है। अधिक से अधिक देश ब्रिक्स में शामिल होने के इच्छुक हैं। रियो शिखर सम्मेलन में एक नई ‘भागीदार देशों’ की श्रेणी की शुरुआत की गई। आठ देशों—बेलारूस, बोलीविया, क्यूबा, कज़ाकिस्तान, मलेशिया, थाईलैंड, युगांडा और उज़्बेकिस्तान को यह भागीदार दर्जा दिया गया है। इस नवाचार के साथ वैश्विक दक्षिण के और भी देश इस मंच से जुड़ गए हैं। (संवाद)

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