क्या ‘प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना’ गेम चेंजर साबित होगी ?

केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर ‘प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना’ (पीएमडीडीकेवाई) को 11 विभागों की 36 मौजूदा योजनाओं को मिलाकर लागू किया जायेगा। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज चौहान के मुताबिक, यह योजना विभिन्न राज्यों के बीच, और एक राज्य के भीतर विभिन्न ज़िलों के बीच भी, ‘उत्पादकता में असमानता’ से निपटने पर ध्यान देगी। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) जैसी केंद्र की चहेती योजनाओं के साथ-साथ ज़िला धन-धान्य समितियों द्वारा चिन्हित संबंधित राज्य की योजनाओं को भी पीएमडीडीकेवाई में समाहित किया जायेगा। निजी क्षेत्र के साथ स्थानीय साझेदारियों को भी इस प्रस्तावित योजना के तहत प्रोत्साहित किया जायेगा, जो अक्तूबर में रबी की फसल के मौसम के दौरान शुरू होगी। इस योजना पर छह वर्षों के लिए 24,000 करोड़ रुपये का वार्षिक खर्च तय किया गया है। उम्मीद लगायी गयी है कि इस योजना का नतीजा उच्च उत्पादकता, कृषि और इससे जुड़े क्षेत्रों में मूल्य संवर्धन, स्थानीय आजीविका सृजन, घरेलू उत्पादन और आत्मनिर्भरता में वृद्धि के रूप में सामने आयेगा। योजनाओं के इस एकीकरण को कृषि पर घटते सार्वजनिक खर्च की पृष्ठभूमि में देखना होगा। नीति आयोग के आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम की तर्ज पर, केंद्र कम उत्पादकता व फसल सघनता (क्रॉपिंग इन्टेन्सिटी) और कम ऋण वितरण के आधार पर 100 ज़िलों की शिनाख्त करेगा। इस योजना से फिलहाल 1.7 करोड़ किसानों को लाभ मिलेगा। 
कृषि मंत्रालय के अनुसार, योजना का उद्देश्य खेती की उपज बढ़ाना है। गेहूं-चावल और गन्ने के अलावा दलहन-तिलहन की फसलों और नकदी फसलों पर सरकार का जोर है। सरकार इस योजना के जरिये पंचायत और ब्लॉक स्तर पर ही फसलों के भंडारण क्षमता तैयार करेगी, ताकि स्थानीय स्तर पर ही इन्हें सुरक्षित रखकर खर्च बचाया जा सके। इसमें छोटे किसानों को सस्ता कर्ज मुहैया कराया जाएगा। साथ ही सिंचाई योजनाओं का दायरा बढ़ाया जाएगा। इस जंबो स्कीम के तहत योजनाओं के एकीकरण से इसका संचालन बेहतर तरीके से किया जा सकेगा। निजी क्षेत्र को भी भागीदारी भी इसमें होगी। सरकार की मंशानुसार केंद्र के साथ राज्य सरकार की कृषि योजनाओं को भी इसमें मिलाकर लागू किया जाए। हर राज्य का कम से कम एक ज़िला इसमें शामिल होगा। कृषि मंत्रालय के मुताबिक, हर ज़िले के लिए एक नोडल अफसर होगा। वैसे तो हमारा उत्पादन 40 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा है। फल-दूध और सब्जियों के उत्पादन में भी उछाल है। फिर भी राज्यों की उत्पादकता में काफी अंतर है। राज्य के भीतर भी एक ज़िले की दूसरे ज़िले से उत्पादकता कम है। जिन ज़िलों में फसलों की उपज कम है। किसान आधुनिक कृषि उपकरणों और तकनीकों के लिए लोन बहुत कम लेते हैं। उन ज़िलों को इस योजना में प्राथमिकता दी जाएगी। चिन्हित ज़िलों में 11 विभागों की योजनाओं को समाहित करके सिंगल विंडो सिस्टम के तहत एक ही जगह सारे लाभ दिए जाएंगे। इस महत्वाकांक्षी योजना को लागू करने के लिए स्टेट और नेशनल लेवल के साथ ज़िला स्तर पर समिति बनाई जाएंगी। समितियों में किसान प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।
नीति आयोग चयनित ज़िलों के लिए कुछ पैमाने तय करेगा। जिनके आधार पर प्रोग्रेस रिपोर्ट तैयार की जाएगी। इसकी निगरानी के लिए एक डैशबोर्ड बनाया जाएगा। ये अभियान अक्तूबर के रबी सीजन से शुरू होगा। ज़िला स्तर की समिति को ग्राम पंचायत या ज़िला क्लेक्टर द्वारा चलाया जाएगा। केवल ज़िले में ही नहीं, राज्य स्तर पर भी टीम बनेगी। राज्य स्तर टीम की ज़िम्मेदारी ज़िले में योजनाओं के सही तरीके से एकीकरण पर ध्यान देने की होगी। केंद्रीय स्तर पर केंद्रीय मंत्रियों की और सचिव की अध्यक्षता में अन्य विभागों के अधिकारियों की टीम होगी। वैसे देखा जाए तो कृषि पर संसद की स्थायी समिति ने अनुदान मांगों पर ताजा रिपोर्ट में, कुल केंद्रीय योजनागत खर्च के प्रतिशत के रूप में कृषि के लिए आवंटनों में निरंतर गिरावट का उल्लेख किया था। यह वित्त वर्ष 2021-22 में 3.53 प्रतिशत था। जो घट कर 2022-23 में 3.14 प्रतिशत, 2023-24 में 2.57 प्रतिशत, 2024-25 में 2.54 प्रतिशत और 2025-26 में 2.51 प्रतिशत रह गया। इसके बावजूद किसानों के हित में 36 योजनाओं को एक करके जो महत्वकांक्षी योजना लागू होने जा रही है वह अगर बिना भेदभाव, क्षेत्रवाद, राजनीति और नौकरशाही से मुक्त होगा धरातल पर उतारी गई तो इसके दूरगामी लाभ अवश्य मिलेगे।

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